#Editorial_Bhaskar
भारत और शरणार्थी
- भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ की नार्वे शरणार्थी परिषद (एनआरसी) की रिपोर्ट में विस्थापन की समस्या से सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत का तीसरा स्थान हैं, जहां 2016 में करीब 28 लाख लोग विस्थापित हुए हैं।
- चार लाख से ज्यादा लोगों को तो हिंसा और संघर्ष की वजह से विस्थापित होना पड़ा तथा 24 लाख लोग आपदाओं की वजह से विस्थापित हुए हैं।
- रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आर्थिक वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में सुधार के प्रयास असमानता को पाटने में नाकाम रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक दस में से हर तीसरा भारतीय आंतरिक विस्थापन के दौर से गुजर रहा हैं।
इसकी चुनौती
- देश में हिंसा और संघर्ष की वजह से विस्थापित लोगों की बढ़ती संख्या देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किसी चुनौती कम नहीं हैं। जातीय संघर्ष से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या भी अधिक हैं, जिसमें उत्तर-प्रदेश और बिहार शीर्ष स्थान पर हैं।
- देश में ज्यादातर लोग क्षेत्रीय एवं जातीयता से संबंध रखते हैं और इनसे संबंधित संघर्ष स्थानीय हिंसा का रूप ले लेता है, जिससे निपटने में स्थानीय सरकारें नाकाम रही हैं। उन्हें केंद्र सरकार के साथ समन्वय स्थापित करने वाली रणनीति के साथ काम करना होगा। इसके तहत सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम जैसे मानवाधिकारों का हनन करने वाले कानूनों के असंगत इस्तेमाल को रोककर जनहानि रोकनी होगी।
- दूसरी ओर देश में करीब 24 लाख लोग आपदाओं के चलते विस्थापित हुए हैं। दुनिया में जितने तरह की प्राकृतिक आपदाएं हैं, वे भारत में आती रहती हैं, जिसके चलते लोग सबसे अधिक असुरक्षा महसूस करते हैं। इनका पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल होता है।
इसके लिए स्वयंसेवी संगठनों और सरकारों को आने वाली आपदा की चेतावनी से लेकर उसके पश्चात पुनर्वास,पुनर्निर्माण, भविष्य के लिए वैकल्पिक व्यवस्था, बचाव एवं राहत कार्य बहुउद्देश्यी फैसले लेकर करने होंगे। इस मामले में हम कमजोर रहे हैं और इसीलिए लोगों में असुरक्षा का अहसास बढ़ा है। असुरक्षा यही बोध आपसी अविश्वास, अंधविश्वास, जातीय व धार्मिक द्वेष का कारण है।