सौर ऊर्जा क्षेत्र की तस्वीर में बदलाव

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भारत के सामने बिजली-सुरक्षा और प्रदुषण की समस्या

इस समय देश का बिजली उद्योग भारी विडंबना से गुजर रहा है। ऊर्जा के सबसे शुद्घ माध्यमों में से एक सौर ऊर्जा को कमोबेश उन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिनसे कोयला आधारित बिजली उत्पादन को जूझना पड़ा है।कोयले से बनने वाली बिजली सबसे अधिक प्रदूषण उत्पन्न करके बनती है। अगर इन समस्याओं को हल नहीं किया गया तो सन 2022 तक 100 गीगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता वाला देश बनने की भारत की ख्वाहिश, ख्वाहिश ही रह जाएगी। फिलहाल देश की बिजली उत्पादन क्षमता 8.5 गीगावॉट है। 

सौर ऊर्जा को विकसित  करने के लिए सरकार के बुनियादी कदम

अगर हमें सन 2022 तक सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा (60 गीगावॉट) के लक्ष्य हासिल करने हैं तो इस मदद में करीब 200 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। इन लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश में सरकार ने एक व्यापक ढांचा पेश किया है। इसका लक्ष्य है :

  • इस क्षेत्र को पारंपरिक माध्यमों की तुलना में अधिक व्यवहार्य और प्रतिस्पर्धी बनाना।
  • वर्ष 2010 में राष्ट्रीय सौर मिशन की मदद से सौर क्षमता में इजाफा करने की शुरुआत की गई। इस दौरान सौर पार्क और सब्सिडी आदि से जुड़ी पहल की गईं। इसके अलावा वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) पर भी ध्यान दिया गया। 
  • फरवरी 2016 में सरकार ने तीसरी वीजीएफ योजना पेश की। इसके लिए 5,050 करोड़ रुपये का कोष निर्धारित किया गया। इसका क्रियान्वयन भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई) की मदद से किया जाना था। इस वीजीएफ योजना का लक्ष्य 5,000 मेगावॉट क्षमता स्थापित करना है। इसके साथ ही तीन वीजीएफ योजनाओं की मदद से कुल क्षमता बढ़कर 7,750 मेगावॉट तक पहुंच जाएगी। 
  • एसईसीआई ने बिजली उत्पादकों के साथ बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए और थोक खरीदारों और डेवलपरों के साथ भी एक के बाद एक बिजली खरीद समझौते किए गए। एसईसीआई के लिए वीजीएफ की व्यवस्था सरकार बजट में करती है और टैरिफ भुगतान विभिन्न इकाइयों और थोक खरीदारों से जुटाई गई राशि से की जाती है। संस्थागत रूप से देखा जाए तो एसईसीआई ने कई बदलाव देखे हैं। वह गैर मुनाफे वाले संगठन से एक ऐसे कारोबारी संगठन में बदल गया है जिसे मुनाफा कमाने की इजाजत है। अब उसे सलाह-मशविरे से लेकर विभिन्न प्रकार की सेवाएं देने तक की इजाजत प्रदान कर दी गई है। 

कुछ चुनौतियां

  • बहुत बड़ी संख्या में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के सामने अव्यवहार्य होने का जोखिम उत्पन्न हो गया है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि डेवलपर्स ने संबंधित अनुबंध हासिल करने के लिए अत्यंत कम शुल्क दरों की बोली लगाई। जबकि उनको पता था कि सौर ऊर्जा की अधिकतम पूंजीगत लागत हाल के वर्षों में नाटकीय रूप से गिरी है। ऐसी आक्रामक बोली प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ऐसी दरें सामने आईं जिसके चलते परियोजना अवधि के दौरान प्रतिफल की दरें निवेशकों को देखते हुए अत्यधिक अनाकर्षक हैं। इसकी वजह से वित्तीय संवरण हासिल करने में कई गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। 
  • इस समस्या में एक और इजाफा यह है कि बिजली की मुख्य खरीदार यानी बिजली वितरण कंपनियां अक्सर बिजली निर्माता कंपनियों को समय पर और नियमित भुगतान नहीं कर पातीं। भूमि अधिग्रहण और जमीन खाली कराने आदि के मुद्दे भी संकट में इजाफा कराने वाले हैं। इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि सौर ऊर्जा की दरों में भी गिरावट आई है, बैंकर और निवेशक कई सौर ऊर्जा परियोजनाओं की व्यवहार्यता को लेकर काफी परेशान हैं। 

