वित्त वर्ष में बदलाव

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वित्त मंत्री अरुण जेटली लोकसभा को सूचित किया कि सरकार वित्त वर्ष को जनवरी से दिसंबर में तब्दील करने पर विचार कर रही है|

  • इस संबंध में सरकार की सबसे प्रमुख दलील यह है कि वह केंद्रीय बजट और दक्षिण पश्चिम मॉनसून को जोडऩा चाहती है।
  •  एक तर्क यह भी है कि बजट को कृषि आय हासिल होने के तत्काल बाद तैयार किया जाना चाहिए क्योंकि यह आय भारत जैसे देश में एक बड़ी आबादी के लिए बहुत मायने रखती है। बजट को फरवरी में पेश करने पर भी मॉनसून के बारे में सही अनुमान नहीं लगाया जा सका और इसलिए संसाधनों के आवंटन का औचित्य भी साबित नहीं हुआ।
  • दूसरी दलील का संबंध काम के मौसम और धन के इस्तेमाल से है। चूंकि विनिर्माण का अधिकांश काम मॉनसून की अवधि के बाद होता है इसलिए इस संबंध में आवंटित धनरािश का कोई इस्तेमाल नहीं हो पाता है।
  • लब्बोलुआब यह कि बजट प्रस्तुत करने का वक्त कुछ ऐसा है कि संसाधनों के आवंटन और उनके इस्तेमाल में तारतम्य नहीं बन पा रहा। ये दलीलें सन 1970 और 1980 के दशक की पुरानी दलील हैं लेकिन देश की अर्थव्यवस्था के बदलते ढांचे की बदौलत समय बीतने के साथ उनका औचित्य भी खो चुका है।

Point In opposition

  • उदाहरण के लिए जहां तक कृषि पर मॉनसून के असर की बात है तो यह बात ध्यान रखने लायक है कि मॉनसून से सीधे प्रभावित होने वाली फसलों की देश के सकल घरेलू उत्पाद में बमुश्किल 11 फीसदी की हिस्सेदारी है।
  • इतना ही नहीं स्थानीय परिस्थितियों के मुताबिक फंड के इस्तेमाल में मंत्रालयीन स्तर पर आसानी से तब्दीली लाई जा सकती है और इसके लिए वित्त वर्ष में कोई बदलाव लाने की जरूरत नहीं।

वहीं दूसरा पहलू यह है कि वित्त वर्ष में बदलाव लाने से देश की अर्थव्यवस्था में लेनदेन की लागत बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं देश की लगभग तमाम अहम आर्थिक संस्थाओं को अपनी लेखा व्यवस्था में बदलाव करना होगा। इससे न केवल अनुपालन की लागत में बढ़ोतरी होगी बल्कि इसके चलते एक और विसंगति पैदा होगी जबकि उससे बचा जा सकता था। देश ने हाल ही में इंड-एस नामक एक नया लेखा मानक अपनाया है। इस बीच वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था के लागू होने से भी महत्त्वपूर्ण उथलपुथल मची है। आखिरी बात यह कि एक नई वित्त वर्ष व्यवस्था लागू करने से मौजूदा वृहद आर्थिक आंकड़ों की समझ और अधिक उलझाऊ होती जाएगी। पहले ही इस मोर्चे पर बहुत भ्रम है।

एक नया वित्त वर्ष तब सही होता जबकि इसके लाभ बहुत अधिक होते। चूंकि इन लाभ के बारे में कोई स्पष्टï जानकारी नहीं है इसलिए सरकार का ध्यान अर्थव्यवस्था की स्थिति दुरुस्त करने पर होना चाहिए, बजाय कि एक और उथलपुथल मचाने वाला बदलाव लाने के।

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