चीन के आर्थिक हितों पर डोकलाम विवाद बेअसर

भारत और चीन के बीच सिक्किम क्षेत्र में सीमा विवाद को लेकर बनी तनातनी से ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि चीन इस स्थिति में किस तरह का रवैया अपनाएगा? चीन के नेतृत्व ने कहा है कि जब तक भारतीय सैनिक उसके इलाके से नहीं हटते हैं, तब तक भारत के साथ किसी भी तरह की बातचीत नहीं होगी

Reply of India

 इसके जवाब में भारत के विदेश सचिव ने कहा है कि आपसी मतभेदों को दोनों पड़ोसी देशों के बीच विवाद नहीं बनने दिया जाएगा।

लेकिन इसके बाद भी गतिरोध बना हुआ है जिससे भारत के साथ चीन के आर्थिक रिश्तों पर पडऩे वाले असर का मुद्दा खासा अहम हो गया है। व्हाट्सऐप पर सक्रिय तमाम समूहों समेत विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर पहले ही यह अभियान शुरू हो चुका है कि भारतीय नागरिक चीन में उत्पादित वस्तुओं को खरीदने से इनकार कर इस पड़ोसी देश को करारा सबक सिखा सकते हैं।

यह अभियान राष्ट्रवादी भावनाओं से ओतप्रोत है। लेकिन इस तरह की मुहिम का चीनी उत्पादों के निर्यात या निवेश पर क्या वाकई में कोई गंभीर असर पड़ सकता है? इसका आकलन करने के लिए चीन के साथ भारत के व्यापार और भारत में चीनी निवेश संबंधी आंकड़ों पर एक नजर डालना जरूरी होगा।
 

  • इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में चीन से होने वाले निवेश में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2011 में भारत में निवेश करने वाले देशों में चीन 37वें स्थान पर हुआ करता था लेकिन अब यह 17वां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक बन चुका है।
  • देखने में यह आंकड़ा तीव्र वृद्धि को दर्शा रहा है लेकिन भारत में चीन के कुल निवेश का आकार और सालाना पूंजी प्रवाह वास्तव में काफी कम है।
  •  भारत में होने वाले कुल विदेशी निवेश में चीन की हिस्सेदारी या चीन की तरफ से विदेश में होने वाले निवेश में भारत को मिलने वाली राशि लगभग नगण्य है।
  • अप्रैल 2000 और मार्च 2017 के बीच भारत में कुल 332 अरब डॉलर का विदेशी निवेश हुआ। इनमें चीन की हिस्सेदारी महज 1.63 अरब डॉलर ही रही है। वर्ष 2010-11 में चीन ने भारत में केवल 20 लाख डॉलर का निवेश किया था। उस साल भारत में हुए 14 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को देखें तो चीन का अंशदान बहुत ही कम था।
  • निश्चित रूप से भारत में चीन का निवेश पिछले कुछ वर्षों में बढ़त पर रहा है। वर्ष 2014-15 में यह 49.5 करोड़ डॉलर था तो 2015-16 में 46.1 करोड़ डॉलर रहा था। लेकिन चीनी निवेश में यह बढ़ोतरी तब हुई थी जब भारत में विदेशी निवेश काफी तेजी से बढ़ रहा था। असल में, भारत में चीनी निवेश में बढ़ोतरी की रफ्तार भारत में हुई कुल एफडीआई वृद्धि से काफी धीमी थी। वर्ष 2014-15 में भारत में कुल 31 अरब डॉलर और 2015-16 में 40 अरब डॉलर का एफडीआई आया था।
  • चीन से दूसरे देशों में करीब 100 अरब डॉलर का एफडीआई होने का अनुमान है। इसमें भारत का हिस्सा 0.5 अरब डॉलर से भी कम है।

 ऐसे में क्या वाकई में चीन को भारत के साथ सीमा विवाद बढऩे पर अपने विदेशी निवेश के बारे में चिंतित होने की जरूरत है?

  • चीनी अधिकारियों के दिमाग में यह बात भी आएगी कि वित्त वर्ष 2016-17 में तो भारत में चीन का एफडीआई फिर से कम होकर 27.7 करोड़ डॉलर पर आ गया था।
  • व्यापार के मोर्चे पर भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। वर्ष 2016-17 में भारत ने चीन से करीब 61 अरब डॉलर का आयात किया था जबकि भारत ने चीन को केवल 10 अरब डॉलर का निर्यात किया।
  • इस भारी असमानता के चलते भारत के कुल व्यापार घाटे में भारत-चीन व्यापार की हिस्सेदारी आधे से भी अधिक हो चुकी है लेकिन अगर चीन के नजरिये से देखें तो यह आंकड़ा बहुत बड़ा नहीं लगता है।
  • चीन का कुल वार्षिक निर्यात करीब 22 खरब डॉलर है। इस तरह भारत को 61 अरब डॉलर का निर्यात करना चीन के कुल निर्यात के लिहाज से एक छोटा हिस्सा ही है।
  • इसी तरह भारत से आयात के मामले में भी चीन पर ज्यादा असर नहीं पडऩे वाला है क्योंकि उसके कुल आयात में भारत से होने वाले आयात का हिस्सा काफी कम है।
  • भारत के नजरिये से देखने पर चीन से भारत को होने वाला आयात या भारत में उसका निवेश बड़ा दिख सकता है लेकिन चीन के दृष्टिकोण से देखें तो भारत के साथ उसके व्यापारिक रिश्ते या भारत में उसका निवेश अभी इतने बड़े पैमाने पर नहीं पहुंचा है कि उसका नेतृत्व सीमा विवाद पर इस पहलू के असर को लेकर अधिक चिंतित हो। भारत भले ही आकार के लिहाज से चीन के लिए बहुत बड़ा बाजार हो सकता है लेकिन इस संभावना का क्रियान्वित हो पाना अभी बाकी है।

हालांकि भारत में सोशल मीडिया पर चीनी उत्पादों के बहिष्कार संबंधी अभियान भारतीय नागरिकों के खरीदारी संबंधी फैसलों पर असर डाल सकता है जिससे चीनी उत्पादों का भारत को होने वाला निर्यात भी प्रभावित हो सकता है। सच तो यह है कि भारत में चीन का निवेश और चीनी आयात लगातार दो साल तेज रहने के बाद पिछले वित्त वर्ष में गिरावट पर रहा था। लेकिन चीन के साथ भारत के कारोबारी रिश्ते का आकार इतना छोटा है कि हमारे पड़ोसी देश पर इससे असुविधाजनक हालात में पडऩे की बात तो छोड़ ही दीजिए, वह इस बारे में अधिक चिंता भी नहीं करेगा।

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