बीते कुछ साल के दौरान आम आदमी शिक्षा के प्रति जागरूक हुआ है, स्कूलों में बच्चों का पंजीकरण बढ़ा है। साथ ही स्कूल में ब्लैक बोर्ड, शौचालय, बिजली, पुस्तकालय जैसे मसलों से लोगों के सरोकार बढ़े हैं।
A serious issue which need to be given attention:
जो सबसे गंभीर मसला है कि बच्चे स्कूल तक सुरक्षित कैसे पहुंचें, इस पर न तो सरकारी और न ही सामाजिक स्तर पर कोई विचार हो रहा है। आए दिन देश भर से स्कूल आ-जा रहे बच्चों की जान जोखिम में पड़ने के दर्दनाक वाकये सुनाई देते हैं।
- विडम्बना यह है की परिवहन को अक्सर पुलिस की ही तरह खाकी वर्दी पहनने वाले परिवहन विभाग का मसला मानकर उससे मुंह मोड़ लिया जाता है।
- पटना, लखनऊ जैसे राजधानी वाले शहर ही नहीं, मेरठ, भागलपुर या इंदौर जैसे हजारों शहरों से लेकर कस्बों तक स्कूलों में बच्चों की आमद जिस तरह से बढ़ी है, उसको देखते हुए बच्चों के सुरक्षित, सहज और सस्ते आवागमन पर जिस तरह की नीति की जरूरत है, वह नदारद है।
- 52 सीट वाली बसों में 80 तक बच्चे बैठा लिए जाते हैं।
- यह भी गौर करना जरूरी है कि अधिकांश स्कूलों के लिए निजी बसों को किराये पर लेकर बच्चों की ढुलाई करवाना एक अच्छा मुनाफे का सौदा है। ऐसी बसें स्कूल करने के बाद किसी रूट पर चार्टेड की तरह चलती हैं। तभी बच्चों को उतारना और फिर जल्दी-जल्दी अपनी अगली ट्रिप करने की फिराक में ये बसवाले यह ध्यान ही नहीं रखते हैं कि बच्चों का परिवहन कितना संवेदनशील मसला होता है।
- ऐसे स्कूल कड़ाके की ठंड में भी अपना समय नहीं बदलते हैं, क्योंकि इससे उनकी बसों को देर होगी और इन हालात में वे अपने अगले अनुबंध पर नहीं पहुंच सकेंगे।
क्या कदम आवश्यक :
छोटे शहरों में भी वाहनों की बेतहाशा वृद्धि हुई है। जब सरकार स्कूलों में पंजीयन, शिक्षा की गुणवत्ता, स्कूल परिसर को मनोरंजक और आधुनिक बनाने जैसे कार्य कर रही है, तो बच्चों के स्कूल तक पहुंचने की प्रक्रिया को निरापद बनाना भी प्राथमिकता की सूची में होना चाहिए। इस दिशा में बच्चों के आवागमन के लिए सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था करना, स्कूली बच्चों के लिए प्रयुक्त वाहनों में ओवरलोडिंग या अधिक रफ्तार से चलाने पर कड़ी सजा का प्रावधान करना जैसे जरूरी काम तो होने ही चाहिए, साथ ही साइकिल रिक्शा जैसे असुरक्षित साधनों पर या तो रोक लगाने या उसके लिए कड़े मानदंड तय किए जाने चाहिए।