मैनचेस्टर में  दहशतगर्दी का दायरा

 

#Editorial_Jansatta

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ब्रिटेन के मैनचेस्टर में जो घटित हुआ उसने इस देश को ही नहीं, पूरे यूरोप को दहला दिया है। बाकी दुनिया के माथे पर भी दुख और चिंता की लकीरें पढ़ी जा सकती हैं। मैनचेस्टर में हुए विस्फोट में बाईस लोगों के मारे जाने और दर्जनों लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर है। मारे गए और घायल हुए लोगों की तादाद से जाहिर है कि हमले के पीछे इरादा अधिक से अधिक कहर बरपाना और बड़े पैमाने पर आतंक पैदा करना था। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आइएस ने ली है। यों आइएस इराक तथा सीरिया में कई इलाके गंवा चुका है जो उसके कब्जे में थे। पर आतंकी वारदात करने की उसकी ताकत बरकरार है। मैनचेस्टर एरिना में हमला अमेरिकी पॉप स्टार एरियाना ग्रैंडे के कंसर्ट के दौरान हुआ। एरियाना बच्चों, किशोरों और युवाओं में खासी लोकप्रिय हैं, लिहाजा कंसर्ट के दौरान उन्हीं की मौजूदगी अधिक थी और स्वाभाविक ही मारे गए तथा घायल हुए लोगों में भी ज्यादातर वही हैं। अपने बच्चों के मारे जाने की खबर पाकर या उन्हें लापता समझ कर ट्विटर पर उनकी फोटुएं पोस्ट करते माता-पिताओं पर क्या बीती होगी, इसकी कल्पना भी सिहराने वाली है।

हमले के सिलसिले में मैनचेस्टर पुलिस ने एक संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार किया है, पर उसकी पहचान का खुलासा नहीं किया है। यों वहां की पुलिस ने अनुमान जताया है कि यह आत्मघाती हमला था और हो सकता है इसेसिर्फ एक व्यक्ति ने अंजाम दिया हो। लेकिन हमले की योजना बनाने और उसे ठिकाने तक पहुंचाने में कुछ और लोग भी जरूर शामिल रहे होंगे। देखना है उनके सुराग कब तक पुलिस के हाथ लगते हैं! इस घटना से फिर जाहिर हुआ है कि एक आतंकी गुट अपने अनुयायी के दिलोदिमाग को इतना जहरीला इतना क्रूर इतना वहशी बना देता है कि उसे भरसक ज्यादा से ज्यादा लोगों को मार डालना ही ‘पवित्र मकसद’ नजर आता है।

Why target to these areas:

यह पहला मौका नहीं है जब कोई कंसर्ट या पब या रेस्तरां आतंकवाद का निशाना बना हो। आइएस और अल कायदा जैसे आतंकी संगठन ऐसी जगहों को पश्चिमी संस्कृति के अड््डे मान कर इन्हें पहले भी निशाना बना चुके हैं। फिर, ऐसे स्थानों पर जमा भीड़ में उन्हें ज्यादा से ज्यादा कहर मचाने का मौका भी दिखता है। नवंबर 2015 में पेरिस में भी आतंकी हमला एक कंसर्ट हॉल को लक्ष्य करके हुआ था, जिसमें 89 लोग मारे गए थे। इस हमले से सारी दुनिया हिल गई थी। फिर, आतंकवाद से लड़ने और उसे समूल उखाड़ फेंकने के खूब संकल्प किए गए। सारे यूरोप में सुरक्षा संबंधी निगरानी बढ़ा दी गई। खुफिया जानकारी के लेन-देन में तेजी आ गई। पर सारे संसाधन, सारी तकनीकी दक्षता के बावजूद यूरोप एक बार फिर उतना ही अरक्षित नजर आने लगा है। मैनचेस्टर की त्रासदी पर तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनेताओं ने शोक जताया है और आतंकवाद के खिलाफ ब्रिटेन का साथ देने का भरोसा दिलाया है। पर ऐसे बयान अक्सर अवसरोचित रस्म अदायगी भर साबित होते रहे हैं। आतंकवादी घटनाओं ने यूरोप के कई देशों में आप्रवासियों को शक की नजर से देखने की प्रवृत्ति और दक्षिणपंथी राजनीति को तो खूब हवा दी, मगर नागरिकों की सुरक्षा के मोर्चे पर क्या हासिल हुआ है?

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