उच्चतम न्यायालय ने मांगी देनदारों की सूची

बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) की वसूली पर सुप्रीम कोर्ट सख्त है। कोर्ट ने कर्ज वसूली टिब्यूनल (डीआरटी) में ढांचागत संसाधनों की कमी पर सरकार से सवाल किए हैं। अदालत ने पूछा है कि क्या मौजूदा संसाधनों में तय समयसीमा के भीतर कर्ज वसूली का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

  • कोर्ट ने सरकार से कर्ज वसूली के समूचे तंत्र की जानकारी मांगी है।
  •  इसके अलावा कर्ज वसूली के पुराने लंबित मामलों और करोड़ से ज्यादा देनदारी वाली कंपनियों की सूची पेश करने को भी कहा है।
  • पीठ ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के फंसे कर्ज का मुद्दा उठाने वाली गैर सरकारी संस्था सेन्टर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशन की याचिका पर दिये हैं।
  • कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर पांच बिन्दुओं पर जवाब मांगा है।
  • कोर्ट ने पूछा है कि क्या डीआरटी और डीआरटी अपीलीय ट्रिब्युनल के मौजूदा ढांचागत संसाधनों और उपलब्ध स्टाफ के साथ संशोधित कानून में तय की गई समय सीमा में कर्ज वसूली का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
  • क्या नये कानून में कर्ज वसूली की जो नयी समयसीमा तय की गयी है उसके पहले मौजूदा ढांचागत संसाधनों के बारे में कोई वैज्ञानिक अध्ययन किया गया था।
  • क्या सरकार की मंशा ट्रिब्युनल्स में न्यायिक और गैर न्यायिक स्टाफ तथा अन्य ढांचागत संसाधन बढ़ाने की है अगर हां तो ट्रिब्युनल के कामकाज को प्रभावी करने के लिए संसाधन बढ़ाने की दिशा में क्या उपाय किये जाएंगे।
  • संशोधित कानून में तय की गयी समयसीमा में ट्रिब्युनल के लंबित मुकदमें निपटाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए संसाधन बढ़ाए जाने की समयबद्ध कार्ययोजना पेश की जाये।
  •  इसके अलावा कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह कर्ज वसूली ट्रिब्युनल में लंबित दस साल से ज्यादा पुराने मामलों और 500 करोड़ से ज्यादा की देनदारी वाली कंपनियों के नामों की सूची पेश करे।

Background

  • ऋण वसूली टिब्यूनलों (डीआरटी) गठन के पहले सितंबर, 1990 तक अदालतों में कर्ज वसूली के करीब 15 लाख मुकदमे लंबित थे।
  • इनमें बैंकों का 5,622 करोड़ व वित्तीय संस्थानों का 391 करोड़ फंसे थे।
  • 1993 में डीआरटी एक्ट बना और टिब्यूनल गठित हुए। देशभर में 34 डीआरटी और पांच अपीलीय टिब्यूनल हैं। इनमें 2015-16 में 34,000 करोड़ की राशि से जुड़े करीब 16,000 मामले निपटे

New data on recovery:

  • 29 दिसंबर, को जारी आरबीआइ की नई रिपोर्ट इस नाकामी की की पोल फिर खोल रही है।
  • वर्ष 2015-16 की बात करें तो लोक अदालतों व ऋण वसूली टिब्यूनलों (डीआरटी) और प्रतिभूति कानून (सरफेसी एक्ट) के तहत बैंक कुल 4,429.48 अरब रुपये के फंसे कर्जे के मामले लेकर आये थे। इसमें से सिर्फ 455.36 अरब रुपये की वसूली ही संभव हो पाई थी।
  • यह कहानी पिछले पांच-छह वर्षो से दोहराई जा रही है। इन वसूली तंत्रों के पास जितनी राशि के फंसे कर्जे लाए जाते हैं, उसका 10 से 20 फीसद ही वसूल हो पाता है।
  • इस दौरान सरकार डीआरटी को ज्यादा अधिकार दे चुकी है। प्रतिभूति कानून को मजबूत बनाने के लिए इसमें कई बार संशोधन कर चुकी है। वित्तीय स्थायित्व पर आरबीआइ की ताजा रिपोर्ट बताती है कि सरकार चाहे जो भी दावा करे अगले दो वित्त वर्षों तक एनपीए की समस्या दूर होने नहीं जा रही है। अगर अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार नहीं हुआ तथा विभिन्न उद्योगों की मांग नहीं बढ़ी, तो फंसे कर्ज के जाल में सरकारी बैंक और जकड़ेंगे।

सितंबर, तक के आंकड़ों के मुताबिक देश के 41 बैंकों का शुद्ध एनपीए 5.65 लाख करोड़ रुपये का है। देश के इतिहास में एनपीए का आकार इतना ज्यादा कभी नहीं हुआ है। फंसे कर्जे बढ़ने का असर यह हो रहा है कि बैंकों को अपने मुनाफे का बड़ा हिस्सा अलग करना पड़ रहा है।

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