साफ़ पर्यावरण और हवा के लिए गंभीर प्रयासों की जरुरत

साल 2014-15 की सर्दियों के करीब 34 फीसदी दिनों में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर तक पहुंच गया था। सरकार के अपने सूचकांकों के मुताबिक इस तरह की स्थिति न केवल कमजोर बल्कि सभी लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से चुनौतीपूर्ण है। उसके अगले साल की सर्दियों में तो करीब 68 फीसदी दिनों में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर पर था। साल 2016-17 की सर्दियों की तो अभी शुरुआत ही हुई है और हमें कई दिनों तक छाई रही धुंध के रूप में वायु प्रदूषण की गंभीरता का आभास बखूबी हो चुका है।

कदम उठाने की जरुरत

हर साल होने वाली इस समस्या को रोकने के लिए  कुछ कदम तो तत्काल उठाए जाने की जरूरत है जबकि कुछ कदम दीर्घकालिक हो सकते है । सभी मामलों में हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि जो भी कदम उठाया जा रहा है वह तय समय के भीतर पूरा हो

क्या कदम हो सकते है :

  • वाहनों, उद्योगों और थर्मल पावर प्लांट के उत्सर्जन के अलावा कचरा जलाना वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं। अंत: इन पर नियंत्रण लगाया जाए | भारत स्टेज VI का implimantation भी इसमें एक अहम् भूमिका निभाएगा |
  • धूल भी इसका अहम स्रोत है और इस पर लगाम के लिए सड़कों पर गाडिय़ों की आवाजाही को नियंत्रित करने की जरूरत है। इसके लिए ईंधन की गुणवत्ता, वाहनों की उत्सर्जन तकनीक सुधारने की जरूरत है ताकि वाहनों से होने वाले प्रदूषण को सीमित दायरे में लाया जा सके।
  • हमें कूड़े-कचरे के ढेर को बेहतर तरीके से ठिकाने की तकनीक भी अपनाने की जरूरत है। हम कूड़े को जला नहीं सकते हैं और इसे समझने के लिए किसी रॉकेट विज्ञान की समझ की दरकार नहीं है। 
  • सरकार को मजबूत होने की जरुरत: वायु प्रदूषण से निपटने की भारत की कोशिशें हमेशा सवालों के घेरे में रही हैं। उदाहरण के लिए, वाहन उत्सर्जन और ईंधन मानकों की प्रगति के मुद्दे पर ही नजर डालिए। उच्चतम न्यायालय ने 1999 में ऑटो कंपनियों की चाहत के विपरीत जाते हुए ईंधन मानकों को लागू करने का आदेश दिया था। इन कंपनियों के वकीलों ने लगातार यह साबित करने की कोशिश की कि इस गैरजरूरी कदम से न केवल लोगों को असुविधा होगी बल्कि कोई खास फायदा भी नहीं होगा। लेकिन तमाम विरोध के बावजूद ईंधन मानक लागू किए गए और शहरों में उत्सर्जन स्तर कम करने में मदद भी मिली।
  • केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2016 में बीएस-6 स्तर के ईंधन मानक को वर्ष 2020 तक लागू करने का ऐलान किया है। पहले इस ईंधन मानक को वर्ष 2028 तक लागू किया जाना था लेकिन सरकार ने ऑटो उद्योग की राय और आपत्तियों को दरकिनार करते हुए इसे पहले ही लागू करने की घोषणा कर दी है। माना जा रहा है कि इस कदम में वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने में काफी मदद मिलेगी लेकिन इसमें अभी वक्त लगेगा। 
  • Public transport पर ख़ास जोर देना होगा और सुनिश्चित करना होगा ताकि लोग  उसका उपयोग करे |
  • शहर में green spaces और planning पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा

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