भारत के म्यांमार के साथ संबंध कैसे हों ?

 

- भारत को म्यांमार के साथ संबंध बढ़ाने की ओर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है जो कि हमारे पूर्वोत्तर के राज्यों और पूर्वी तटों के लिए उभरी नई सामरिक परिस्थितियों में काफी अहम भूमिका निभा सकता है।

- इस बात पर यकीन करने के कारण हैं कि म्यांमार हमारे साथ रिश्तों को आगे बढ़ाने में इच्छुक है लेकिन वह उसकी भू्मि पर ठिकाना बनाए हुए एनएससीएन (के) आतंकियों पर भारत द्वारा बिना अनुमति सीमा पारीय सैन्य कार्रवाई का बार-बार ढिंढोरा पीटे जाने से खफा भी है। हमें यह भी याद रखने की जरूरत है कि अन्य देश जैसे कि अफगानिस्तान और श्रीलंका की बनिस्पत म्यांमार में परियोजनाओं को सिरे चढ़ाने का हमारा रिकार्ड कमोबेश खराब ही रहा है।
- एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी त्रि-देशीय भारत-म्यांमार-थाईलैंड उच्च मार्ग (फ्रेंडशिप हाईवे) के जरिए पूर्वी पड़ोसियों से अधिक संपर्क बढ़ाने की बात बार-बार कहते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इस परियोजना पर हुआ काम बहुत सुस्त रफ्तार और नाकाफी है। यदि जर्जर सड़कों और पुलों का पुनर्निर्माण हो जाए तो यह मार्ग सैलानियों को मांडाले से मणिपुर तक तो क्या, थाईलैंड से भी परे जाने का एक मुख्य जरिया बन सकता है।

- कमजोर क्रियान्वयन और अदूरदर्शी प्रतिबंधों और नियमों के चलते इस मार्ग का इस्तेमाल बहुत कम हो पाया है। सीमा-पारीय बस-सर्विस भी अब ठप पड़ी है।

 

- म्यांमार के साथ हमारी सीमा का विलक्षण पहलू यह है कि इसके दोनों ओर बसे जनजातीय लोग बेरोकटोक इसके पार आ-जा सकते हैं। इस बात के संकेत मिले हैं अब भारत इस सीमा-रेखा पर भी बाड़ लगाने का विचार कर रहा है। इसका म्यांमार से सटे चार राज्यों नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने पुरजोर विरोध किया है। दरअसल बाड़ सीमित इलाके में होनी चाहिए और ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसका असर जनजातीय लोगों की निर्बाध आवाजाही पर न पड़ने पाए। इसका उपयोग चीनी उत्पादों के गैरकानूनी आयात को रोकने के लिए होना चाहिए।

- हमारी चूक है कि हम अपने उत्तर-पूर्वी राज्यों को म्यांमार के भूमि और नदी मार्गों के जरिए बंगाल की खाड़ी तक पहुंच मार्ग मुहैया करवाने में असफल रहे हैं, जिसके लिए सित्तवे बंदरगाह का विकास करने की योजना उलीकी गई थी। यदि परियोजना-क्रियान्वयन पर भारत और चीन की कार्यशैली की तुलना की जाए तो कमजोर और अदूरदर्शी योजनागत दृष्टि की वजह से म्यांमार में हमारा मजाक उड़ाया जाता है।

- क्या हमने सावधानीपूर्वक यह अध्ययन किया है कि किस तरह की वस्तुओं का आवागमन इस सामरिक दृष्टि से अहम मार्ग के जरिए होगा और इनका प्रबंधन कैसे किया जाएगा? दो दशक से भी ज्यादा समय गुजर चुका है जब मणिपुर में भारत-म्यांमार सीमा के पास चिंदविन नदी पर 1800 मेगावाट बिजली परियोजना बनाने पर दोनों देशों के बीच सहमति बनी थी। कुल मिलाकर इस विषय पर हमारी भद्द ही पिटी है।

- अब जबकि म्यांमार की सरकार बृहद वैश्विक और क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के जरिए सबसे मुफीद फायदा लेने के लिए कृत संकल्प है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बाड़ लगाने जैसे उपाय करने की बजाय सावधानीपूर्वक यह अध्ययन किया जाना चाहिए कि कैसे उसके अन्य पड़ोसी देश और खासकर चीन अपनी साझी सीमाओं का प्रबंधन करता है।

- हमें खुद से यह सवाल गंभीरतापूर्वक करना होगा कि क्यों हम म्यांमार के साथ वैसा फलता-फूलता आर्थिक संबंध नहीं बना पाए जैसा कि चीन अपने दूरदर्शी सीमा-प्रबंधन के जरिए अर्जित कर चुका है। म्यांमार में जापान की तारीफ इसलिए की जा रही है क्योंकि हाल ही में उसने इस देश के साथ अर्थपूर्ण व्यापार, निवेश और आर्थिक संबंध बनाने की दिशा में अनेक उपाय किए हैं। इस संदर्भ में हमें न केवल चीन बल्कि अपने जापानी मित्रों से भी काफी सीख लेने की जरूरत है।

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