राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण मंच की दो दिवसीय बैठक

राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण मंच (एनपीडीआरआर) की दूसरी बैठक 15-16 मई 2017 को नई दिल्ली में आयोजित की जाएगी। बैठक का विषय ‘सतत विकास के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरणः वर्ष 2030 तक भारत को इस क्षेत्र में सशक्त बनाना’। इस दौरान ‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण का राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्यः सेंडई और इसके आगे’ से संबंधित पूर्ण अधिवेशन के अलावा एक मंत्रीस्तरीय विशेष सत्र भी आयोजित किया जाएगा। इस बैठक के दौरान पांच तकनीकी सत्र भी आयोजित किए जाएंगे, जिनका विषय- ‘आपदा जोखिम की समझः आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए आपदा जोखिम के न्यूनीकरण को मज़बूत करना’, ‘लचीलापन लाने के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश’, ‘प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए आपदा तैयारियों को बढ़ाना और रिकवरी को बेहतर बनाना’, ‘पुनर्वास और पुनर्निर्माण’ और ‘डीआरआर के लिए सेंडई ढांचाः निगरानी’ है।

राष्ट्रीय मंच का उद्देश्य

  • इस राष्ट्रीय मंच का उद्देश्य सरकार, संसद, स्थानीय स्वयं शासन, मीडिया, अंतरराष्ट्रीय संगठन, एनजीओ, स्थानीय समुदाय प्रतिनिधि, वैज्ञानिक एवं अकादमिक संस्थान और कॉर्पोरेट बिज़नेस आदि आपदा जोखिम से जुड़े भारत के विभिन्न समुदायों को एक साथ एक मंच पर लाना है।
  •  यह मंच अनुभव, विचार एरं योजनाओं, अनुसंधान के वर्तमान परिणामों आदि को साझा करने में मदद करने के साथ-साथ आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डीआरआर) के क्षेत्र में परस्पर सहयोग के लिए अवसर तलाशने में मदद करेगा।

NPDRR (एनपीडीआरआर)

एनपीडीआरआर बहु-हितधारक को सरकार द्वारा वर्ष 2013 में गठित किया गया था। एनपीडीआरआर की अध्यक्षता केन्द्रीय गृह मंत्री द्वारा की जाती है। एनपीडीआरआर के अन्य सदस्यों में 15 कैबिनेट मंत्री, नीति आयोग के उपाध्यक्ष, आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालने वाले प्रत्येक राज्य/संघ शासित प्रदेश के संबंधित मंत्री, स्थानीय स्व शासन और संसद (लोकसभा के 04 सदस्य एवं राज्य सभा के 02 सदस्य) के प्रतिनिधि, पदेन सदस्य, राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के प्रमुख, उद्योग जगत के प्रतिनिधि, मीडिया के प्रतिनिधि, सामाजिक नागरिक संगठन और अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि शामिल हैं।

एनपीडीआरआर के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –

  • आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में की गई प्रगति और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति की समय-समय पर समीक्षा करना।
  • केन्द्र एवं राज्य सरकारों तथा अन्य एजेंसियों द्वारा लागू की गई आपदा प्रबंधन नीतियों के तरीकों आदि की सराहना करना और इस मामले में उचित एवं प्रभावशाली सलाह देना।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए केन्द्र एवं राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों, स्थानीय स्व-शासन तथा स्थानीय नागरिक संगठनों के बीच समन्वय के लिए परामर्श देना।

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