Cabinet approval for FDI in retail would help more than 200 fashion and apparel brands who are lined up to enter India, including international labels such as Avva, Colin's, Damat, Tudba Deri and Dufy
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विदेशी निवेश एक बार फिर चर्चा में आ गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई पर कई बड़े फैसले किए हैं। ये सभी फैसले काफी महत्वपूर्ण हैं, इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि सरकार ने एक तरह से नई विदेशी निवेश नीति ही बना दी है।
इन फैसलों में एक एअर इंडिया में विदेशी निवेश को लेकर है और कई अन्य फैसले अलग-अलग उद्योगों में विदेशी निवेश की इजाजत को लेकर हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय वायु सेवा एअर इंडिया में 49 फीसदी तक विदेशी निवेश हो सकेगा।
इसके दो अर्थ हैं। एक तो यह कि सरकार ने अब यह पूरी तरह से स्वीकार कर लिया है कि लगातार घाटे में चल रही इस एयरलाइन्स में और ज्यादा सार्वजनिक पूंजी झोंकना निरर्थक है और दूसरा यह कि विदेशी निवेश के बावजूद इसका नियंत्रण विदेशी हाथों में नहीं पहुंचेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके बाद एअर इंडिया पेशेवर प्रबंधन के हाथों में पहुंच जाएगी और बाजार की दूसरी एयरलाइन्स से स्पद्र्धा भी कर सकेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि वह सार्वजनिक धन की बर्बादी के दौर से बाहर निकल आएगी। अभी तक भारत में जो निजी एयरलाइन्स काम कर रही हैं, उनमें भी 49 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत है, मगर एअर इंडिया को इससे अलग रखा गया था, अब उस पर भी यही नियम लागू होगा।
100% FDI in Retail
मंत्रिमंडल के ताजा फैसलों में सबसे महत्वपूर्ण है एक ब्रांड का कारोबार करने वाली खुदरा कंपनियों को शत-प्रतिशत विदेशी निवेश की इजाजत देना। ऐसे मामले में अभी तक उन्हें सरकार की विशेष इजाजत की जरूरत पड़ती थी, पर अब इस रास्ते को पूरी तरह खोल दिया गया है। हालांकि मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार पर सरकार अभी भी मौन है। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें पिछली सरकार ने ही निवेश की इजाजत दे दी थी, लेकिन तब भारतीय जनता पार्टी इसके विरोध में थी। यह अलग बात है कि भाजपा सरकार बनने के बाद उस नीति को बदला नहीं गया, लेकिन मल्टी ब्रांड विदेशी निवेशकों ने दूर रहने में ही भलाई समझी।
खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश हमेशा से विवाद का मसला रहा है। यही वजह है कि बुधवार को मंत्रिमंडल का फैसला आने के कुछ मिनट बाद ही भारतीय खुदरा कारोबारी संघ का इसके खिलाफ बयान भी आ गया। इसी के साथ ही मंत्रिमंडल ने विनिर्माण उद्योग के लिए शत-प्रतिशत एफडीआई के रास्ते को पूरी तरह खोल दिया है। इमारतें बनाने से लेकर कॉलोनी बसाने तक के कारोबार में लगी कंपनियों को भी अब विदेशी निवेश के लिए अलग से इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। विदेशी निवेश पर मंत्रिमंडल के तमाम दूसरे फैसलों में एक यह भी है कि विद्युत एक्सचेंज के लिए भी 49 फीसदी तक विदेशी निवेश हो सकेगा।
सरकार ने विदेशी निवेश के वे रास्ते खोले हैं, जिनके रोजगार के कई अवसर निकल सकें। इसीलिए सिंगल ब्रांड रिटेल में यह शर्त रखी गई है कि इसमें लगी कंपनियों को पांच साल के भीतर 30 फीसदी भारतीय माल उपयोग में लेना होगा। विकास दर का मामला भले ही सही राह पर जाता दिख रहा हो, लेकिन सरकार इस आलोचना से बचना चाहती है कि देश में रोजगार रहित विकास हो रहा है। हालांकि देश में रोजगार की समस्या अभी तक काफी बड़ी बनी हुई है और वह इतने भर से सुलझ जाएगी, यह उम्मीद तो नहीं की जा सकती, पर ऐसे प्रयास भी जरूरी हैं। अभी ऐसे बहुत सारे क्षेत्र हैं, जहां विदेशी निवेश के मामले में हिचक दिखाई देती है और इसे दूर करके हम कई और नए अवसर पैदा कर सकते हैं। लेकिन बेरोजगारी की समस्या बड़े पैमाने पर तभी दूर हो सकेगी, जब विदेशी निवेश के बाद स्वदेशी उद्योग भी उनसे मुकाबले के लिए डटकर खड़ा हो जाएगा।
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