स्वदेशी जीपीएस सिस्टम का सपना हुआ सच, भारत ने लॉन्च किया अंतिम नेविगेशन सेटेलाइट

Ø  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज नेविगेशनल उपग्रह समूह का सातवां उपग्रह आईआरएनएसएस 1-जी सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया.

Ø   आइआरएनएसएस 1-जी उपग्रह को 35वें ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-33 के जरिए श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया. इसका पूरा नाम इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम है.

NAVIC

★सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित:-

·         1,425 किलोग्राम वजनी आईआरएनएसएस-1जी उपग्रह 20 मिनट की उड़ान के बाद सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया.

·         पिछले 6 आईआरएनएसएस प्रक्षेपणों की ही तरह इस प्रक्षेपण में भी पीएसएलवी के एक्स एल संस्करण का उपयोग किया गया है.

·          आईआरएनएसएस 1जी उपग्रह में दिशा सूचक और रेंजिंग के लिए दो पे लोड्स लगाये गये हैं. इस उपग्रह की उम्र 12 साल होगी.

·          आईआरएनएसएस-1जी उपग्रह (भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली-1जी) के सात सेटेलाइट के समूह का हिस्सा है. भारत ने अपना पहला नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-1-ए जुलाई 2013 में प्रक्षेपित किया था.

★ इसरो इससे पहले छह क्षेत्रीय नौवहन उपग्रहों (आईआरएनएसएस -1 ए, 1बी, 1सी, आईडी, 1ए और 1जी) का प्रक्षेपण कर चुका है. इसरो ने इससे पहले छठे नेविगेशन उपग्रह आइआरएनएसएस-1एफ का प्रक्षेपण 10 मार्च को किया था.

- इन सातों नौवहन उपग्रह की कुल लागत 1420 करोड़ रुपये है.

=> कितनी सटीक जानकारी देगा :-

आईआरएनएसएस-1जी उपग्रह, उपयोगकर्ताओं को भारत और उसके 1500 किलोमीटर के दायरे में रियल टाइम पोजीशन और टाइमिंग की सटीक जानकारी देगा.

- नेविगेशनल सिस्टम से दो तरह की सेवाएं हासिल होंगी. 
1. पहली स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सर्विस जो सभी उपयोगकर्ताओं को उपलब्ध करायी जाती है और 
2. दूसरी रिसट्रिक्टेड सर्विस जो केवल अधिकृत उपयोगकर्ताओं को ही मुहैया कराई जाती है.

- ये उपग्रह देश तथा हिंद महासागरीय क्षेत्र की जरूरत के लिहाज से अमेरिका की जीपीएस प्रणाली से काफी बेहतर माना जा रहा है.

★ सैटेलाइट, यूजर्स के लिए 1,500 किलोमीटर तक के विस्तार में देश और इस क्षेत्र की स्थिति की सटीक जानकारी देगा।

★ IRNSS सभी यूजर्स को 20 मीटर से भी कम की दूरी की सटीक जानकारी देगा और प्रतिबंधित सर्विस के तहत 10 मीटर की सटीक जानकारी मिलेगी।

★इस सैटेलाइट की मदद से न सिर्फ भारत के दूर दराज के इलाकों की सही लोकेशन पता चल पाएगी, बल्कि यातायात भी काफी आसान हो जाएगा।


★प्रतिबंधित सर्विस को मिलिटरी मिसाइल डिलिवरी के लिए इस्तेमाल करेगी। एयरक्राफ्ट को ट्रैक करने और उसके नेविगेशन के लिए भी इसे इस्तेमाल किया जाएगा।

★इस स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम से हवाई और समुद्री नेविगेशन में मदद मिलेगी। मछुआरों को सही जानकारी मिल सकेगी। 

★आपदा के प्रबंधन में आसानी होगी

★ इस सर्विस को मोबाइल में भी इंटिग्रेट किया जा सकेगा और इससे हाइकर्स, ट्रैवलर्स को मदद मिलेगी।
★यह सैटलाइट सड़क पर चलती गाड़ी और लोगों पर भी नजर रख पाएगा।
★इस सैटलाइट से लंबी दूरी करने वाले समुद्री जहाजों को इससे काफी फायदा होगा।

=>क्लब देशों में शामिल भारत :-

- इस उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत क्षेत्रीय उपग्रह नौवहन प्रणाली रखने वाले विशिष्ट देशों के क्लब में शामिल हो गया है.

- इसरो का दावा है कि उसने दुनिया की सबसे सस्ती (21.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर) और कारगर जीपीएस उपग्रह प्रणाली को विकसित करने में सफलता पाई है.

★यह अमेरिका के जीपीएस और रूस के ग्लोनास को टक्कर देगा। इस तरह की प्रणाली को यूरोपीय संघ और चीन भी साल 2020 तक ही विकसित कर पाएंगेl

★ भारत इस कदम से खुद का सैटलाइट लॉन्च करने वाले दुनिया का छठा देश बन गया है।

IRNSS

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