- उत्तराखंड जल विद्युत निगम एवं आईआईटी रूड़की के सहयोग से केन्द्रीय जल आयोग द्वारा आयोजित
- इस सम्मेलन में बांध सुरक्षा के क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया, जिनका सामना वर्तमान में जारी बांध सुरक्षा पुनर्वास एवं सुधार परियोजना (डीआरआईपी) के कार्यान्वयन में करना पड़ रहा
- बांधों ने तेज एवं सतत कृषि तथा ग्रामीण प्रगति और विकास को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाई है, जोकि आजादी के बाद से भारत सरकार की प्रमुख प्राथमिकताओं में रही है। पिछले 70 वर्षों के दौरान भारत ने खाद्य, ऊर्जा एवं जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जलाशयों में सीमित सतही जल संसाधनों को प्रबंधित एवं भंडारण करने के लिए आवश्यक अवसंरचना में उल्लेखनीय रूप से निवेश किया है।
- लगभग 283 बिलियन क्यूबिक मीटर की कुल भंडारण क्षमता के साथ बड़े बांधों की संख्या के लिहाज से दुनिया में चीन और अमरीका के बाद भारत का तीसरा स्थान है।
- लगभग 80 प्रतिशत बड़े बांधों ने 25 वर्ष की उम्र पार कर ली है और उनमें से कई के सामने अब विलंबित रख-रखाव की चुनौती खड़ी हो गई है। इनमें से कई बांध बेहद पुराने हैं (लगभग 170 बांधों की उम्र 100 वर्ष से अधिक है) और उनका निर्माण ऐसे समय में हुआ था, जिनके डिजाइन प्रचलन एवं सुरक्षा संबंधी विचार वर्तमान डिजाइन मानकों एवं मौजूदा सुरक्षा नियमों के अनुरूप नहीं हैं।
- इनमें से कई बांधों के सामने कठिनाइयां उत्पन्न हो रही हैं और उनकी संरचनात्मक सुरक्षा तथा परिचालनगत कुशलता सुनिश्चित करने के लिए उन पर तत्काल ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। बड़े बांधों की विफलता बांधों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं को बाधित करने के अलावा गंभीर रूप से जान, माल एवं पर्यावरण को प्रभावित कर सकती है।
- इसके महत्व को महसूस करते हुए जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने 2012 में विश्व बैंक की सहायता से 6 वर्षींय बांध सुरक्षा पुनर्वास एवं सुधार परियोजना (डीआरआईपी) की शुरूआत की। इसमें संस्थागत सुधारों एवं सुरक्षित तथा वित्तीय रूप से टिकाऊ बांध परिचालनों से संबंधित नियामकों उपायों को मजबूत बनाने के साथ भारत के 7 राज्यों में 225 बड़ी बांध परियोजनाओं में व्यापक पुनर्वासएवं सुधार के प्रावधान हैं। इस परियोजना का कार्यान्वयन 7 राज्यों (झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु एवं उत्तराखंड) में किया जा रहा है।
- - डीआरआईपी नवीन समाधानों एवं प्रौद्योगिकियों को लागू करने के द्वारा इस गंभीर समस्या का समाधान करने तथा बांध सुरक्षा मुद्दों पर जागरूकता के प्रचार-प्रसार करने में सफल रही है। चूंकि यह परियोजना केवल पांच प्रतिशत बड़े बांधों एवं 7 राज्यों से ही संबंधित है, इसलिए विभिन्न राज्यों में एक वार्षिक समारोह के रूप में बांध सुरक्षा क्षेत्रों में ज्ञान एवं अनुभव को साझा करने के लिए गैर-डीआरआईपी राज्यों के पेशेवर व्यक्तियों, शिक्षाविदों, उद्योगों तथा वैश्विक विशेषज्ञों के साथ राष्ट्रीय बांध सुरक्षा सम्मेलनों (एनडीएससी) का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रकार के सम्मेलन नये बांधों के डिजाइन एवं निर्माण के लिए तकनीकों, उपकरणों, सामग्रियों आदि तथा मौजूदा बांधों के अनुवीक्षण, निगरानी, परिचालन, रख-रखाव एवं पुनर्वास की अवधारणाओं को प्रचारित करेंगे।
साभार : विशनाराम माली