भारत और चीन की बातचीत डोकलम से वापसी पर ही मुमकिन

#Satyagrah

Context

भारत, चीन और भूटान से घिरे डोकलम या डोकला पठार में भारतीय और चीनी सेना तकरीबन डेढ़ महीने से आमने-सामने है. इस बीच भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश के तहत चीन का सरकारी मीडिया लगातार चेतावनी दे रहा है.

Provocation by Chin

  • चीनी मीडिया ने यहां तक कह दिया है कि भारत को 1962 के युद्ध का सबक याद करना चाहिए.
  • इस तरह की चेतावनियां निहायत ही गैरजरूरी हैं और ये एशिया की सबसे बड़ी ताकत कहलाने की मंशा रखने वाले चीन की नकारात्मक छवि पेश करती हैं.
  • इनसे एक बार फिर यह जाहिर होता है कि चीन के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों की कुछ खास अहमियत नहीं है.

India-Chin-Bhutan & Doklam

डोकलम भूटान और चीन के बीच का विवादित क्षेत्र है, लेकिन इससे भारत की सुरक्षा चिंताएं भी जुड़ी हुई हैं. ताजा टकराव की परिस्थिति तब बनी जब चीन ने तीनों देशों से घिरे इस क्षेत्र में सड़क निर्माण के जरिए यथास्थिति बदलने की कोशिश शुरू की.

यहां भूटान के विरोध को चीन ने सीधे-सीधे नजरअंदाज कर दिया. इन हालात में अपनी सुरक्षा चिंताओं और मित्र देश भूटान के हितों की रक्षा के लिए भारत को मजबूरन दखल देना पड़ा. दरअसल इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियां 2012 के उस समझौते का भी उल्लंघन हैं जिसमें तय किया गया था कि तीन देशों से लगे क्षेत्र में सीमाओं का निर्धारण तीनों पक्षों के बीच बातचीत से होगा और इस बीच यथास्थिति बनाए रखी जाएगी.

What is way out?

  • दोनों देशों के लिए इस तनावपूर्ण स्थिति से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता बातचीत ही है. लेकिन चीन की शर्त है कि पहले भारतीय सैनिक इस इलाके को छोड़ें.
  • यह बेतुकी शर्त है और बताती है कि चीन अपने पड़ोसियों के साथ जोर-जबर्दस्ती करना चाहता है. दक्षिणी चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण उसकी इसी प्रवृत्ति को दिखाता है.
  • दरअसल चीन तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने में माहिर है और इस तरह वह धीरे-धीरे यथास्थिति को अपने पक्ष में बदलता है. यही वजह है कि अब उसके पड़ोसी देश भी अपने भू-भाग पर कब्जे को लेकर ज्यादा ही सख्त रुख अपना रहे हैं.

इन हालात में अब बातचीत तभी हो सकती है जब दोनों सेनाएं विवादित क्षेत्र को खाली करें. यही वह कदम है जो बातचीत के लिए आपसी भरोसे को कायम कर सकता है.

दोनों पक्षों को इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि जब तक भारत-चीन सीमा पूरी तरह चिह्नित नहीं हो जाती, ऐसे विवाद उठते रहेंगे. चीन की सोच रही है कि सीमाओं का बस प्रबंधन किया जाए और इनका निपटारा आने-वाली पीढ़ियों पर छोड़ दिया जाए, लेकिन यह सही नहीं है. भारत और चीन के लिए जरूरी है कि दोनों अतीत के कड़वे अनुभवों को भुलाते हुए जल्दी से जल्दी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आगे-पीछे ही सीमा का स्थायी निर्धारण कर लें.

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