- मणिपुर दोहरी मार झेल रहा है, नाकेबंदी और नोटबंदी।
- सरकारों की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिये कि इस संवदेनशील राज्य में नाकेबंदी को दो माह होने को हैं। मगर न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार इस विकट स्थिति का समाधान तलाशती नजर आ रही है।
- इस आपराधिक लापरवाही के मूल में विशुद्ध राजनीति है। अगले साल के शुरू के महीनों में राज्य में चुनाव होने हैं। राज्य में कांग्रेस की सरकार है और केंद्र में मणिपुर में अपनी जमीन के विस्तार को आतुर भाजपा। हालांकि राज्य के दो भाजपा विधायकों में से एक ने खिन्न होकर भाजपा छोड़ने का ऐलान कर दिया था। बहरहाल आज भी राज्य के हालात काबू से बाहर हैं।
- - केंद्र ने पहले राज्य सरकार की मांग पर चार हजार केंद्रीय सुरक्षा बल भेजे थे और चार हजार और भेज रही है। दरअसल राज्य में कांग्रेस की सरकार ने राजनीतिक फायदे के लिये सात नये जिले बनाने की घोषणा की, जिसके विरोध में यूएनसी यानी यूनाइटेड नगा काउंसिल ने राज्य के जीवन मार्ग कहे जाने वाले एन.एच-2 और एन.एच 37 की नाकेबंदी कर दी।
=>नाकेबंदी का कारण :-
- दरअसल मणिपुर का नगा समुदाय नब्बे प्रतिशत इलाके वाले पर्वतीय क्षेत्र में रहता है। जबकि घाटी के इलाके में दस प्रतिशत क्षेत्र ही हैं, जिसमें मेतेई समुदाय का अधिक्य है। मगर नौकरशाही व सरकार में इस समुदाय का वर्चस्व है।
- नगा समुदाय का मानना है कि जिन सात नये जिलों का गठन किया जा रहा है, वह नगा बहुल इलाकों की जनसांख्यिकी बदलने का षड्यंत्र है। जिसके जरिये मणिपुर की इबोबी सिंह सरकार राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है।
- नाकेबंदी से राज्य में पेट्रोलियम पदार्थों की भारी किल्लत है। कर्फ्यू और नोटबंदी के बीच गैस, पेट्रोल व खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे हैं। वैसे राज्य में नाकेबंदी का हथियार जब-तब प्रयोग किया जाता रहा है। वर्ष 2011 में कुकी समुदाय की नाकेबंदी सौ दिन तक चली थी।
- जनता की दिक्कतों को देखते हुए केंद्र व राज्य सरकार को पहल करके नाकेबंदी खुलवाने का प्रयास करना चाहिये। यूएनसी यानी यूनाइटेड नगा काउंसिल चरमपंथी संगठन एनएससीएन (इसाक-मुइवा) के इशारे पर चलता है जो लगातार केंद्र सरकार के संपर्क में रहता है। इसका उपयोग केंद्र सरकार राज्य में शांति बहाली व राष्ट्रीय राजमार्ग खुलवाने में कर सकती है। इसमें देरी जनता की मुश्किलों को बढ़ाने वाली ही होगी।