#business standard editorial
शहरों में डेंगू और चिकनगुनिया ने हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले रखा था । इनकी चपेट में आए लोग तेज बुखार, जोड़ों के दुखदायी दर्द और गहरी थकान से जूझ रहे थे। लेकिन बीमार लोगों के कामकाज छोड़कर घर बैठने की मजबूरी कहीं बड़ी समस्या खड़ी कर दी थी क्योंकि चलने-फिरने में अक्षम हो जाने से लोग अपने रोजमर्रा के काम भी नहीं निपटा पा रहे हैथे जिससे उन्हें लंबे समय तक नौकरी से छुट्टी लेनी पड़ रही । जो लोग दैनिक वेतनभोगी हैं उनके लिए तो हालत और भी बदतर थे । मच्छरों के काटने से फैलने वाली ये विषाणु-जनित बीमारियां यह बताती है कि हमारे शहरी परिवेश का भारी पैमाने पर कुप्रबंधन हमें कैसे बीमार बनाया ।
इसके कारक :
शहरों में चारों तरफ फैले हुए कूड़े-कचरे, धूल के ढेर : यह एक तथ्य है कि डेंगू और चिकनगुनिया मूलत: शहरी परिवेश की बीमारियां हैं। मलेरिया का वाहक मादा एनोफेलिस मच्छर जहां बहते हुए पानी में पैदा होता है वहीं डेंगू, चिकनगुनिया, पीत ज्वर और जीका वायरस का जन्मदाता एडिस एजिप्टी मच्छर ठहरे हुए साफ पानी में पैदा होता है। अध्ययनों से पता चला है कि एडिस एजिप्टी मच्छर के फैलाव के लिए शहरी इलाके अधिक अनुकूल होते हैं। इस मच्छर ने कृत्रिम प्रजनन आवासों के मुताबिक भी खुद को बेहतर ढाल लिया है। यहां तक कि बेकार पड़े टायर और मामूली पानी वाले ढक्कन में भी यह प्रजनन कर सकता है।
सघनता : शहरी क्षेत्रों में रोगों के विषाणु का फैलाव भी आसानी से हो सकता है। वैसे तो यह मच्छर केवल 100 मीटर के दायरे में ही घूम सकता है लेकिन उसके डंक का शिकार व्यक्ति तो एक बड़े क्षेत्र में भ्रमण करता है। संक्रमित व्यक्ति जब किसी दूसरे क्षेत्र में जाता है और वहां पर उसे कोई मच्छर काटता है तो वह भी इस विषाणु का वाहक बन जाता है। शहरी इलाकों में सघन आबादी होने से इन बीमारियों का फैलाव भी तेजी से होता है।
failure of process and system to detect : अधिकांश मामलों में बीमारी के लक्षण तो होते हैं लेकिन रक्त परीक्षण में उसकी पुष्टि नहीं होती है। कई लोग तो अस्पताल भी नहीं जाते हैं और न ही अपना मेडिकल टेस्ट करवाते हैं। ऐसे में हमें पता ही नहीं चल पाता है कि बीमारी की गंभीरता कितनी है? हम तो बीमारी की वजह के बारे में भी ठीक से नहीं जानते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि परीक्षणों के पर्याप्त संवेदनशील न होने या विषाणु के ताकतवर होने से ऐसा हो रहा है। डॉक्टर इस बात की भी आशंका जता रहे हैं कि कहीं यह कोई नया विषाणु ही न हो। उनकी नजर में तो यह एक रहस्य ही है।
क्यों यह मच्छर पनपते है : पारंपरिक तौर पर यही माना जाता रहा है कि यह केवल साफ पानी में प्रजनन करता है। इसी वजह से नगरपालिकाएं छतों पर बनी पानी की टंकियों और अन्य पानी के टैंकों पर अपना ध्यान केंद्रित करती रही हैं। लेकिन इस बात को नजरअंदाज किया जाता है कि यह मच्छर किसी भी जगह में पनप सकता है जहां अपेक्षाकृत साफ पानी जमा हुआ है। जलवायु परिवर्तन के साथ इसके किसी संबंध के बारे में भी कुछ साफ नहीं है। जलवायु परिवर्तन के चलते भारी बारिश की घटनाएं जोर पकडऩे लगी हैं और इसी तरह अधिक तेज धूप भी निकल रही है। इससे मच्छरों के प्रजनन के लिए हालात काफी अनुकूल हो जाते हैं। बेमौसम बारिश भी मच्छरों के प्रजनन काल को बढ़ाने का काम कर रही है। परन्तु हम इस मुलभुत तथ्य की ही अनदेखी कर रहे है और साफ़ सफाई पर बहुत ही कम ध्यान दे रहे है जिससे हर साल हमें इसे झेलना पड़ता है |
क्या छिड़काव full proof mechanism है :
अगर कीटनाशक दवाओं के छिड़काव से वयस्क मच्छर मर भी जाते हैं तो लार्वा पर वह बेअसर होगा। इसका मतलब है कि मच्छरों का प्रजनन चक्र जारी रहेगा और लोग परेशान होते रहेंगे।
क्या करना आवश्यक :
- मच्छरों का प्रजनन रोकने के लिए जरूरी है कि उसके लिए अनुकूल परिवेश मुहैया करा रहे सभी कारकों को नष्ट किया जाए।
- इसके लिए हमें शहरों में बड़े स्तर पर सफाई अभियान चलाना होगा।
- हमने लंबे समय से अपने आसपास कचरे को जमा होने दिया है। उस आदत को सुधारना होगा
- व्यापक पैमाने पर सफाई होना हमारा इकलौता लक्ष्य होना चाहिए।
डेंगू और चिकनगुनिया शहरी भारत के लिए खौफनाक स्वप्न बन चुके हैं। जब तक हम जुनून की हद तक जाकर सफाई अभियान नहीं चलाएंगे, ये हमें दहशत में डालते रहेंगे।