बेरोजगारी की लाचारी

Recent example portrays a bleak picture of unemployment. It is a big slap on our education system.


Dianik_Tribune
Recent context 
    यह खबर विचलित करती है कि राजस्थान विधानसभा सचिवालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती के लिये सैकड़ों इंजीनियरों, वकीलों, चार्टेड अकांउटेंटों व कला स्नातकोत्तरों ने आवेदन किये।
    उस पर तुर्रा ये कि भाजपा के एक विधायक के पुत्र का चयन चपरासी के लिये हुआ, जिसको लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं कि इस चतुर्थ श्रेणी के पद के लिये राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल हुआ। 
    ऐसी ही खबर पिछले दिनों हिसार से आई थी कि जिला व सत्र न्यायालय में 17 चपरासियों की भर्ती के लिये पंद्रह हजार से अधिक बेरोजगारों ने आवेदन किये। जिसमें पीएचडी, एमएससी, बीसीए व अन्य उच्च पाठ्यक्रम की अहर्ता रखने वाले बेरोजगारों ने आवेदन किये
Employment and bleak picture in India
    ये घटनाक्रम जहां देश में भयावह बेरोजगारी की हकीकत को बयां करता है, वहीं इन डिग्रियों के अवमूल्यन की वजहों पर सोचने को विवश करता है। 
    देश के सत्ताधीश भले ही रोज नये सब्जबाग दिखाते हों, जमीन पर रोजगार की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। सही मायनो में यह शासन की विफलता को इंगित करता है। 
    बड़ी-बड़ी योजनाओं और घोषणाओं के बावजूद रोजगार के वास्तविक अवसर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। यहां सवाल ये भी उठता है कि क्यों उच्च डिग्रियों के धारक चतुर्थ श्रेणी की पोस्ट के लिये आवेदन कर रहे हैं। क्या उनमें आत्मविश्वास की कमी है कि इससे बेहतर नौकरी नहीं मिल पायेगी?


A big Question : Performance of our Education system


ये घटनाएं जहां हमारे शैक्षिक संस्थानों और पाठ्यक्रमों की उपादेयता पर सवाल खड़े करती हैं, वहीं ये भी बताती हैं कि हमारी शैक्षणिक संस्थाओं का स्तर कैसा है और वे कैसे प्रशिक्षित समाज को दे रही हैं। सही मायनो में शिक्षा परंपरागत लीक ज्ञान तो दे रही है लेकिन वक्त की जरूरतों के हिसाब से वे बेकारी को ही विस्तार दे रही हैं। यह सत्तातंत्र की विफलता को तो बेनकाब करता ही है, साथ ही नई पीढ़ी में उद्यमिता की सोच के अभाव को भी दर्शाता है। बेरोजगारों में यह धारणा बलवती है कि चाहे चतुर्थ श्रेणी की ही नौकरी मिले, मगर हो सरकारी। जाहिरा तौर पर ये उस तंत्र की हकीकत भी बताता है, जहां बेरोजगार आने को उतावले हैं। यह भी एक हकीकत है कि नोटबंदी और जीएसटी के अव्यावहारिक क्रियान्वयन ने भी देश के सामने रोजगार का संकट खड़ा किया है, जिसकी गूंज पिछले दिनों संसद में भी सुनाई दी। सरकार को इन दो झटकों से देश को उबारने के लिये रोजगारपरक कार्यक्रम चलाने चाहिए। यह भी हकीकत है कि बेरोजगारी की हताशा युवाओं को पथभ्रष्ट भी कर सकती है। मामला गंभीर है और इसका समाधान भी गंभीरता से निकाला जाना चाहिए।
 

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