ब्रिक्स... कल, आज और कल : किस्सा ब्रिक्स का

- वर्ष 2003 में गोल्डमैन सैक्स ने चार ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) पर आधारित अपनी रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट में यह भविष्यवाणी की गई थी कि अगली आधी सदी तक दुनिया में वृद्घि को आगे बढ़ाने का काम यही अर्थव्यवस्थाएं करेंगी और 40 साल से भी कम समय में इनका संयुक्त जीडीपी उस वक्त की छह शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका समेत) यानी जी- 6 के कुल जीडीपी को पार कर जाएगा।

- वर्ष 2003 में गोल्डमैन सैक्स की भविष्यवाणी के कुछ अहम पहलू उसके जारी होने के पहले दशक में सही साबित हो चुके हैं।

** परंतु दूसरे दशक की शुरुआत में लग रहा है कि अब ब्रिक्स वर्गीकरण को समाप्त करने का वक्त आ गया है। 

*** ब्रिक्स की ये चारों अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे से काफी अलग हैं। इनके संसाधनों और प्रति व्यक्ति आय में काफी अंतर है परंतु वे सभी अपेक्षाकृत बड़ी (जीडीपी के मुताबिक शीर्ष 12 जबकि आबादी के मुताबिक शीर्ष 9 देशों में) हैं। 
** भौगोलिक आधार पर देखा जाए तो वे शीर्ष 7 में शामिल हैं। एक प्रमुख अनुमान यह भी था कि वर्ष 2016 तक ब्रिक्स देशों का जीडीपी जी-6 देशों के जीडीपी के आधे के बराबर हो जाएगा।
- लेकिन यह अनुमान बहुत तेजी से पूरा हुआ और वर्ष 2014 तक ब्रिक्स का संयुक्त जीडीपी 166 खरब डॉलर था जो जी-6 के 338 खरब डॉलर के 49.1 फीसदी के बराबर था। वर्ष 2003 में यह अनुपात बमुश्किल 15 फीसदी का था।

=>"भारत के लिए पूर्वानुमान"
- इतना ही नहीं, भारत के लिए यह पूर्वानुमान जताया गया था कि उसका जीडीपी वर्ष 2015 तक इटली (जी6 में सबसे छोटा) के जीडीपी से बड़ा हो जाएगा। वह भी होने ही वाला है। वर्ष 2015 को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ताजा अनुमान में भारत का जीडीपी 21.8 खरब डॉलर होने की बात कही गई है जबकि इटली के लिए यह 18.2 खरब डॉलर है। वर्ष 2003 में इटली का आकार भारत की तुलना में ढाई गुना बड़ा था।

=>"चीन के सन्दर्भ में क्या ?
- ब्रिक्स रिपोर्ट में कहा गया था कि मुद्रा के अधिमूल्यन की मदद से चीन का जीडीपी वर्ष 2040 तक अमेरिका के बराबर हो जाएगा। एक वक्त था जब यह अनुमान सही होता प्रतीत हो रहा था।
- लगने लगा था कि चीन बहुत जल्दी अमेरिका की बराबरी कर लेगा। लेकिन युआन में कमजोरी आने और अर्थव्यवस्था में आ रही मंदी के साथ-साथ कुछ गंभीर ढांचागत समस्याएं पैदा होने के कारण चीन की अर्थव्यवस्था संकटग्रस्त है।
- फिलहाल ऐसा नहीं लग रहा है कि वह अमेरिका के लिए कोई चुनौती बन सकती है।
** अगर चीन यहां से 5 फीसदी की सालाना वृद्घि दर बरकरार रखता है तो उसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मौजूदा आकार तक पहुंचने में 20 साल लगेंगे लेकिन तब तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था का आकार एक तिहाई और बढ़ चुका होगा।

- ऐसे में अभी भी यह संभव है कि गोल्डमैन सैक्स के अनुमान के अनुरूप वर्ष 2040 तक चीन अमेरिकी जीडीपी की बराबरी कर ले। परंतु चीन और शेष विश्व के इर्दगिर्द मौजूद अनिश्चितता के मद्देनजर लंबी अवधि के लिए विश्वसनीय पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते।

- वर्ष 2003 की रिपोर्ट यह अनुमान लगाने में विफल रही थी कि ब्रिक्स की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का निजी स्तर पर प्रदर्शन कैसा रहेगा। चीन का प्रदर्शन यकीनन जोरदार रहा है।

=>"ब्राजील और रूस के सन्दर्भ में क्या"
** ब्राजील और रूस अभी हाल तक भारत से बहुत बेहतर नजर आए लेकिन वर्ष 2015 में जिंस कीमतों में नाटकीय गिरावट ने उन्हें बुरी तरह प्रभावित किया। 
- आईएमएफ के मुताबिक रूस का जीडीपी वर्ष 2015 में घटकर 12.4 खरब डॉलर रह जाएगा जबकि 2013 में यह 20.8 खरब डॉलर था। 
- वहीं ब्राजील का जीडीपी 2013 के 23.9 खरब डॉलर से घटकर 18 खरब डॉलर रह जाएगा। मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा लग नहीं रहा है कि निकट भविष्य में जिंस कीमतों में कोई खास सुधार होगा।

=>"निष्कर्ष"
- ब्रिक्स समूह ने अपना अर्थ इसलिए खो दिया है क्योंकि ब्रिक्स के चार प्रमुख सदस्यों में से दो के निकट भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदानकर्ता बनने की संभावना नहीं दिख रही। 
- अन्य दो यानी चीन और भारत वैश्विक आर्थिक वृद्घि में क्रमश: सबसे बड़े और तीसरे सबसे बड़े योगदानकर्ता देश बने हुए हैं।

- कहा जा सकता है कि ब्रिक्स समूह की दास्तान से भारत और चीन की कहानी सामने आई है। इनमें से चीन पर जहां सवालिया निशान लगे हुए हैं, वहीं भारत सकारात्मक बना हुआ है।

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