यह रोजगार विहीन विकास ही तो है

Falling job data is serious concern for India. Despite growth inequalities are rising. 

#Rajasthan_Patrika

Rising Economic disparity

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने बताया है कि वर्ष 1980 से 2014 तक के 34 वर्षों के बीच जीडीपी में जो वृद्धि हुई है उसका 66 प्रतिशत ऊपर के 10 प्रतिशत लोगों ने हस्तगत कर लिया और ऊपर के एक प्रतिशत लोगों के पास विकास का 29 प्रतिशत चला गया।

Falling GDP growth rate

वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर 5.4 प्रतिशत ही रही जो 2016-17 की इसी तिमाही में 7.6 प्रतिशत की विकास दर से काफी कम है। पिछले तीन सालों में अर्थव्यवस्था में लगातार अच्छे प्रदर्शन के बाद विकास दर में यह गिरावट सरकार के लिए चिंता का विषय बन रही है।

  • ध्यान से देखा जाए तो यह मुख्यत: मैन्युफैक्चरिंग (विनिर्माण) में विकास घटने के कारण हुआ
  • पिछले साल 2016-17 में नोटबंदी के बाद भी यह विकास दर 7.2 प्रतिशत रही थी। सरकार ने इस मंदी से निपटने के लिए बैठकों का दौर शुरू कर दिया है। यही नहीं नीति आयोग के नए उपाध्यक्ष ने भी तमाम पक्षों के लिए बैठकों का दौर शुरू कर दिया है।

Efforts in pipeline to boost GDP

  • ऐसी खबरें आ रही हैं कि अर्थव्यवस्था को धीमेपन से बाहर करने के लिए राहत और बूस्टर पैकेज देने की तैयारी चल रही है। माना जा रहा है कि कंपनियों को निवेश करने के लिए ज्यादा पैसा देने और बैंकों को गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) से निजात दिलाने के लिए राहत देने की तैयारी चल रही है। सरकार की कोशिश रहेगी कि यह सब राजकोषीय अनुशासन को बनाए रखते हुए किया जाए। इसका मतलब यह है कि इस काम के लिए पैसा करों के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से भी जुटाया जाएगा। यानी इसके लिए विनिवेश को भी बढ़ाया जा सकता है।

यह पहली बार नहीं है कि मंदी से निपटने के लिए राहत पैकेज दिए जाएंगे। विकसित देशों में तो यह पुराना रिवाज है। 2007-08 की मंदी के बाद अमरीका, यूरोपीय देशों और अन्य विकसित देशों ने इस प्रकार के राहत पैकेज दिए ही थे तो भारत ने भी उसी तर्ज पर भारी मात्रा में ‘बेल आउट’ पैकेज दिए। अमरीकी राष्ट्रपति को सरकारी कर्ज की सीमा बढ़वाने के लिए अमरीकी कांग्रेस (संसद) के पास गुहार भी लगानी पड़ी और अब तक वहां सरकारी कर्ज 2007 में जीडीपी के 35.3 प्रतिशत से बढ़ता हुआ, जुलाई 2016 तक जीडीपी के 76.5 प्रतिशत तक पहुंच गया।

IS India under grip of Middle income trap?

उस दौरान भारत सरकार द्वारा बेल आउट पैकेज के नाम पर टैक्सों में राहत और कंपनियों को रियायतें देने के कारण राजकोषीय घाटा 2007-08 में जीडीपी के 2.5 प्रतिशत से बढ़ता हुआ 2009-10 में 6.5 प्रतिशत तक पहुंच गया। इस कारण सरकारी कर्ज भी काफी मात्रा में बढ़ गया। आंतरिक सरकारी कर्ज 2007-08 में 18 लाख करोड़ रुपए से बढ़ता हुआ वर्ष 2010-11 तक 29 लाख करोड़ रुपए हो चुका था। इससे देश में महंगाई बढ़ गई और ब्याज दरें भी। और फिर, सट्टेबाजों और कालाबाजारी के चलते बढ़ती महंगाई ने विकास दर पर लगाम लगा दी। जीडीपी विकास दर 2007-08 में 9.5 प्रतिशत वार्षिक से घटती हुई 2013-14 तक 4.7 प्रतिशत वार्षिक पर पहुंच गई। दुनिया भर से अर्थशास्त्रियों ने इसे ‘मिडिल इन्कम ट्रैप’ यानी ‘मध्य आय का मकडज़ाल’ का नाम दे दिया और कहा जाने लगा कि भारत तीन दशकों तक तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था से पुन: सत्तर के दशक की स्थिति पर पहुंच गया है। लेकिन, 2013-14 के बाद जीडीपी विकास दर पुन: बढऩे लगी और 2016-17 में नोटबंदी के बावजूद यह 7.2 प्रतिशत तक पहुंच गई। लेकिन, पिछली तिमाही में विकास दर के घटने पर फिर से चर्चा शुरू हो गई कि क्या भारत एक बार फिर मंदी में प्रवेश कर रहा है। इसके पीछे ‘जीएसटी’ और नोटबंदी को भी कारण बताया जा रहा है। लेकिन, मोर्गेन स्टेनली संस्था ने कहा है कि अगले 10 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में 2 खरब डॉलर से बढ़ती हुई 6 खरब डॉलर (तीन गुणा) हो जाएगी। यानी कहा जा सकता है कि यह धीमापन स्थाई नहीं रहेगा।

Concluding mark: Growth is Jobless?

यह सही है कि अस्सी-नब्बे के दशक से प्रारंभ नई आर्थिक नीति अपनाने के बाद जीडीपी विकास दर खासी तेज हो गई। भारत में 1990-91 में प्रति व्यक्ति आय 11,535 रुपए ही थी, जो 2016-17 तक बढक़र 1,15,428 रुपए हो चुकी है। यदि उसमें से कीमत वृद्धि (6.6 गुणा) घटा भी दी जाए तो भी प्रति व्यक्ति आय 3.4 गुणा बढ़ चुकी है। लेकिन क्या इस अनुपात में आम आदमी की आय बढ़ी? हाल ही में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने अपने एक लेख के माध्यम से बताया है कि वर्ष 1980 से 2014 के 34 वर्षों के बीच जीडीपी में जो वृद्धि हुई है उसका 66 प्रतिशत ऊपर के 10 प्रतिशत लोगों ने हस्तगत कर लिया और ऊपर के एक प्रतिशत लोगों के पास विकास का 29 प्रतिशत चला गया।
आंकड़े बताते है कि इस बीच स्वरोजगार में खासी कमी आई और उनके स्थान पर दिहाड़ी मजदूरों की संख्या में वृद्धि हुई। वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि 1990-91 में कुल उत्पादन का 78 प्रतिशत हिस्सा मजदूरी और वेतन में जाता था, जो वर्ष 2014-15 तक घटता हुआ मात्र 41 प्रतिशत रह गया। हम देखते हैं कि उत्पादन में लाभ का हिस्सा 19 प्रतिशत से बढ़ता हुआ 57 प्रतिशत पहुंच गया। किसी भी दृष्टिकोण से देखा जाए तो विकास के इस युग में आम आदमी आर्थिक दृष्टि से आगे बढऩे की बजाय पिछड़ गया। एक तरफ जीडीपी तेजी से बढ़ रही है लेकिन रोजगार ? में कोई वृद्धि दिखाई नहीं देती। तो फिर, इसे रोजगार विहीन विकास कहना अनुचित नहीं है।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download