मंत्रियों और अफसरों के दबाव में काम करने की खबरें तो देश में आम खबरों की तरह सुनाई पड़ती रहती हैं। लेकिन अब जजों पर दबाव बनाने की खबरें भी आम होने लगी हैं। दबाव भी छोटी अदालतों के जजों पर नहीं बल्कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर भी दबाव डाले जाने की बात सामने आ रही हैं।
Context (सन्दर्भ )
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के एक जज ने मुरथल गैंगरेप मामले में उन पर दबाव डाले जाने की बात कही है। मामला अति गंभीर है क्योंकि गैंगरेप से जुड़ा है। हरियाणा सरकार ने मामले में कार्रवाई का आश्वासन दिया है पर बात सिर्फ कार्रवाई की नहीं है।
प्रश्न जिनका जवाब अनिवार्य है
आखिर, वे कौन हैं जो जजों से अपनी मर्जी मुताबिक फैसला लिखवाना चाहते हैं? क्या वे राजनीति से जुड़े हैं या कार्यपालिका से? जजों पर दबाव बनाने वालों पर कार्रवाई के साथ उनके नाम भी सार्वजनिक होने चाहिए। आज के माहौल में सरकारों पर आमजन का भरोसा घटता जा रहा है।
किसी पर भरोसा रह गया है तो वे हैं अदालतें। अदालतों पर से भी भरोसा उठ गया तो इस देश का क्या हाल होगा, सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। यह किसी से छिपा नहीं कि पुलिस-प्रशासन आज पूरी तरह से राजनेताओं के हाथों की कठपुतली बन चुके हैं।
राजनेता अपने इशारे पर प्रशासन को अपने हिसाब से चलाते हैं। नेता-अफसरों के गठजोड़ ने देश की नींव को खोखला कर दिया है। देश ने बीते सालों में जितने घोटाले देखे हैं, सब में राजनेता और अफसरों की मिलीभगत ही सामने आई है।
बोफोर्स, 2जी, कोल आवंटन, आदर्श सोसाइटी और कॉमनवेल्थ खेलों से लेकर तमाम छोटे-बड़े घोटाले मिल-बांटकर खाने की कहानी ही बयां करते नजर आए हैं। इन घोटालों की तह तक जाकर दोषियों को सजा दिलाने का काम यदि किसी ने ईमानदारी से किया है तो वे अदालतें ही हैं।
Need of hour is ?
ऐसे में हरियाणा से लेकर केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वे अदालतों की निष्पक्षता बनाये रखने के हरसंभव उपाय करें। देश में लोकतंत्र तभी मजबूत रहेगा जब कानून को बिना भेदभाव काम करने की आजादी मिलेगी। सरकारों के साथ राजनीतिक दलों को भी अदालतों की आजादी बनाए रखने में सहयोग करना चाहिए ताकि संवैधानिक ढांचे पर आंच न आने पाए।