कोटा में कोचिंग छात्र ने की आत्महत्या

 डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना देख रहे कोटा के अनेक कोचिंग के स्टूडेंट्स के सपने टूटने के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं।

क्या कहते है आँकड़े

  • पिछले पांच सालों में वहां 77 बच्चे आत्महत्या के शिकार हो चुके हैं.
  • इस साल भी अब तक तकरीबन 20 बच्चे खुदकुशी कर चुके हैं.
  • कोटा पुलिस से के अनुसार 2011 में छह बच्चों ने, 2012 में 11, 2013 में 26 तथा 2014 में 14 बच्चे खुदकुशी कर ली.

क्या कारण है सुसाइड का:

  • सुसाइड का सबसे बड़ा कारण है इंटरनल टेस्ट में नंबर कम आना है।
  •  हाल ही सुसाइड के मामले में सामने आया है कि कई बच्चे छोटे शहरों से आते हैं, जो गरीब तबके से होते हैं और उनके पास coachingइतने साधन नहीं होते। उनके लिए पढ़ाई का माहौल और मुश्किल पैदा करता है, क्योंकि इससे उनमें हीन भावना पैदा हो जाती है।
  • परिश्रम करने का दवाब :अध्यापक कोचिंग में अच्छा प्रदार्शन करने वाले प्रतियोगी छात्रों को अगली पंक्ति में बैठाकर उन पर अधिक ध्यान देते हैं| जो प्रतियोगी छात्र अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे होते हैं, कई बार फैकल्टी उन्हें डांट-डपट करती है| साथ ही कड़ी प्रतिस्र्पद्धा में रहने के लिए उनसे बहुत अधिक परिश्रम करने का दवाब भी बनाती हैं. 
  • मनोविज्ञान व बच्चों मे निराशा :  कभी -कभी फैकल्टी उनका ऐसे कमजोर बच्चों का बैच ही अलग कर देती हैं. कई बार कोचिंग संचालक एवं फैकल्टी ऐसे कमजोर बच्चो के अभिभावकों को केन्द्र पर बुलाकर उन की कमियों को सबके सामने उजागर तो करते ही हैं, उन्हें वापस ले जाने की धमकी भी देते हैं. भय का यह मनोविज्ञान इन बच्चों को निराशा से भर देता है. 
  • आईआईटी के नये नियमों के अनुसार अब प्रतियोगी छात्रों को दो के स्थान पर तीन मौके देने के नियम ने इन छात्रों को ओर भी अधिक दबाव में ला दिया है. इसी वजह से इन छात्रों को हाड़-तोड़ मेहनत करने का लक्ष्य परेशान किये हुए है. 
  • कक्षा अध्ययन और कोचिंग इन दोनों परीक्षाओं को साथ-साथ तैयार करने की बहुत बड़ी चुनौती इन टीनेजर्स छात्रों के सामने खड़ी हो रही है. इसी दबाव के कारण प्रतियोगी छात्र जबदस्त द्वंद्व में फंसे रहते हैं. 
  • एक ओर मां-बाप की आकांक्षा पूरी करने का दबाव तो दूसरी ओर प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने  बड़ा लक्ष्य.
  • एक अनजान माहौल और नए वातावरण को आत्मसात करने में भी संघर्ष
  • संवाद का अभाव :प्रतियोगिता की तीव्र होड़ से उपजने वाली निराशा को कम करने में संवाद का अभाव उन्हें अपने जीवन से हारने को मजबूर करता है| प्रतियोगी परीक्षा की जद्दोजहद और उस परीक्षा में विफल रहने पर हौसले और सांत्वना की कमी बच्चों को धीरे-धीरे अवसाद की ओर ले जा रही है. 
  • नए वातावरण में समायोजन  न होना : अभिभावकों की स्थिति यह है कि वे अपने बच्चों के रहने-खाने व उनके खर्च की व्यवस्था करके अपनी इतिश्री समझ लेते हैं. घर से निकलकर नए वातावरण में समायोजन का न होना और उसका परिवार से लिंक टूटने के कारण भी इन बच्चों के अवसाद में जाने का मुख्य कारण है

क्या उपाय कामगार हो सकते है

  • कोचिंग संस्थानो मे  एक मनोचिकित्सक के साथ-साथ एक काऊंसलर व फिजियोलॉजिस्ट की भर्ती
  • अभिभावकों की भी काउंसिलिंग करें जिससे वे अपने बच्चों की समय-समय पर कार्य निष्पादन क्षमता को जान सकें.
  • छात्रों की लगातार चिकित्सा जांच के साथ में उनके मनोरंजन की व्यवस्था 

Source: Dianikjagran, ww.samaylive.com

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