क्या आवश्यकता

  • दीर्घकालिक स्थायित्व की आधारशिला होनी चाहिए राष्ट्रीय सौर मिशन के अधीन क्षमता में इजाफे की एक दीर्घकालिक योजना तैयार करना। इसमें निजी-सार्वजनिक भागीदारी वाली परियोजनाओं और सरकारी परियोजनाओं को लेकर लक्ष्य तय होने चाहिए। शायद यहां सबसे बेहतर उदाहरण सड़क क्षेत्र और राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम है। इस दौरान इसे कई वर्षों का लक्ष्य लेकर चलना चाहिए और सड़क क्षमता सुधार के कई स्वरूपों पर काम करना चाहिए।
  •  कटु से कटु आलोचक भी इस बात से इनकार नहीं करेंगे कि एनएचएआई के निर्माण ने देश में सड़क निर्माण के नेटवर्क के व्यापक विकास को अत्यावश्यक विस्तार प्रदान किया। परंतु सौर ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए ऐसा कार्यक्रम चलाने के लिए भी ऐसे ही एक संस्थान की आवश्यकता होगी जो इस क्षेत्र के लिए नोडल एजेंसी के रूप में काम करता हो। कह सकते हैं कि सौर ऊर्जा क्षेत्र के लिए एसईसीआई यह भूमिका निभा सकती है।
  • एसईसीआई को नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का मुख्य परिचालन और वित्तीय आधार बनाया जाना चाहिए। उसे अपनी तरह के अलग वित्तीय और विकास संस्थान के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।
  • यह राष्ट्रीय निवेश एवं बुनियादी विकास कोष (एनआईआईएफ) की मदद ले सकता है जो 20,000 करोड़ रुपये के कोष के साथ इस उद्देश्य के लिए सटीक है। इतना ही नहीं इस कोष के आगे समृद्घ होकर 40,000 करोड़ रुपये और उससे अधिक हो जाने की भी उम्मीद है। एनआईआईएफ इसमें एक अहम हिस्सेदार की भूमिका निभा सकता है। 
  •  यह सुनिश्चित करना कि  प्रस्तावित एनआईआईएफ और एसईसीआई मंच को वित्त व्यवस्था का स्थायी जरिया मिल सके जो बजटीय सहयोग से परे हो। अनुमान के मुताबिक प्रति टन उत्पादित होने वाले कोयले पर स्वच्छ पर्यावरण उपकर की राशि वर्ष 2016-17 में करीब 24,000 करोड़ रुपये होगी। इस पूंजी को आवर्ती पूंजी के रूप में इस्तेमाल में लाया जा सकता है। अन्य स्वच्छ उपकर को भी भविष्य में इस काम में इस्तेमाल किया जा सकता है। वित्त की यह व्यवस्था काफी हद तक दुनिया भर में मान्य अन्य व्यवस्थाओं की तरह ही है। उन जगहों पर भी प्रदूषणकारी ईंधन पर कर लगाया जाता है और स्वच्छ ऊर्जा में क्रॉस सब्सिडी निवेश में उनका इस्तेमाल किया जाता है। देश की सौर ऊर्जा संबंधी पहल को दुनिया भर में काफी सराहना मिली है। अब वक्त आ गया है कि हम इसे एक स्थायी मॉडल प्रदान करें ताकि वर्ष 2022 तक 100 गीगावॉट उत्पादन क्षमता का लक्ष्य हासिल किया जा सके। 

 

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