-
पहली कक्षा से शुरू होने वाली औपचारिक पढ़ाई से पहले की शिक्षा और नौवीं-दसवीं कक्षाओं को भी मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए।
-
यूनीसेफ की रिपोर्ट में खास तौर पर स्कूल-पूर्व शिक्षा की बदहाली के सामने आने के बाद सरकार ने इस संबंध में भरोसा दिलाया है।
-
नई शिक्षा नीति में भी इस संबंध में प्रस्ताव आए हैं। स्कूल-पूर्व शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य किए जाने की जरूरत को अब गंभीरता से समझा जा रहा है।
-
स्कूल-पूर्व शिक्षा और लोअर सेकेंडरी कक्षाओं- नौवीं और दसवीं को भी सार्वभौमिक बनाना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक बच्चों को इसका लाभ मिल सके।"
=>स्कूल-पूर्व शिक्षा की आवश्यकता क्यों ?
-
शिक्षा को अलग-अलग खांचों और सांचों में बांधना ठीक नहीं है। इसे समग्रता से और एकीकृत रूप में पेश किया जाना चाहिए।
-
यूनीसेफ की यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में तीन से छह वर्ष की उम्र के 7.4 करोड़ बच्चों में से लगभग दो करोड़ बच्चे किसी भी तरह की पूर्व-शिक्षा हासिल नहीं कर रहे।
-
जबकि इसके लिए आंगनबाड़ी जैसे व्यापक कार्यक्रम दशकों से चल रहे हैं।
-
रिपोर्ट में सबसे अहम सिफारिश यही है कि स्कूल-पूर्व शिक्षा को मजबूती देने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों को बेहतर बनाया जाए।
-
यहां बच्चों को खेलने और पढ़ने के लिए बेहतर माहौल मिले। ज्यादा प्रशिक्षित शिक्षक या आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उपलब्ध हों और बेहतर आधारभूत ढांचा हो।
-
साथ ही यह अभिभावकों को भी स्कूल-पूर्व शिक्षा के लिए जागरूक करने पर जोर देती है।
विशेष :- वर्ष 2009 में संसद से शिक्षा का अधिकार कानून पारित किया गया था, जो प्रावधान करता है कि छह से 14 वर्ष की आयु का कोई बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा। पिछले कुछ वर्षों से इसका दायरा बढ़ाने की मांग उठ रही है।