अब सूखे से प्रभावित न होने वाली कृषि का समय आ गया है

सिचाई पर केन्द्रण क्यों :

सिंचाई क्षेत्र में छह दशकों के निवेश के बावजूद सुनिश्चित सिंचाई के तहत 142 मिलियन हेक्‍टयेर कृषि भूमि में से केवल 45 प्रतिशत ही कवर हो पाई है।

पिछले दो वर्षों में दस राज्‍यों में गंभीर सूखा पड़ा, जिससे कृषि क्षेत्र पर बुरा प्रभाव पड़ा और वस्‍तुओं की कीमते बढ़ी हैं। वर्षा आधारित कृषि भूमि के अतिरिक्‍त छह लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र को सिंचाई के अंतर्गत लाने के लिए योजना के कार्यान्‍वयन के पहले एक वर्ष में पांच हजार तीन सौ करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है

योजना इस सन्दर्भ में

  • हाल ही में शुरू हुई प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) ‘हर खेत को पानी’ देने पर ध्‍यान केन्द्रित करने की दिशा में एक सही कदम है। इसके अंतर्गत मूल स्‍थान पर जल संरक्षण के जरिए किफायती लागत और बांध आधारित बड़ी परियोजनाओं पर भी ध्‍यान दिया जाएगा।                        
  • भारत की अगले पांच वर्षों में सिंचाई योजनाओं पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है। इसलिए देश में सूखे के प्रभाव को कम करना कार्यान्‍वन प्रक्रिया का केन्‍द्र बिन्‍दु बन गया है। ।।                                  
  •  वर्तमान में चल रही तीन योजनाओं- त्‍वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, एकीकृत जल ग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम और खेत में जल प्रबंधन योजनाओं का विलय कर पीएमकेएसवाई बनाई गई है।
  • PMKVY का उद्देश्य : इसका उद्देश्‍य न केवल सिंचाई कवरेज बढ़ाना, बल्कि खेती के स्‍तर पर जल के उपयोग की दक्षता बढ़ाना भी है। इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि इस योजना से लगभग पांच लाख हेक्‍टेयर भूमि में ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा मिलेगा।                   
  • अतिरिक्‍त सिंचित क्षेत्र के लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए मौजूदा जल निकायों और पारम्‍परिक जल स्रोतों की भंडारण क्षमता बढ़ाई जाएगी। पानी की बढ़ती आवश्‍यकता को पूरा करने के लिए निजी एजेंसियों, भूजल और कमान क्षेत्र विकास के अतिरिक्‍त संसाधनों से पानी लेने का प्रयास भी किया गया। हालांकि यह सुनिश्चित करना गंभीर चुनौती है कि मौजूदा तीस मिलियन कुंओं और टयूबवेल से अतिरिक्‍त भूजल स्रोत का दोहन न हो। इस संदर्भ में देश के प्रत्‍येक खेत में सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध कराने के लिए जल संरक्षण और जल की बर्बादी कम करना महत्‍वपूर्ण है। इससे स्‍थायी जल संरक्षण और जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने की आदत बनेगी, जो नई सिंचाई सुविधाओं जितनी ही महत्‍वपूर्ण है। सिंचाई जल आपूर्ति के लिए कई विधियों से नगर निगम के गंदे पानी का शोधन कर उसे दोबारा उपयोगी बनाने की भी योजना है
  • एक ऐसा देश जहां सूखा पड़ने का इतिहास रहा है, वहां केवल ऐसी पहलो से ही सकल घरेलू उत्‍पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़ाने का मार्ग प्रशस्‍त होगा। वर्ष 1801 से लेकर 2012 तक देश में 45 बार गंभीर सूखा पड़ा है। हाल के कमजोर मानसून का असर कृषि क्षेत्र पर पड़ा है और लगातर दूसरे वर्ष कृषि क्षेत्र का योगदान कम दर्ज किया गया। इसका बुरा प्रभाव अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ा है, जिसकी वजह से यह तर्क पुष्‍ट होता है कि सूखे के असर को कम करने से अर्थव्‍यवस्‍था पर कृषि का बुरा प्रभाव कम पड़ेगा। 

