दिवाला और दिवालियापन संहिता-2016 (आईबीसी)

 

  • दिवाला और दिवालियापन संहिता-2016 (आईबीसी) के प्रावधानों के अंतर्गत डिफाल्ट के मामले में किसी बैंकिंग कंपनी को दिवाला समाधान प्रक्रिया प्रारंभ करने संबंधी निर्देश के लिए आरबीआई को प्राधिकृत करने के लिए 04 मई, 2017 को बैंकिंग नियमन संशोधन अध्यादेश 2017 लागू किया गया है।
  • यह अध्‍यादेश बाध्‍य होकर बेची जाने वाली परिसम्‍पत्तियों के मामले में निर्देश देने का अधिकार भी रिजर्व बैंक को देता है। रिजर्व बैंक विवशतावश बेची जाने वाली परिसम्‍पत्तियों के बारे में बैंकिंग कंपनियों को सलाह के लिए बैंक की स्‍वीकृति के साथ समिति की नियुक्ति का निर्देश देने का अधिकार भी दिया है।
  • रिजर्व बैंक के अंतर्गत आंतरिक निगरानी समिति (आईएसी) बनाई गई है। इस समिति के सदस्‍यों की संख्‍या बढ़ाकर पांच कर दी गई है। पुनर्गठित निगरानी समिति को 500 करोड़ रूपये से अधिक उधारी के मामलों को सुलझाने के लिए समीक्षा का अधिकार है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक की आंतरिक सलाह समिति ने 5000 करोड़ रूपये से अधिक राशि वाले कोष और गैर-कोषीय खातों की आईबीसी समीक्षा का सुझाव दिया। बैंकों द्वारा 31 मार्च, 2016 को 60 प्रतिशत खातों को अनुत्‍पादक बताया गया है।
  • इसी के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक मानदंडों के अंतर्गत आने वाले 12 खातों के मामले में दिवाला तथा दिवालियापन संहिता 2016 के अंतर्गत दिवाला प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया। अन्‍य अनुत्‍पादक खातों, जो उपरोक्‍त श्रेणी में नहीं आते, के बारे में आईएसी ने सिफारिश की है कि बैंक छह महीने के अंदर इनके समाधान को अंतिम रूप दे। जिन मामलों का समाधान छह महीने के अंदर नहीं हो पाता, वैसे मामलों में बैकों को दिवाला प्रक्रिया शुरू करने को कहा गया है।

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