नौकरशाही और उसकी जवाबदेही

सन्दर्भ : भारतीय पुलिस सेवा के दो वरिष्ठ अधिकारियों को कथित तौर पर काम में कोताही बरतने के चलते बर्खास्त 

किस नियम के तहत

  • अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु सह सेवानिवृत्ति लाभ) नियम-1958 के तहत प्रशासनिक अधिकारियों की एक बार पंद्रह साल और दूसरी बार पच्चीस साल की सेवा पूरी होने पर उनके कामकाज की समीक्षा की जाती है। दोनों अधिकारियों का सेवा काल पंद्रह साल पूरा हो चुका है।
  • इसी नियम के तहत दोनों अधिकारियों के कामकाज में कोताही बरतने का आरोप पुष्ट पाया गया। विस्तृत समीक्षा के बाद इन दोनों के खिलाफ जनहित में यह कार्रवाई की गई है।
  • दो दशक बाद किसी प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ इस तरह का फैसला किया गया है। माना जा रहा है कि इससे दूसरे अधिकारियों को सबक मिलेगा।

एक कदम नौकरशाही में जवाबदेहिता लाने की और

लंबे समय से प्रशासनिक सुधार की मांग उठती रही है। इसे लेकर कई समितियां भी गठित की गर्इं, जिन्होंने कुछ अहम सुधार के लिए सुझाव भी दिए। मगर उन पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया। यह छिपी बात नहीं है कि बहुत सारे प्रशासनिक अधिकारी सत्ता पक्ष की मंशा के अनुरूप खुद को ढालने में ही अपना भला समझते हैं। इससे आम लोगों के हितों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जन-सरोकार के कामों से लगातार उनकी दूरी बनी रहती है। वैसे भी भारतीय प्रशासनिक ढांचा कुछ इस तरह का है कि आम लोगों और अधिकारियों के बीच काफी दूरी बनी रहती है। इस दूरी को समाप्त करने पर काफी समय से बल दिया जाता रहा है, मगर प्रशासनिक सुधार की दिशा में कदम न बढ़ाए जाने के कारण इसमें अब तक कोई बदलाव नहीं आ पाया है।

  • यों अधिकारियों के सरकार के साथ सहयोग का रुख न अपनाने पर तबादले वगैरह के फैसले तो किए जाते रहते हैं, जिसमें अधिकारियों के कामकाज में सरकार के अनावश्यक दखल के आरोप भी लगते रहते हैं। मगर किसी अधिकारी को मुस्तैदी से काम न करने की वजह से सेवानिवृत्त कर दिया जाना निस्संदेह नौकरशाही के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।

जवाबदेहिता आज की आवश्यकता

  • सरकार की तमाम योजनाएं प्रशासनिक अधिकारियों के बल पर ही कामयाब हो पाती हैं। अगर वे अपना कर्तव्य निभाने में लापरवाही बरतते हैं, तो योजनाएं चाहे जितनी दूरगामी हों, वे नाकाम ही साबित होती हैं। इसलिए अपेक्षा की जाती है कि प्रशासनिक अधिकारी अधिक से अधिक जनता से निकटता बनाएं, उसकी जरूरतों को समझें और स्थितियों के अनुरूप कदम बढ़ाएं।
  • अनेक प्रशासनिक अधिकारियों ने अपने कामकाज से मिसाल कायम की है। मगर उनसे प्रेरणा लेने के बजाय अधिकतर अधिकारी लोगों से दूरी बना कर और उनमें भय का माहौल पैदा कर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करते देखे जाते हैं।
  • योजनाएं उनके लिए कमाई का जरिया नजर आती हैं। ऐसे में अगर केंद्र सरकार ने दो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सेवा निवृत्त करने का फैसला किया है, तो उम्मीद बनी है कि वह प्रशासनिक सुधार की दिशा में कठोर कदम उठाने की पहल करेगी।

हालांकि जिस तरह उस पर वरिष्ठ अधिकारियों को नजरअंदाज करके कुछ अधिकारियों को अहम पदों पर बिठाने के आरोप लगे हैं, उससे उसकी मंशा पर भी सवाल उठे हैं। ऐसे में सरकार अगर सचमुच प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करना चाहती है तो उसे प्रशासनिक सुधार की दिशा में व्यावहारिक पहल करनी चाहिए।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download