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देश में नई मेट्रो बनाने के काम में निजी क्षेत्र का सहयोग लेना जरूरी बना दिया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नई मेट्रो नीति को मंजूरी दी है, जिसके तहत अब केंद्र सरकार से फंड पाने के लिए पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल अनिवार्य होगा।
- राज्यों को अधिकार होगा कि वे भाड़ा निर्धारण और उसकी समीक्षा के लिए एक स्थायी दर निर्धारण प्राधिकरण बनाएं।
- नई नीति के तहत मेट्रो परियोजनाओं के तीन ढांचे होंगे।
- एक में केंद्र कुल खर्चे का 10 फीसदी देगा।
- केंद्र और राज्य 50-50 फीसदी राशि देंगे।
- केंद्र की सहायता वाला पीपीपी मॉडल होगा।
- लेकिन इन तीनों विकल्पों में निजी क्षेत्र की भागीदारी अनिवार्य होगी।
वह चाहे पूरी परियोजना की जिम्मेदारी के रूप में हो या प्राइवेट पार्टी को ऑटोमटिक फेयर क्लेक्शन, ऑपरेशन या मेनटेनेंस की जिम्मेदारी सौंपी जाए।
View of government:’
सरकार का कहना है कि मे्ट्रो परियोजनाओं में लगने वाली अकूत धनराशि को देखते हुए मेट्रो में निजी क्षेत्र को लाने की बात कही गई है।
Opposition of Government move:
- मेट्रोमैन ई श्रीधरन का कहना है कि मेट्रो में पीपीपी मॉडल दुनिया में कहीं भी सफल नहीं हुआ है। कोई भी प्राइवेट कंपनी इसमें पैसा नहीं लगाना चाहेगी क्योंकि इसमें मुनाफे की गुंजाइश नहीं है।
- निजी कंपनियां अपने निवेश पर 12-15 फीसदी का रिटर्न चाहती हैं, लेकिन आज तक किसी मेट्रो प्रॉजेक्ट ने 2 से 3 प्रतिशत से ज्यादा रिटर्न नहीं दिया।
Understanding Philosophy behind Government move
मेट्रो रेल भारत में एक सियासी झुनझुना बन गई है। दिल्ली में इसकी सफलता को देखकर लोगों ने इसे हर शहर की परिवहन व्यवस्था का सर्वोत्तम विकल्प मान लिया। राजनेताओं ने इसे जनता को खुश करने का एक बड़ा जरिया समझ आनन-फानन में कई राज्यों में इसके प्रॉजेक्ट शुरू करवा दिए तो बाकी राज्यों में भी इसकी मांग उठने लगी। ऐसे में केंद्र सरकार पर यह दबाव था कि वह इसे लेकर एक निश्चित नीति बनाए।