अशोभनीय तकरार: न्यायाधीशों की नियुक्ति पर

Present Context:

हाल में उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए 77 नामों की एक सूची केंद्र सरकार को भेजी थी। सरकार ने इसमें 43 नामों को अपनी टिप्पणियों के साथ पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया। कॉलेजियम ने एक सप्ताह के अंदर सरकार की आपत्तियों को खारिज करते हुए उन सभी नामों की दोबारा पुष्टि कर दी।

उच्चतम और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर जारी तकरार हमारे लोकतंत्र के लिए अपशकुन है। इस तकरार के लिए जिम्मेदार कौन है?

  • स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र की प्राण-वायु है।
  •  न्यायपालिका को स्वतंत्र और जीवंत बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है।
  • साथ ही, न्यायपालिका को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र उसकी स्वायत्तता सुनिश्चित करता है।

Is it completely justified to ignore voice of eleceted government

  • एक निर्वाचित सरकार द्वारा उठाई गई आपत्तियों को इतने हल्के में नहीं लिया जा सकता।
  • उच्चतम न्यायालय ने 1993 में ‘सेकेंड जजेज केस’ में व्याख्या के जरिये न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार कार्यपालिका से छीन लिया था। इस निर्णय की वैधता पर बड़े-बड़े विधिवेत्ताओं ने सवाल उठाया है। इसके अलावा कॉलेजियम के कामकाज पर स्वयं कई न्यायाधीशों ने सवाल खड़े किए हैं।
  •  न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने यह कहकर कॉलेजियम की बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया कि इसके काम में पारदर्शिता नहीं है।
  •  ‘सेकेंड जजेज’ मामले में निर्णय लिखने वाले न्यायमूर्ति जे एस वर्मा ने स्वयं बाद में कॉलेजियम प्रणाली को बदलने की सलाह दी।

Initiative to change collegium system and issue of conflict

  • जब से उच्चतम न्यायालय ने नियुक्ति का अधिकार अपने हाथों में लिया है, तभी से सरकार के अंदर इसको लेकर असंतोष है। मगर 2014 में पहली बार सरकार ने संविधान में संशोधन कर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का प्रावधान कर इसे बदलने का प्रयास किया।
  •  लेकिन उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से इस संविधान संशोधन को खारिज कर दिया। हालांकि प्रस्तावित आयोग के छह सदस्यों में से तीन उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं और बाकी में एक विधि मंत्री व दो विशिष्ट व्यक्ति।
  • न्यायालय का तर्क है कि विधि मंत्री किसी एक विशिष्ट सदस्य की मदद से न्यायाधीशों के सुझाए किसी नाम को रोक सकता है।

Some basic question

यहां यह सवाल है कि क्या संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ जजों की है? बेशक उच्चतम न्यायालय संविधान का मुख है, पर विधायक, सांसद और मंत्री भी जज की तरह एक शपथ लेते हैं। संविधान को बचाने की जिम्मेदारी उनकी भी उतनी है, जितनी जजों की।

Conclusion:

न्यायपालिका की स्वायत्तता इससे प्रभावित नहीं होती है कि जजों की नियुक्ति कौन करता है। यह कहना कि यदि कार्यपालिका के हाथों में नियुक्ति का अधिकार होगा, तो राजनीतिक चरित्र वाले न्यायाधीश बनाए जाएंगे, आधारहीन है। कई राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति जज बनाए जा चुके हैं, लेकिन उनकी निष्पक्षता कभी संदिग्ध नहीं हुई। न्यायाधीशों की नियुक्ति का मामला किसी के अहंकार व प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनना चाहिए।

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