आसमान से बरसता मौत का कहर

#Dainik_tribune

Urgency of situation and recent context

आकाशीय बिजली गिरने की खबर पर कम ही ध्यान जाता है, पर जब यह पता चले कि हाल में, बिहार में एक ही दिन में आकाशीय बिजली की चपेट में आकर दो दर्जन से ज्यादा मौतें हो गईं तो इस समस्या पर विचार करना जरूरी लगता है। उत्तराखंड और यूपी में भी कुछ मौतों की खबर है। पिछले साल तो बिहार, यूपी, झारखंड और मध्य प्रदेश में मानसून के दौरान दो दिनों के भीतर 117 जानें आसमानी बिजली के कारण चली गई थीं।

  • इससे लग रहा है कि हम इस प्राकृतिक आपदा के आगे बिल्कुल असहाय हैं।
  • जबकि पश्चिमी देशों में तो आसमानी बिजली की चपेट में आकर इतनी मौतें नहीं
  • एक प्राकृतिक आपदा के तौर पर आकाश से गिरती बिजली के आगे इनसान आज भी बेबस है तो साइंस की तरक्की पर हैरानी होती है और उन इंतजामों को लेकर भी, जो आकाशीय बिजली के प्रकोप को कम नहीं कर पाते हैं।
  • हालांकि मौसम विभाग की ओर से रेडियो-टीवी पर मौसम के पूर्वानुमानों में आकाशीय तड़ित की जानकारी दी जाती है, पर वह इतनी पुख्ता ढंग से नहीं बताई जाती। यह आपदा इनसानों के साथ-साथ जानवरों को भी अपनी चपेट में ले लेती है, जिसके कारण बहुमूल्य पशुधन नष्ट हो जाता है।

Human loss?

वैसे तो भवनों के निर्माण के वक्त तडि़त अवशोषी इंतजाम करने की सलाह दी जाती है, पर सवाल यह है कि बस स्टैंड, झोपड़ियों में, खेतों में काम करते वक्त या फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होने पर क्या कोई इंतजाम हमें आसमान से लपकती मौत से बचा सकता है? दुनिया में तकरीबन हर रोज जो हजारों तूफानी बारिशें होती हैं और उनसे करीब सौ बिजलियां हर सेकंड धरती पर गिरती हैं, पर विकसित देशों में उनसे कभी-कभार ही मौत होती है। पर भारत जैसे मुल्क में गिरती बिजलियां अकसर बुरी खबर बन जाती हैं।

What data says?

  • आंकड़ों के मुताबिक बीते एक दशक में हमारे देश में आकाशीय बिजली की चपेट में आने से हजारों से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है।
  •  इनमें मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा (3801) मौतें हुई हैं। यह शोध भी सामने आया आ चुका है कि बिजली गिरने के दौरान मोबाइल फोन का प्रयोग जानलेवा साबित हो सकता है।

What are the reasons?

  • आकाशीय बिजली से मौतों की संख्या में बढ़ोतरी का एक कारण यह बताया जा रहा है कि जंगलों और गांव-कस्बों व शहरों में विकास कार्यों के चलते पेड़ों की बड़ी संख्या में कटाई हो रही है, जिससे उसका प्रकोप बढ़ गया है।
  • कानपुर स्थित सीएसए यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञानी अनिरुद्ध दूबे का इस बारे में मत है कि जब पेड़ों की संख्या अधिक थी तो आकाशीय बिजली ज्यादातर पोली जमीन और पेड़ों पर गिरती थी। लेकिन अब ऐसी जमीनें कम हो गई हैं और पेड़ भी नहीं बचे हैं। इसलिए प्रकृति के इस कोड़े से होने वाला संहार बढ़ गया है।

Science behind this?

  • साइंस की नजर से देखें तो पता चलता है कि आकाशीय बिजली की घटना बादलों में होने वाले इलेक्िट्रक चार्ज का परिणाम है और यह तब होती है, जब पानी से भरे किसी बादल की निचली सतह में भारी मात्रा में ऋणात्मक आवेश जमा हो, पर उसकी ऊपरी परत में धनात्मक आवेश होता है।
  • जब धरती की सतह के नजदीक गर्म और नम हवा तेजी से ऊपर की ओर उठती है और इस प्रक्रिया में ठंडी होती है तो पानी से भरे तूफानी बादलों का जन्म होता है। विज्ञान की भाषा में क्यूमलोनिंबस कहलाने वाले 44 हजार ऐसे तूफानी बादल कहीं न कहीं बनते रहते हैं और उनसे ही आकाशीय बिजली की लपक धरती की ओर झपटती है।
  • आकाशीय बिजली या तडि़त का यह रहस्य तो ढाई सौ साल पहले 1746 में बेंजमिन फ्रैंकलिन के समय में ही जान लिया गया था।
  • गौर करने वाली बात है कि दो वस्तुओं की रगड़ से या तारों की आपसी घर्षण से जो स्पार्क पैदा होता है, अकसर उसकी लंबाई एक सेंटीमीटर या उससे कम होती है, जबकि आकाशीय तडि़त की लंबाई पांच किलोमीटर या उससे भी ज्यादा हो सकती है।
  • इसके अलावा आकाशीय बिजली में दसियों हजार गुना एम्पीयर का करंट होता है, जबकि आमतौर पर घरों में दी जाने वाली बिजली में 20 एम्पीयर का करंट होता है। चूंकि आकाशीय बिजली एक बड़ी परिघटना है, इसलिए भौतिकी में इसे लेकर अनेक अनुसंधान होते रहे हैं।

यह भी ध्यान में रखने वाली बात है कि कार-बसों में बैठे लोगों से ज्यादा आकाशीय बिजली की मार उन पर पड़ती है जो खुले स्थानों में होते हैं। कार आदि की धातु की छत और वाहन का ढांचा तडि़त के आवेश को छितरा देता है और वह बिजली धरती में समा जाती है। पर खुले स्थानों में बिजली सीधे मनुष्यों या जानवरों पर गिरती है। इन हादसों की संख्या को देखते हुए बड़ी जरूरत इसकी है कि आकाशीय बिजली के प्रहार से गरीबों को

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