चुनावी चंदे का कदम कितना कारगर

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए आम बजट पेश करने के दौरान एक महत्वपूर्ण घोषणा की।

  • भारत में राजनीतिक चंदे को साफ करने की आवश्यकता है।
  •  कोई भी राजनीतिक दल 2,000 रुपये से अधिक नकदी में चंदा नहीं ले सकता।
  • राजनीतिक दलों को चेक या डिजिटल माध्यम से कितना भी चंदा लेने की छूट होगी।
  • भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन कर चुनावी बांड की व्यवस्था की जाएगी जिसके बारे में सरकार समुचित योजना बनाकर उसकी घोषणा करेगी।
  • राजनीतिक दलों को अपनी आय पर कर रिटर्न समय पर या उससे पहले ही दाखिल करना होगा।
  • राजनीतिक दलों को आयकर छूट सभी निर्धारित शर्तो को पूरा करने के बाद ही मिलेगी। 

इनका विश्लेषण

अगर इन प्रस्तावों की कोई सबसे बड़ी उपलब्धि है तो वह उसकी मंशा ही है, क्योंकि ऐसा लगता है कि अब यह मान लिया गया है कि राजनीतिक चंदे में तमाम ऐसी खामियां हैं जिनसे निपटना बेहद जरूरी हो गया है। इनमें तीसरा सुझाव तो बेहद हास्यास्पद है, क्योंकि उससे यही आभास होता है कि जैसे अभी तक राजनीतिक दलों को चेक या डिजिटल माध्यम से चंदा लेने पर कोई मनाही थी। पांचवें और छठवें प्रस्ताव में कोई नई बात नहीं है, क्योंकि उनसे जुड़े प्रावधान पहले से ही मौजूद हैं। अलबत्ता यह बात अलग है कि इन प्रस्तावों पर अमल करने को लेकर राजनीतिक बिरादरी ने कभी गंभीरता नहीं दिखाई। लिहाजा इस संबंध में नए प्रावधान बनाने की उतनी जरूरत नहीं है जितनी पहले से मौजूद नियमों का सख्ती से पालन कराने की है।

  • वित्त विधेयक 2017 में आयकर कानून के अनुच्छेद 13 ए और जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुच्छेद 29 सी में संशोधन करने के प्रस्तावों का उल्लेख है।
  • इन प्रस्तावों का गहराई से जायजा लेने पर मालूम पड़ता है कि अब कोई भी राजनीतिक दल 2,000 रुपये से अधिक नकद में चंदा नहीं ले सकता, मगर यह भी पता चलता है कि इसका 20,000 रुपये वाले प्रावधान से कोई लेना-देना नहीं है।
  • जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुच्छेद 29 सी में यह प्रावधान पहले से है कि राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से अधिक का चंदा लेने पर चुनाव आयोग को सूचना देनी होती है। इसमें कुछ बदलाव या संशोधन का कोई प्रस्ताव वित्त विधेयक में नहीं है। इसका अर्थ यह है कि राजनीतिक दल 2000 रुपये से अधिक चंदा तो केवल चेक या डिजिटल माध्यम से ही लेंगे, लेकिन जब तक वह 20,000 रुपये से कम है तो उन्हें उसके बारे में चुनाव आयोग या किसी और को बताना जरूरी नहीं होगा। इसलिए यह कहना सही नहीं नजर आता कि 20,000 की सीमा को 2000 रुपये कर दिया गया है।
  • चुनावी बांड और अपारदर्शिता : चुनावी बांड की चर्चा करते हैं। इन चुनावी बांडों को रिजर्व बैंक या किसी अन्य अधिकृत बैंक से खरीदा जा सकता है। इसमें शर्त यही होगी कि बांड केवल चेक या डिजिटल भुगतान के जरिये ही खरीदे जा सकते हैं। इनमें नकदी का इस्तेमाल नहीं हो सकता।

इन बांडों के खरीदारों को निर्धारित समय में ही ये बांड राजनीतिक दलों को सौंपने होंगे। इसका तीसरा पहलू यह होगा कि राजनीतिक दल इन्हें अपने पूर्व में घोषित किए खातों में ही जमा करा सकते हैं, मगर, अगर वित्त विधेयक के लिहाज से देखें तो इनके बारे में उल्लेख है कि ये बांड 20,000 रुपये की उस सीमा में नहीं आते जिसके बारे में चुनाव आयोग को जानकारी देना अनिवार्य है। इस बारे में दोनों आयकर कानून के अनुच्छेद 13 ए और जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुच्छेद 29 सी में संशोधन की बात करते हैं। इसका अर्थ यही है कि इन चुनावी बांडों के बारे में राजनीतिक दलों को न तो आयकर विभाग को कुछ बताना होगा और न ही इसकी सूचना चुनाव आयोग को देनी होगी यानी बांड खरीदने वाले की पहचान पूरी तरह गुप्त रहेगी।

इस बाबत वित्त मंत्री ने मीडिया से बातचीत के दौरान खुलकर कहा कि ये चुनावी बांड केवल बियरर यानी धारक बांडों की तरह होंगे यानी जिसके हाथ में ये बांड होंगे उसके ही माने जाएंगे। लिहाजा चंदा देने वाले की पहचान गोपनीय ही रहेगी।

चुनावी बांडों के मामले में सवाल यह उठता है कि क्या गोपनीयता और पारदर्शिता एक दूसरे के पूरक हैं या गोपनीयता और पारदर्शिता एक दूसरे के विपरीत ध्रुवों पर हैं? अगर ये विपरीत छोर पर हैं तो फिर इसका मतलब है कि सरकार की कथनी और करनी में बहुत अंतर है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार केवल दिखावे के लिए ही राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने की बात कर रही है और उसे जमीनी स्तर पर अमल में लाने की उसकी मंशा नहीं है। यह भी दिख रहा है कि भले ही अलग-अलग मसलों पर विपक्ष और सरकार में विरोधाभास और तनातनी देखने को मिलती है,लेकिन इस मोर्चे पर एका सी अधिक नजर आती है

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