धरती कौन बचाएगा

Malthusian warning has great relevence and humanity is brink of disaster. We need to take urgent action.

पर्यावरण को लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने जो चेतावनी दी है, उस पर गौर करने की जरूरत है। 184 देशों के 16,000 वैज्ञानिकों ने मानव जाति के नाम अपनी दूसरी चेतावनी जारी करते हुए कहा कि अगर पृथ्वी को बचाना है तो हमें अपनी बुरी आदतें छोड़नी होंगी। उन्होंने बढ़ती आबादी और प्रदूषण के चलते बदल रहे वातावरण को मानव अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है। 1992 में 1700 स्वतंत्र वैज्ञानिकों ने ‘वर्ल्ड साइंटिस्ट्स वार्निंग टू ह्यूमैनिटी’ नामक पत्र में कहा था कि मनुष्य और प्राकृतिक विश्व एक-दूसरे के सामने टकराव की मुद्रा में खड़े हैं। ग्लोबल वार्मिंग रोकने और जैव विविधता को बचाने के लिए अधिकतम प्रयास नहीं किए गए तो हमारा भविष्य खतरे में पड़ सकता है।

पर्सेंट की कमी आई है।26 से अब तक प्रति व्यक्ति स्वच्छ जल की उपलब्धता में 1992 प्रजातियां खतरे में हैं। 2300 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। कोई भी समुद्री जीव इन इलाकों में जिंदा नहीं रह सकता। मछलियों की 75 से अब तक समुद्र के डेड जोन्स में 1992 वर्षों में ही पृथ्वी का तापमान आधा डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। 25 पेट्रोल और गैस को जलाने से आया है। इसके चलते पिछले , प्रतिशत जीवाश्म ईंधन अर्थात कोयले78 जिसमें , फीसदी की बढ़ोतरी हुई है90 के बाद से कॉर्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 1970 समुद्र और हवा संकट में है। , मनुष्य की गलत नीतियों-गतिविधियों की वजह से जमीन, हालांकि उसके बाद भी वैज्ञानिकों के हस्ताक्षर करने का सिलसिला जारी है। इस पत्र के अनुसार, जिस पर हजारों वैज्ञानिकों ने हस्ताक्षर किए। यह पत्र बीते सोमवार को ‘बायॉसाइंस’ में छपा, पर तब से लेकर आज तक धरती का संकट घटने के बजाय लगातार बढ़ा ही है। इसलिए ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विभाग के प्रफेसर विलियम रिपल और उनके दोस्तों ने एक और पत्र लिखने का फैसला किया, साल पहले सुर्खियों में था25 यह पत्र|

  • यूनेस्को के अनुसार, अगर औद्योगिक प्रदूषण कम नहीं हुआ और जल संरक्षण की गति नहीं बढ़ी तो 2030 तक पेयजल की उपलब्धता 40 फीसदी कम हो जाएगी।
  • 1990 से 2015 के बीच दुनिया ने एक करोड़ 29 लाख हेक्टेयर वन भूमि खोई है। बढ़ती आबादी के कारण जनसंख्या और खाद्यान्न में असंतुलन बढ़ रहा है। बहरहाल, चिट्ठी में सकारात्मक संकेत भी है कि अल्ट्रावॉयलेट किरणों से पृथ्वी को बचाने वाली ओजोन परत में हुआ छेद सिकुड़ने लगा है।

वर्ष 2017 में यह 1988 के बाद से सबसे छोटा दिखा। यह फ्रिज और एसी में इस्तेमाल होने वाले नुकसानदेह रसायनों में कटौती का नतीजा हो सकता है। इस चिट्ठी के बाद डॉनल्ड ट्रंप और उन जैसे अन्य शासनाध्यक्षों को अपनी आंखें खोल लेनी चाहिए, जो पर्यावरण के सवाल को एक बौद्धिक प्रलाप बताकर इससे मुंह फेर लेना चाहते हैं

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