सोशल मीडिया और इंटरनेट पर फैलाई जा रही फर्जी खबरों को रोकने के लिए फेसबुक, गूगल और ट्विट्टर जैसी दिग्गज कंपनियों ने कमर कस ली है.
- इन तीनों ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि अब वे ‘फेक न्यूज़’ के खिलाफ शुरू किये गए ‘द ट्रस्ट प्रोजेक्ट’ अभियान का हिस्सा हैं.
- ‘द ट्रस्ट प्रोजेक्ट’ अभियान को अमेरिका के सेंटा क्लैरा यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर एप्लाइड एथिक्स द्वारा शुरू किया गया है.
- इसका मकसद पाठकों को इंटरनेट और सोशल मीडिया पर किसी भी खबर के स्रोत के बारे में जानकारी देना है.
- इस प्रोजेक्ट को अमेरिका और यूरोप के करीब 75 समाचार संस्थानों ने अपना समर्थन दिया है. इन संस्थानों में अमेरिकी न्यूज़ वेबसाइट द इकनॉमिस्ट, वाशिंगटन पोस्ट, ब्रिटेन की मिरर और जर्मनी की जर्मन प्रेस एजेंसी भी शामिल हैं
- ये सभी संस्थान अपनी खबरों में ‘ट्रस्ट इंडिकेटर’ को प्रदर्शित करेंगे. इस इंडिकेटर पर क्लिक करते ही पाठक को खबर या लेख के स्रोत और लेखक के बारे में जानकारी मिल सकेगी. साथ ही उसे यह भी पता चल पाएगा कि वे जो पढ़ रहे हैं वह विज्ञापन है, खबर है या लेखक की अपनी राय है.
- सेंटर फॉर एप्लाइड एथिक्स की निदेशक अमेरिका की चर्चित पत्रकार सैली लेहमन ने गुरुवार को बताया कि गूगल, फेसबुक, बिंग और ट्विटर ने भी ‘ट्रस्ट इंडिकेटर्स’ या संकेतकों का उपयोग करने को लेकर सहमति जताई है. जल्द ही ‘ट्रस्ट इंडिकेटर’ इन प्लेटफॉर्म पर आने वाली खबरों या लेखों के बगल में दिखेगा.
अमेरिका और यूरोप में गूगल, फेसबुक और ट्विट्टर को फर्जी खबरों को प्रमोट करने की वजह से भारी आलोचना झेलनी पड़ रही है. माना जाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान फेसबुक के न्यूज फीड और ट्रेंडिंग सेक्शन में रूसी एजेंसियों ने ऐसी खबरें फैलायी थीं जिसने डोनाल्ड ट्रंप की जीत में अहम भूमिका निभाई थी.