रुपये की गिरावट का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर

डॉलर में मजबूती के चलते रुपया लगातार गिर रहा है और संभावना जताई जा रही है कि रुपया अभी और कमजोर हो सकता है. आर्थिक जानकारों के मुताबिक माना जा रहा है कि आने वाले समय में यह 70 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच सकता है. जानें रुपये की गिरावट के कौन-कौन से निगेटिव असर आपको देखने को मिल सकते हैं-

1.रुपये की गिरावट से महंगाई बढ़ने का डरः रुपये की गिरावट से import महंगे होंगे जिससे वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे. इसका सीधा असर महंगाई बढ़ने के रूप में देखा जाएगा.

2. सरकारी घाटा बढ़ेगाः-रुपए में कमजोरी से देश के सरकारी घाटे पर दबाव बढ़ने का डर रहता है जिसके चलते सरकार को खर्च नियंत्रित करना पड़ सकता है, इसका सीधा असर देश की विकास दर पर देखने को मिल सकता है.

3.पेट्रोल-डीजल होंगे महंगेः-भारत के इंपोर्ट का बहुत बड़ा हिस्सा पेट्रोलियम उत्पादों के इंपोर्ट में जाता है और ये डॉलर में भुगतान किया जाता है. रुपए में गिरावट की वजह से कच्चे तेल के इम्पोर्ट बिल (आयात बिल) महंगे हो सकते हैं जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी हो सकती है. इसके चलते आने वाले समय में आपको पेट्रोल-डीजल के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है.

4.विदेश में पढ़ाई और घूमना होगा महंगाः  डॉलर महंगा होने और रुपया सस्ता होने से विदेश में पढ़ाई महंगी हो जाएगी. इसके अलावा विदेशी पर्यटन की लागत भी बढ़ सकती है. लोगों को विदेश घूमने पर ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा.

5.पेंट, साबुन, शैंपू इंडस्ट्री पर असरः- रुपए में गिरावट बढ़ने से अगर पेट्रोलियम उत्पाद महंगे हुए तो पेट्रोल-डीजल के साथ-साथ साबुन, शैंपू, पेंट इंडस्ट्री की लागत बढ़ेगी जिससे ये प्रोडेक्ट भी महंगे हो सकते हैं.

6.ऑटो इंडस्ट्री की बढ़ेगी लागतः- भारी मात्रा में इम्पोर्ट होने वाले ऑटो और मशीनों के कम्पोनेंट के डॉलर पेमेंट में इजाफा हो सकता है. इसकी वजह से कंपनियों को डॉलर के मुकाबले ज्यादा रुपये देने पड़ेंगे.

7.माल ढुलाई होगी महंगीः-  वहीं, क्रूड में अगर कोई गिरावट आती है तो भी रुपए में गिरावट से इसका असर खत्म हो सकता है. डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी से महंगाई पर दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि महंगे डीजल से माल ढुलाई बढ़ने की आशंका है.

8.Exports में आएगी गिरावटः- हालांकि रुपये की गिरावट से एक्सपोर्ट में आमतौर पर इजाफा होता है लेकिन मौजूदा स्थिति में शायद से संभव ना हो सके क्योंकि अमेरिका और यूरोप वैसे ही मंदी के दौर से गुजर रहे हैं जिससे वहां से एक्सपोर्ट में ज्यादा इजाफा होने की उम्मीद नहीं है.

=>क्यों बढ़ी डॉलर की कीमत और रुपये में आई गिरावट?

बताया जा रहा है कि तेल कंपनियों की तरफ से डॉलर की मांग बढ़ने के चलते डॉलर को मजबूती मिल रही है. वहीं 9 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने भी डॉलर को मजबूत करने की दिशा में सहारा दिया. रुपये की लगातार गिरावट के पीछे मुख्य वजह विदेशी फंडों की लगातार निकासी बताई जा रही है. इसके अलावा अमेरिका की केंद्रीय बैंक की ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना से भी रुपये का स्तर गिर रहा है. दरअसल अमेरिका में अगले महीने ब्याज दरें बढ़ने की संभावना बढ़कर 94 फीसदी पर चली गई है, ऐसे में डॉलर 14 साल की ऊंचाई पर है. अमेरिका में इकोनॉमी के अच्छे आंकड़ों से भी डॉलर को सपोर्ट मिला है, जबकि नोटबंदी से घरेलू बाजार में रुपये पर दोहरा दबाव है. नोटबंदी को भी इसके पीछे वजह माना जा रहा है लेकिन नोटबंदी का बहुत ज्यादा असर रुपये की कीमत को गिराने में नहीं है.

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