मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट’ के प्रावधानों पर पुनर्विचार की मांग

#Satyagrah

Context

चंडीगढ़ की एक जिला  अदालत ने 10 साल की एक बच्ची को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. इस फैसले के बाद यह चर्चा तेजी से होने लगी है कि क्या देश में गर्भपात संबंधी कानूनों पर पुनर्विचार करना जरूरी हो गया है

  • अस्पताल ने गुड़िया का गर्भपात करने से इनकार कर दिया. दरअसल मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के तहत 20 हफ़्तों के गर्भ के बाद गर्भपात सिर्फ तभी किया जा सकता है जब मां या बच्चे की जान बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी हो.
  • चूंकि गुड़िया के मामले में 20 हफ़्तों का यह समय बीत चुका था लिहाज़ा अस्पताल ने उसका गर्भपात करने से इनकार कर दिया.
  • गर्भपात की अनुमति के लिए जब गुड़िया के माता-पिता न्यायालय पहुंचे तो न्यायालय ने भी 20 हफ़्तों का समय बीत जाने के चलते उसे गर्भपात की अनुमति देने से इनकार दिया.

चंडीगढ़ की अदालत ने यह फैसला स्थानीय डॉक्टरों की सलाह के बाद लिया. स्थानीय डॉक्टरों का मानना है कि गुड़िया की उम्र बहुत कम है और उसकी गर्भावस्था इस हद तक बढ़ गई है कि अब गर्भपात करने से उसकी जान को खतरा हो सकता है. लेकिन देश भर के कई विशेषज्ञ चंडीगढ़ के डॉक्टरों से अलग राय भी रखते हैं.

  • इन लोगों का मानना है कि गुड़िया को गर्भपात की अनुमति देना जोखिम भरा हो सकता है लेकिन उसे यह अनुमति नहीं देना और भी ज्यादा जोखिम भरा है.
  • इन विशेषज्ञों के अनुसार 10 साल की बच्ची का शरीर इतना सक्षम नहीं होता कि वह एक बच्चे को जन्म दे सके लिहाज़ा गर्भपात ही गुड़िया के लिए बेहतर विकल्प है.
  • 10 साल की इस बच्ची का मामला बेहद संवेदनशील है. इस अवस्था में उसके लिए गर्भपात भी खतरे से खाली नहीं है और बच्चे को जन्म देना तो और भी ज्यादा जोखिम भरा है.

Need to reform Medical Termination Pregnancy act

  • भारत में गर्भपात से सम्बंधित कानूनों में बदलाव की बात पहले से भी उठती रही है. दरअसल हमारे देश में गर्भपात ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971’ के अनुसार ही किया जा सकता है.
  • कई जानकार मानते हैं कि 1971 के इस कानून में बदलावों की सख्त जरूरत है क्योंकि बीते 40-50 सालों में मेडिकल साइंस ने बेहद तेजी से तरक्की की है और तब के मुकाबले आज हम मानव शरीर को कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से समझते हैं. लिहाजा इस कानून को भी आज की समझ के अनुसार बदलना जरूरी हो गया है.
  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971’ के कई प्रावधानों पर पुनर्विचार की मांग होती रही है जिनमें से इस अधिनियम की धारा तीन प्रमुख है. यही वह प्रावधान है जो 20 हफ़्तों के बाद गर्भपात को कानूनन अपराध बनाता है और अपवादों को छोड़ इसे पूरी तरफ से प्रतिबंधित करता है. ऊपरी तौर पर देखने से तो इस प्रावधान में कोई कमी नज़र नहीं आती लेकिन यह प्रावधान गुड़िया जैसे कई बच्चों और महिलाओं के लिए अभिशाप बन जाता है.
  • कई जानकार मानते हैं कि ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट’ के प्रावधान उन महिलाओं या बच्चियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन जाते हैं जो बलात्कार के कारण गर्भवती हो जाती हैं. गुड़िया की तरह देश भर में हर साल हजारों बच्चियां यौन शोषण का शिकार होती हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में औसतन हर 13 घंटे में एक 10 साल से कम उम्र का बच्चा बलात्कार का शिकार होता है. सिर्फ 2015 में ही हमारे देश में 10 हजार से ज्यादा बच्चे बलात्कार का शिकार हुआ थे. ऐसे में कई बार गुड़िया जैसे मामले भी सामने आते हैं जहां पीड़ित की उम्र और समझ इतनी कम होती है कि उसे अपने गर्भवती होने की बहुत लंबे समय तक जानकारी ही नहीं होती.
  • गुड़िया को अगर बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है तो उस पर इसके शारीरिक ही नहीं बल्कि गंभीर मानसिक प्रभाव भी होंगे. पहला तो उसका शरीर ही बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं है. उसकी हड्डियां भी इतनी मजबूत नहीं हैं कि बच्चे को जन्म दे सकें. बल्कि आने वाला समय उसके लिए बेहद खतरनाक हो सकता है क्योंकि 10 साल की बच्ची का शरीर पूरे नौ महीनों तक गर्भ को संभालने लायक भी विकसित नहीं होता है.’

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