राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय इस्पात नीति (एनएसपी) 2017 को अपनी मंजूरी दी है।
 

नई इस्पात नीति से इस्पात क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की दीर्घकालिक दृष्टि परिलक्षित होती है। इसके तहत घरेलू इस्पात की खपत बढ़ाने, उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात का उत्पादन सुनिश्चित करने और इस्पात उद्योग को तकनीकी रूप से उन्नत एवं वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। एनएसपी 2017 की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

1. निजी क्षेत्र के विनिर्माताओं, एमएसएमई इस्पात उत्पादकों और सीपीएसई को नीतिगत सहायता एवं मार्गदर्शन प्रदान करते हुए इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना।

2. क्षमता में पर्याप्त वृद्धि को प्रोत्साहित करना।

3. वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी इस्पात विनिर्माण क्षमता विकसित करना।

4. लागत-कुशल उत्पादन।

5. लौह अयस्क, कोकिंग कोल और प्राकृतिक गैस की घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करना।

6. विदेशी निवेश को सुविधाजनक बनाना।

7. कच्चे माल वाली परिसंपत्ति का अधिग्रहण।

8. घरेलू इस्पात की मांग को बढ़ाना।

इस नीति के तहत 2030-31 तक 300 मिलियन टन (एमटी) कच्चे इस्पात की क्षमता, 225 एमटी उत्पादन और 158 किलोग्राम तैयार इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत का अनुमान लगाया गया है जबकि वर्तमान खपत 61 किलोग्राम है। इसके अलावा इस नीति के तहत उच्च श्रेणी के ऑटोमोटिव इस्पात, इलेक्ट्रिकल इस्पात, विशेष इस्पात एवं सामरिक कार्यों के लिए मिश्र धातुओं की पूरी मांग को घरेलू स्तर पर पूरा करने और धुले हुए कोकिंग कोल की घरेलू उपलब्धता बढ़ाने की परिकल्पना की गई है ताकि 2031-31 तक आयातित कोकिंग कोल पर निर्भरता को करीब 85 प्रतिशत से घटाकर करीब 65 प्रतिशत पर लाया जा सके।
-नई इस्पात नीति की मुख्य बातें:---                  

  • पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारतीय इस्पात क्षेत्र ने तेजी से विकास किया है और वर्तमान में यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है जो देश के जीडीपी में करीब 2 प्रतिशत का योगदान करता है। भारत ने 2016-17 में बिक्री के लिए 100 एमटी उत्पादन के स्तर को भी पार कर गया।
  •  नई इस्पात नीति 2017 के तहत 2030 तक 300 एमटी इस्पात बनाने की क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 2030-31 तक 10 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश होगा।
  • इस नीति के तहत इस्पात की खपत बढ़ाने पर जोर दिया गया है और इसके लिए प्रमुख क्षेत्र हैं बुनियादी ढांचा, वाहन एवं आवास। नई इस्पात नीति के तहत 2030 तक प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत को बढ़ाकर करीब 160 किलोग्राम करने का लक्ष्य रखा गया है जो फिलहाल करीब 60 किलोग्राम है।
  • एमएसएमई इस्पात क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को मान्यता दी गई है। नीति में बताया गया है कि एमएसएमई क्षेत्र में ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकी को अपनाए जाने से कुल मिलाकर उत्पादकता बढ़ाने और ऊर्जा की खपत घटाने में मदद मिलेगी।
  • इस्पात मंत्रालय स्टील रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी मिशन ऑफ इंडिया (एसआरटीएमआई) की स्थापना के जरिए इस क्षेत्र में आरएंडडी की सुविधा प्रदान करेगा। इस पहल का उद्देश्य उद्योग, राष्ट्रीय आरएंडडी प्रयोगशालाओं और शैक्षणिक संस्थानों के बीच त्रिपक्षीय तालमेल बढ़ाते हुए लौह एवं इस्पात क्षेत्र में राष्ट्रीय महत्व के आरएंडडी को बढ़ावा देना है।
  • मंत्रालय नीतिगत उपायों के जरिये प्रतिस्पर्धी दरों पर लौह अयस्क, कोकिंग कोल एवं गैर-कोकिंग कोल, प्राकृतिक गैस आदि कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा।
  • राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 के लागू होने के साथ ही उद्योग में घरेलू इस्पात को बढ़ावा देने के लिए एक माहौल बनेगा और इस प्रकार एक ऐसी परिस्थिति बनेगी जहां प्रौद्योगिकी के लिहाज से उन्नत एवं वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी इस्पात उद्योग में उत्पादन खपत की अनुमानित रफ्तार को पूरा करेगा। इस्पात मंत्रालय जरूरत पड़ने पर अन्य संबद्ध मंत्रालयों के समन्वय के साथ इसे आसान बनाएगा।

पृष्ठभूमि*  ::---

  • इस्पात आधुनिक दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण उत्पादों में से एक है और यह किसी भी औद्योगिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। भारत दुनिया में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है और निर्माण, बुनियादी ढांचा, बिजली, अंतरिक्ष एवं औद्योगिक मशीनरी से लेकर उपभोक्ता उत्पादों तक इस्पात के उपयोग का दायरा काफी व्यापक है। ऐसे में यह क्षेत्र देश के लिए सामरिक महत्व का है। भारतीय इस्पात क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों के दौरान तेजी से विकास कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक बन गया है। यह जीडीपी में करीब 2 प्रतिशत का योगदान करता है और करीब 5 लाख लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर जबकि करीब 20 लाख लोगों को अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है।
  • क्षमताओं का पर्याप्त दोहन न होने और दमदार नीतिगत मदद से यह विकास के लिए एक आदर्श प्लेटफॉर्म बन गया है। वर्तमान परिदृश्य में इस क्षेत्र के सामरिक महत्व और एक दमदार एवं पुनर्गठित नीति की आवश्यकता के मद्देनजर नई एनएसपी 2017 जरूरी हो गई थी। हालांकि राष्ट्रीय इस्पात नीति 2005 (एनएसपी 2005) के तहत भारतीय इस्पात उद्योग के कुशल एवं निरंतर विकास के लिए एक रूपरेखा तैयार की गई और तत्कालीन आर्थिक ऑर्डर प्रवाह को सुदृढ़ करने के तरीके सुझाए गए, लेकिन भारत एवं दुनियाभर की हालिया घटनाओं के मद्देनजर इस्पात बाजार में मांग एवं आपूर्ति में संतुलन स्थापित करने के लिए इसे लागू करने की जरूरत महसूस की गई है।

साभार : विशनाराम माली 

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