Why to minimize use of water in agriculture

  •  आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 में कृषि में बदलाव की बात करते हुए संकर और उच्‍च उपज बीज, प्रौद्योगिकी और मशीनीकरण पर अनुसंधान में अधिक निवेश कर सूक्ष्‍म सिंचाई के जरिए जल का किफायती उपयोग करने का प्रस्‍ताव किया गया है।
  •  जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए उत्‍पाकदता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जलवायु स्‍मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान पर निवेश की आवश्‍यकता पर ध्‍यान नहीं दिया गया है।
     
  • पानी की कमी बने रहने से भारतीय कृषि क्षेत्र में काफी समय से ‘उच्‍च निवेश, उच्‍च जोखिम’ की स्थिति है। कृषि क्षेत्र में अधिक पानी की खपत वाली फसलों के कारण जलवायु अनिवार्यता और बढ़ गई है।
  • जब तक अनुकूल समर्थन मूल्‍य के साथ कम पानी की खपत वाली फसलों विशेष रूप से दलहनों और तिहलनों पर ध्‍यान केन्द्रित नहीं किया जाता है, तब तक लगभग 98 मिलियन हेक्‍टेयर वर्षा आधारित खेत कृषि क्षेत्र में वृद्धि के लिए योगदान नहीं कर सकते।
  • इसलिए पानी की दीर्घावधि आवश्‍यकता की पूर्ति के लिए समग्र विकास के परिप्रेक्ष्‍य में पीएमकेएसवाई के अंतर्गत ‘विकेन्द्रिकृत राज्‍य स्‍तरीय नियोजन और कार्यान्‍वयन’ को बढ़ाकर व्‍यापक जिला सिंचाई योजनाओं तक किया जाना चाहिए। यह कार्य केवल स्‍थानीय जल संसाधनों का संरक्षण और सुरक्षित करना ही नहीं है, बल्कि वितरण नेटवर्क को दक्ष बनाना है, ताकि कठिनाई के समय में भी खेतों में फसल की उत्‍पादकता को कायम रखा जा सके।

PMKVY and Carbon credit:

  • 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्‍पाद का 30 से 35 प्रतिशत तक कार्बन उत्‍सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता के कारण भारत को पीएमकेएसवाई के अनुरूप विकेन्द्रिकृत जल प्रबंधन अपनाकर वृहद सिंचाई परियोजनाओं में कार्बन उत्‍सर्जन को कम करना होगा। हालांकि इन योजनाओं का अधिक लाभ तभी मिल पाएगा, जब यर्थावादी खेती के जरिए जैविक कार्बन मिट्टी को बढ़ाए, कार्बन स्‍टॉक मिट्टी की नमी बनाए रखे और जलवायु के प्रभाव से फसल की बर्बादी को कम किया जा सके।
  • Decentralize irrigation
    इस संदर्भ में विकेन्द्रिकृत जलागम विकास के माध्‍यम से सामुदायिक पानी प्रबंधन, पारम्‍परिक टैंक प्रणाली और ‘मिट्टी में नमी बढ़ाने’ के लिए सुधार के जरिए ‘पानी की उपलब्‍धता’ कायम रखना महत्‍वपूर्ण है।
  • यह प्रयास ग्रामीण इलाकों में सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए महत्‍वपूर्ण हैं,क्‍योंकि भूजल भंडारण मूल स्‍थान पर मिट्टी को वास्‍तविक जलाशयों में परिवर्तित कर देता है, जो जलवायु के खतरों से असाधारण बचाव करता है।
  • नीति आयोग के अंतर्गत अंतर मंत्रिमंडलीय राष्‍ट्रीय स्‍थायी समिति का गठन किया गया है, हालांकि यह देखना होगा कि राज्‍य स्‍तर के विभिन्‍न विभाग पीएमकेएसवाई के महत्‍वकांक्षी परिणाम हासिल करने में जमीनी स्‍तर पर कैसा सहयोग करते हैं।  

साभार :- विशनाराम माली

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