- 11 साल की एक बच्ची ने बहुत बड़ा सपना देखा था-बाल श्रम, बाल विवाह और कन्या तस्करी मुक्त समाज का। अपने सपने को साकार करने में वह पिछले एक दशक से जुटी हुई है। उसने अब तक 50 बाल विवाह रोके हैं, कन्या तस्करी की 135 कोशिशों को नाकाम किया है और 180 बच्चों को तस्करों के चंगुल से छुड़ाकर उनके अपनों से मिलाया है। इसके अलावा 400 बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया है। इतने सारे असाधारण कार्य अनोआरा खातून ने किए हैं, जो अब 21 साल की हो चुकी है।
- अनोआरा को बच्चों की मसीहा कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उसकी मेहनत, लगन और दृढ़ निश्चय की राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक दाद दे चुके हैं। इस साल आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अनोआरा को राष्ट्रपति भवन में नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी उसे अपने हाथों से पुरस्कृत कर चुकी हैं। देश ही नहीं, विदेश में भी अनोआरा के कार्यों को खूब सराहा गया है। उसे बाल अधिकारों से जुड़े मसलों पर वक्तव्य रखने के लिए एक नहीं, दो-दो बार (2015 व 2016) न्यूयॉर्क में आयोजित हुई युनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली मीट में आमंत्रित किया जा चुका है। इससे पहले अनोआरा 2014 में ब्रूसेल्स में बाल अधिकारों पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है।
बाल सैनिकों की बड़ी फौज की सेनापति
- पश्चिम बंगाल में उत्तर 24 परगना जिले के अजगारा गांव की रहने वाली अनोआरा के पास 1,500 बाल सैनिकों की एक बड़ी फौज है। वह अकेले 80 बाल समूहों का नेतृत्व करती है। प्रत्येक समूह में 15-20 बच्चे शामिल हैं।
- इन समूहों का काम बाल श्रम, बाल विवाह व कन्या तस्करी रोकना एवं बच्चों को स्कूल भेजना है।
- बेहद गरीबी में पैदा हुई और पली-बढ़ी अनोआरा का जन्म ऐसी जगह पर हुआ, जहां कन्या तस्करी, बाल श्रम और बाल विवाह कभी आम बात हुआ करती थी।
- अनोआरा जब महज पांच साल की थी, उसके वालिद (पिता) का इंतकाल हो गया था। आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार की मदद करने के लिए उसे 11 साल की छोटी सी उम्र में दिल्ली जाकर दूसरों के घरों में काम करना पड़ा। आंखों के सामने बाल शोषण होता देख उसे रोकने के इरादे ने जन्म लिया, जो समय के साथ मजबूत होता गया। अनोआरा काम छोड़कर अपने गांव लौट आई और बाल शोषण के खिलाफ मुहिम छेड़ दी।