- केन्द्र सरकार ने देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) में देशभर से 5 सहायक बैंकों का विलय करने का फैसला लिया है.
- इस फैसले से अब स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला और स्टेट बैंक ऑफ ट्रैवेनकोर के अधीन हो जाएंगे.
- पांच सहायक बैंकों के विलय से केन्द्र सरकार को उम्मीद है कि इससे देश की बैंकिंग व्यवस्था मजबूत होगी. इस विलय से जहां सहायक बैंकों के सभी ग्राहकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एसबीआई की सभी सुविधाओं का फायदा मिलेगा.
- केन्द्र सरकार ने यह फैसला अपने इंद्रधनुष एक्शन प्लान के तहत लिया है.
- सरकार को उम्मीद है कि इससे देश के बैंकिंग सेक्टर की कार्यक्षमता और मुनाफा दोनों में इजाफा होगा.
- इन सहायक बैंकों के विलय से सरकार को उम्मीद है कि देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक मर्जर के पहले साल में ही 1000 करोड़ रुपये से अधिक सेविंग्स कर लेगी.
- नोटबंदी के बाद सरकार के इस फैसले से इन सभी सहायक बैंकों में पड़ी प्रतिबंधित करेंसी के मैनेजमेंट के साथ-साथ नई करेंसी के संचार के काम को बेहतर किया जा सकेगा. सरकार की दलील है कि जहां 6 अलग बैंक इस काम को करते वहीं अब एक बैंक पूरे काम को करेगा.
एसबीआई ने पिछले साल ही सब्सिडियरी बैंकों और भारतीय महिला बैंक को अपने साथ मिलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इसके बाद उसने इस प्रपोजल को सरकार के पास भेजा था।
इन बैंकों के मर्जर के बाद जो एंटिटी बनेगी, उसके पास 37 लाख करोड़ का एसेट बेस और 50 करोड़ से अधिक कस्टमर्स होंगे। एसबीआई ने 2008 में सहयोगी बैंक स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र को अपने साथ मिलाया था। इसके दो साल बाद उसने स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का मर्जर अपने साथ किया था।
एसबीआई ने हमेशा कहा है कि वह सहयोगी बैंकों को अपने साथ मिलाना चाहता है। हालांकि, कैपिटल की कमी के चलते वह अब तक ऐसा नहीं कर पाया था। इन बैंकों की एंप्लॉयीज यूनियन भी मर्जर का विरोध कर रही हैं। सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक को मिलाने के बाद एसबीआई का साइज इतना बड़ा हो जाएगा कि वह दुनिया के बड़े बैंकों का मुकाबला कर सकेगा। दिसंबर 2015 तक इस बैंक पास 22,500 ब्रांच और 58,000 एटीएम थे। अकेले एसबीआई की 16,500 ब्रांच हैं। उसकी 191 ब्रांच विदेश में हैं, जो 36 देशों में फैली हैं।