अशांति की संस्कृति के प्रचार की बजाय, तार्किक विचार-विमर्श और वाद-विवाद में भाग लें विश्‍वविद्यालयों के छात्र और शिक्षक: राष्‍ट्रपति

हमारे प्रमुख उच्चतर शिक्षण संस्थान ऐसे माध्‍यम हैं, जिनसे भारत अपने को सुविज्ञ समाज के रूप में स्थापित कर सकता है। ज्ञान के इन मंदिरों में रचनात्मकता और स्वतंत्र चिंतन की गूंज होनी चाहिए। विश्‍वविद्यालयों के विद्यार्थियों और शिक्षकों को अशांति की संस्कृति के प्रचार की बजाय, तार्किक विचार-विमर्श और वाद-विवाद में भाग लेना चाहिए। उन्‍हें हिंसा और अशांति के भंवर में फंसे देखना दुखद है।

  • राष्‍ट्रपति ने कहा कि ‘असहिष्‍णु भारतीय’ के लिए भारत में कोई स्‍थान नहीं होना चाहिए।
  • भारत प्राचीन काल से ही स्‍वतंत्र विचार, भाषण और अभिव्‍यक्ति का केंद्र रहा है। विभिन्‍न विचाराधाराओं द्वारा खुला वाद-विवाद और बहस के साथ-साथ चर्चा किया जाना भी हमारे समाज की हमेशा से विशेषता रहा है। 
  • अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त सर्वाधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है। वैध आलोचना और असहमति की गुंजाइश हमेशा रहनी चाहिए।
  • राष्‍ट्रपति ने कहा कि हमारे नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज सुननी चाहिए, उसके साथ जुड़ना चाहिए, उससे सीखना चाहिए और उसकी जरूरतों को पूरा करना चाहिए तथा चिंताओं को मिटाना चाहिए।
  • हमारे सांसदों को कभी भी जनता को हल्‍के में नहीं लेना चाहिए। उन्‍हें कानून बनाने के मूलभूत कार्य और जनता की चिंता के विषयों को उठाने सा‍थ ही साथ उनकी समस्‍याओं का समाधान तलाशने पर भी ध्‍यान केंद्रित करना चाहिए। निर्वाचित पद पर आसीन पर किसी भी व्‍यक्ति को यह नहीं समझना चाहिए कि उसे मतदाताओं द्वारा उस पद पर कब्‍जा  करने के लिए आमंत्रित  किया गया है। उनमें से प्रत्‍येक को मतदाताओं के पास जाना और उनके मत और समर्थन के अनुनय करना पड़ा है। जनता द्वारा राजनीतिक व्‍यवस्‍था और निर्वाचित लोगों पर व्‍यक्‍त किए गए विश्‍वास के साथ धोखा नहीं होना चाहिए।
  • राष्‍ट्रपति ने कहा कि वह ऐसे किसी भी समाज या राज्य को सभ्‍य नहीं मानते, अगर उसके नागरिकों का आचरण महिलाओं के प्रति असभ्‍य है। जब हम किसी महिला के साथ बर्बरतापूर्ण व्‍यवहार करते हैं, तो हम अपनी सभ्‍यता की आत्मा को घायल करते हैं। केवल हमारा संविधान ही महिलाओं को समान अधिकार प्रदान नहीं करता, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा में भी नारियों को देवी का स्‍थान दिया गया है। हमारी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता होनी चाहिए।
  • किसी भी समाज की अग्नि परीक्षा महिलाओं और बच्चों के प्रति उसका दृष्टिकोण होता है। उन्होंने कहा कि भारत को इस परीक्षा में विफल नहीं होना चाहिए। राष्‍ट्रपति ने कहा कि राष्‍ट्रीय उद्देश्‍य और देशभक्ति, जो अकेले ही हमारे देश को निरंतर प्रगति और समृद्धि की राह पर अग्रसर करने में समर्थ हैं, को नए सिरे से खोजने के सामूहिक प्रयास करने का समय आ चुका है। राष्ट्र और जनता सदैव पहले आने चाहिए
  • हमारे संवैधानिक मूल्य, युवा आबादी और उद्यमिता की योग्यताएं साथ ही साथ कड़ा परिश्रम करने करने की क्षमता हमें वे मूलभूत तत्व प्रदान करती हैं, जो त्वरित प्रगति और साथ ही साथ परवाह करने वाले और करुणामय समाज के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। पिछले 70 वर्षों में भारत में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। उन्हें विश्वास है कि जब हम मुक्त लोकतांत्रिक एवं समावेशी समाज को और ज्यादा मजबूती प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने राष्ट्र को आगे ले जाएंगे, तो अगले 10 बरसों में हम इससे भी ज्यादा प्रगति के साक्षी बनेंगे।

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