What is there in plan: वित्त वर्ष 2017-18 से 2019-20 तक के लिए इस एक्शन प्लान के जरिए नीति आयोग और केन्द्र सरकार की तैयारी 2019-20 तक देश में चौबीस घंटे बिजली, सस्ता डीजल और पेट्रोल उपलब्ध कराने के लिए सुधार की जरूरत और 100 स्मार्ट सिटी में गैल डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क खड़ा करने की है.
- नीति आयोग के एक्शन प्लान के मुताबिक आजादी के बाद देश में बदलाव के पहले लक्षण 1980 के दशक में दिखना शुरू हुए और 1991 देश की अर्थव्यवस्था के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव और अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में 6 फीसदी विकास दर संभव हुई और फिर मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 8 फीसदी के ग्रोथ ट्रैक पर अर्थव्यवस्था पहुंची. अब नीति आयोग इसे अगले तीन वर्षों तक मजबूत रखते हुए 2019 तक शिक्षा, स्वास्थ, एग्रीकल्चर, ग्रामीण विकास, डिफेंस, रेलवे, राजमार्ग पर अपना खर्च बढ़ाते हुए केन्द्र सरकारी की सबका साथ-साबका विकास के फॉर्मूले पर काम करेगी.
- मनरेगा का कराया जाए सोशल ऑडिट सरकारी शोध संस्थान नीति आयोग ने ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा का सामाजिक अंकेक्षण अनिवार्य किए जाने का सुझाव दिया है. आयोग ने अपने तीन वर्षीय कार्य एजेंडे में कहा है कि किसी स्वतंत्र इकाई से मनरेगा का सामाजिक अंकेक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए. आयोग के मुताबिक महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून मनरेगा को मजबूत बनाया जाना चाहिए.
Analysing 3 year action plan:
नीति आयोग के पूर्ववर्ती योजना आयोग के ही तर्ज पर बनी योजना प्रक्रिया के अनुरूप इस एजेंडे की शुरुआत इस प्रश्न से होती है कि सरकारी संसाधनों की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? इसमें दलील दी गई है कि कुल व्यय में गैर विकासात्मक राजस्व व्यय की हिस्सेदारी को वर्ष 2015-16 के 47 फीसदी से घटाकर वर्ष 2019-20 तक 41 फीसदी किया जाए। इसके अलावा पूंजीगत व्यय में सतत सुधार किया जाए। एजेंडे में कहा गया है कि पुराने योजनागत, गैर योजनागत व्यय के अंतर को खत्म करने से इस बात का स्पष्टï अंदाजा लगाया जा सकेगा कि उत्पादक व्यय क्या हो सकता है?
- अगर राजस्व की बात करें तो एजेंडा में मध्यम अवधि के ढांचे की बात कही गई है जिसमें यह मान लिया गया है कि अगले तीन साल में कर राजस्व में 14 से 17 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी। कहा गया है कि यह जीडीपी में वृद्घि अप्रत्यक्ष कर में मामूली वृद्घि के रूप में होगी।
- वहीं प्रत्यक्ष कर के मामले में यह बढ़ोतरी अधिक हो सकती है। एजेंडे के मध्यम अवधि के राजकोषीय ढांचे में विनिवेश प्राप्तियों को लेकर भी आशावादी अनुमान जताए गए हैं। अगले दो वित्त वर्ष में हर वर्ष 80,000 करोड़ रुपये की प्राप्ति का अनुमान है। इसे देखते हुए ही राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के मार्ग पर बढऩे और वर्ष 2018-19 तक राजकोषीय घाटे को कम करके जीडीपी के 3 फीसदी तक लाने की बात कही गई है। इसके लिए वर्ष 2019-20 तक राजस्व घाटे को कम करके जीडीपी के 1 फीसदी से कम के स्तर पर लाना होगा।
- यह एजेंडा कम, मध्य या उच्च वृद्घि जैसे विभिन्न परिदृश्यों के अधीन घाटे को लेकर भी मशविरा देता है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एजेंडे के मुताबिक राजकोषीय सुदृढ़ीकरण स्वास्थ्य पर किए जाने व्यय को बढ़ाकर 1 लाख करोड़ रुपये या कुल व्यय का 3.6 फीसदी करने की गुंजाइश भी तैयार करता है।
- शिक्षा पर किए जाने व्यय में भी भारी इजाफे का इरादा जाहिर किया गया है। इसके अलावा सड़कों तथा रेलवे के पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी की बात भी इसमें शामिल है। उम्मीद यह की गई है कि सड़क और रेल क्षेत्र का पूंजीगत व्यय मौजूदा 71,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर वर्ष 2019-20 तक 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाया जा सकेगा।
कुलमिलाकर एजेंडा सुधारवादी और आशावादी नजर आ रहा है। ऐसे में उसकी यह दलील सही है कि निर्यात को बढ़ावा देने की सरकार की नीतियों में अहम भूमिका रहेगी। कहने का तात्पर्य यह है कि समुचित मेहनताने वाले रोजगार तैयार करना अहम होगा। एजेंडा में कहा गया है कि केवल चार विकासशील देशों ने तीन दशक में अपने आप में सफलतापूर्वक बदलाव किया है। ये देश हैं, दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर और चीन। इनमें से प्रत्येक मामले में निर्यात की अहम भूमिका रही है। एजेंडे में निर्यात एवं श्रम आधरित क्षेत्रों को लेकर सुधार की जो सूची है वह बहुत सुविचारित है। सवाल यह है कि क्या सरकार इस सलाह पर ध्यान देगी और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को प्राथमिकता बनाते हुए भी रोजगारपरक क्षेत्रों में लचीलेपन और सुधार को अंजाम देगी। इस प्रश्न का उत्तर ही यह बताएगा कि नीति आयोग अपने पूर्ववर्ती से अधिक प्रभावी है या नहीं?