आबादी का गणित

#Editorial_Hindustan

India & Population:

संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनिया की आबादी के जो अनुमान पेश किए हैं, उनके हिसाब से अगले सात साल में भारत आबादी के मामले में दुनिया का पहले नंबर का देश हो जाएगा, इस मामले में वह चीन को पीछे छोड़ देगा। इस मामले में पिछड़ जाने का चीन के लिए अर्थ सिर्फ इतना है कि उसने आबादी को नियंत्रित करने की जो नीतियां अपनाई थीं, वे पूरी तरह कामयाब रही हैं। इसके ठीक विपरीत भारत की परिवार कल्याण नीतियां नाकाम रही हैं। इस असफलता की चुनौतियां भी बहुत बड़ी हैं।

 

भारत को अगले कई दशक तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का पेट भरना होगा, उसके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसी मूलभूत सुविधाएं जुटानी होंगी और इस सबके लिए संसाधन तैयार करने होंगे। हालांकि इन अनुमानों में कुछ अच्छे संकेत भी हैं। चीन की आबादी की औसत उम्र तेजी से बढ़ रही है, जबकि अगले कुछ साल तक भारत कुल संख्या के मामले में तो सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश होगा, साथ ही युवा आबादी के प्रतिशत के मामले में भी वह काफी आगे रहेगा।

 

Demographic dividend or disaster?

  • यह माना जाता है कि युवा आबादी की बहुलता ही किसी देश के लिए आर्थिक तरक्की के रास्ते खोलती है। अधिक युवा आबादी यानी काम करने के लिए अधिक हाथ और अधिक सामाजिक उत्पादकता।
  • यह सब उस समय में हो रहा है, जब दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों की औसत आबादी बुढ़ा रही है और वहां उत्पादक उम्र वाले लोगों की तादाद लगातार घट रही है। दुनिया भर में यही माना जाता है कि यह स्थिति भारत को अच्छी बढ़त दे सकती है।
  • पिछले कुछ दशक में चीन ने अपनी युवा आबादी के भरोसे ही आर्थिक जगत में लंबी छलांग लगाई थी। यह मौका अब भारत के पास आया है। लेकिन सबसे बड़ी युवा आबादी का ही अर्थ बड़ी ताकत बन जाना नहीं होता। बड़ी आर्थिक ताकत बनने का हमारा सपना तभी पूरा हो सकता है, जब हम देश के हर युवा को ऐसा काम दे सकें, जिससे उसकी निजी और देश, दोनों की तरक्की की रफ्तार तेज रहे
  • जाहिर है कि किसी देश के आर्थिक ताकत बनने का मामला जितना उसकी युवा आबादी का मामला है, उससे कहीं ज्यादा यह उसकी आर्थिक व औद्योगिक नीतियों का और दुनिया की गति से उनका सामंजस्य बिठाने का मामला है। चीन ने इसे बहुत सहजता से कर लिया था, लेकिन हम इसे लेकर अभी तक बहुत सहज नहीं हो पा रहे।

 

Have to act now?

हमें तेजी दिखानी होगी, क्योंकि हमारे लिए आर्थिक समृद्धि हासिल करने का यह आखिरी मौका भी हो सकता है। यह माना जाता है कि आबादी की ट्रेन अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती रहती है। इसके रास्ते में युवा वय के कुछ ही स्टेशन आते हैं और इसके बाद वह प्रौढ़ काल के स्टेशन क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है। जाहिर है, हमारे पास वक्त कम है। चीन ने इस सीमित समय का अच्छी तरह उपयोग किया, पर अब वह अपने जीवन के प्रौढ़ काल की ओर बढ़ चला है। अगर हम इस मौके का ठीक से उपयोग नहीं कर सके, तो बिना आर्थिक समृद्धि को हासिल किए ही अपने प्रौढ़ काल की ओर बढ़ जाएंगे। यह हमारे लिए ज्यादा कठिन वक्त होगा, क्योंकि तब हमें कम संसाधनों से दुनिया की सबसे बड़ी आबादी की देख-रेख करनी होगी। जनसंख्या की इस गति को बदलना हमारे हाथ में नहीं है, पर अभी हम जिस स्थिति में हैं, उसमें अपनी आर्थिक तकदीर तो बदल ही सकते हैं।

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