सन्दर्भ :- जीएसएलवी के जरिये इनसैट-3डीआर के सफल प्रक्षेपण को उभरते भारत की महत्वाकांक्षाओं और वैज्ञानिक क्षमताओं का आदर्श मेल
★अंतरिक्ष अभियानों के क्षेत्र में भारत ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। इसरो ने इनसैट- 3डीआर का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी (जियोसिंक्रॉनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल) -एफ 05 के जरिए किया गया.
- 2211 किलो वजनी इनसैट- 3डीआर एक अत्याधुनिक मौसमी उपग्रह है. इससे मिली जानकारियां मौसम विज्ञान, खोज और आपदा- राहत संबंधी अभियानों के लिए बेहद उपयोगी साबित होंगी.
★यह उपलब्धि भारत के लिए कई मायनों में खास है. नौ प्रायोगिक उड़ानों के बाद यह जीएसएलवी का पहला ऑपरेशनल लांच है. इसके जरिये भारत ने संदेश दे दिया है कि वह भी अरबों डॉलर के व्यावसायिक स्पेस लांचर बाजार में कूदने के लिए तैयार है.
★ कम लागत के चलते कई देश उसकी तरफ आकर्षित हो सकते हैं. उदाहरण के लिए इसरो अगर यही उपग्रह अमेरिका या रूस जैसे देश से बनवाकर वहीं से उसे लांच करवाता तो इसका खर्च करीब 800 करोड़ रु बैठता जबकि यहां यह काम इसके आधे यानी 400 करोड़ में ही हो गया.
★जीएसएलवी के जरिये ही चांद के लिए भारत का दूसरा अभियान चंद्रयान -2 लांच किया जाएगा. अभी तक इस पर अनिश्चितता बनी हुई थी क्योंकि जीएसएलवी के पिछले नौ प्रायोगिक परीक्षणों में से पांच असफल रहे थे. इस कारण जीएसएलवी को नॉटी ब्वॉय भी कहा जाता था. लेकिन अब इस तरह की आशंकाएं काफी हद तक दूर हो गई हैं.
★यह उपलब्धि एक और लिहाज से भी अहम है. क्रायोजेनिक इंजनों की मदद से जीएसएलवी का यह पहला सफल ऑपरेशनल लांच है. इस तरह के इंजनों में ईंधन के तौर पर तरल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है.
★इससे पहले भी तीन बार जीएसएलवी को क्रायोजेनिक इंजनों की मदद से लांच किया गया था लेकिन, यह प्रायोगिक स्तर पर हुआ था. अब ऑपरेशनल लांच को अंजाम देकर भारत ने क्रायोजेनिक तकनीक के मामले में कुशलता की हर परीक्षा पास कर ली है.
★1990 के दशक में रूस ने पश्चिमी देशों के दबाव में आते हुए भारत को यह तकनीक देने से इनकार कर दिया था. तब भारत ने फैसला किया था कि वह अपने क्रायोजेनिक इंजन खुद बनाएगा. दो दशक बाद अब जब उसने यह उपलब्धि हासिल कर ली है तो जैसे वक्त के चक्के का एक फेरा भी पूरा हो गया है.