तीसरी सरकार की तरह बनें नगर निकाय

Local goverment are important piller of federal polity.

#Dainik_Jagran

Recent Context

हाल में उत्तर-प्रदेश में नगर-पंचायतों, नगर-पालिकाओं और नगर निगमों के सदस्य एवं अध्यक्षों के चुनाव संपन्न हुए। बेहतर हो कि अब सभी जीते प्रत्याशी एवं संबंधित राजनीतिक दल इस पर गौर करें कि इन संस्थाओं का एजेंडा क्यों हो?

यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि विभिन्न प्रत्याशियों ने लोगों से जो वादे किए हैं वे जो वास्तव में होने चाहिए या जिसकी जरूरत है उनसे कोसों दूर नजर आ रहे हैं। यही अन्य राज्यों में भी होता है। उदाहरण के लिए लगभग सभी प्रत्याशी पानी, गली, नाली, स्वच्छता, भ्रष्टाचार से मुक्ति, सड़क, यातायात की सुविधा, जाम से मुक्ति आदि की बातें करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि उनमें इससे आगे की सोच ही नहीं है। इस मामले में सभी राज्यों में एक जैसी स्थिति दिखती है। जबराजनीतिक दल इन चुनावों में खुले रूप से भाग लेने लगे हैं तब संविधान में इन निकायों से क्या उम्मीद है, इसका जिक्र भी उन्हें करना चाहिए, लेकिन वह कहीं पर भी नजर नहीं आता।

Constitutional provision

  • 74वें संविधान संशोधन की धारा 243 (ब) के अनुसार नगरपालिकाएं आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय की योजनाएं तैयार करेंगी और विभिन्न कार्यो एवं योजनाओं के अलावा संविधान की 12वीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों से संबंधित योजनाओं को भी लागू करेंगी।
  • 12वीं अनुसूची में 18 विभिन्न विषय हैं। ये 18 विषय नगरीय-योजना, भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों के निर्माण, आर्थिक एवं सामाजिक विकास योजना, सड़कें और पुल, जल-आपूर्ति, स्वास्थ्य, सफाई एवं कूड़ा-करकट के निस्तारण का प्रबंधन, गरीब बस्तियों का सुधार, निर्धनता उन्मूलन, नगरीय सुविधाएं, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक विकास, शव निस्तारण, पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम, जन्म-मरण के आंकड़ों का उचित आकलन, सार्वजनिक सुख-सुविधाएं जैसे-सड़क, प्रकाश (बिजली), पार्किग आदि हैं। इसका अर्थ है कि नगर निकाय अपने स्तर पर आर्थिक विकास की ऐसी योजनाएं बनाएगा कि लोगों के जीवन में आर्थिक समृद्धि आए। इसके साथ-साथ वह यह भी देखेगा कि क्या इस समृद्धि का लाभ नगरीय समाज में हाशिये पर रह रहे लोगों को भी मिल रहा है या नहीं? इसी तरह यह भी देखने की जिम्मेदारी है कि नगरीय क्षेत्र के पिछड़े इलाकों को भी लाभ हो रहा है या नहीं?
  • उपरोक्त कार्यो के निपटान के लिए जो आवश्यक समितियां बनाई जाएंगी उनको भी उचित अधिकार एवं शक्तियां प्रदान करनी होंगी ताकि नगर का आर्थिक विकास सामाजिक न्याय के साथ निरंतर चलता रहे। नगर निकायों के प्रभावी संचालन के लिए लोगों की भागीदारी भी आवश्यक है, क्योंकि इन नगर निकायों का नगरीय क्षेत्र में एवं पंचायतों का ग्रामीण क्षेत्र में गठन ही इसीलिए हुआ है कि आर्थिक विकास जो सामाजिक न्याय पर आधारित है उसमें लोगों की स्पष्ट भागीदारी हो। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर संविधान की धारा 243 (ध) में जहां पर नगर निकाय की जनसंख्या तीन लाख से अधिक है वहां वार्ड-समितियों के गठन की बात कही गई है।

Role of committees

वास्तव में समितियां संपूर्ण नगरीय सरकार का दिल एवं दिमाग होती हैं, क्योंकि सही मायनों में स्थानीय स्तर की क्या-क्या समस्याएं हैं और उनको कैसे दूर किया जा सकता है, यह इन्हें ही भलीभांति पता होता है। नगर निकायों के पास अपने संसाधनों के अलावा विभिन्न राज्य, केंद्र सरकार, राज्य वित्त आयोग एवं केंद्रीय वित्त आयोग से भी संसाधन हस्तांतरित होते हैं। उदाहरण के लिए 14वें वित्त आयोग द्वारा 2015-2020 के दौरान उत्तर-प्रदेश के नगर निकायों को 10249.21 करोड़ रुपये हस्तांतरित होने हैं। इस अनुदान के दो हिस्से हैं। एक है ‘बेसिक’ अनुदान एवं दूसरा है ‘परफॉरमेंस अनुदान’। दूसरे अनुदान के लिए नगर निकाय को अपना हिसाब-किताब सही रखना होगा एवं कम से कम 10 प्रतिशत अतिरिक्त अपने स्वयं के संसाधन जुटाने होंगे।

  • संविधान की धारा 243 (य)(घ) के अनुसार जिला योजना समिति का भी गठन होना चाहिए। यह समिति ग्रामीण क्षेत्र की योजनाओं को नगर क्षेत्र की योजनाओं के साथ एकीकृत कर संपूर्ण जिले की योजना का मसौदा तैयार करेगी और अनुमोदन के लिए राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत करेगी।
  • इसी प्रकार महानगरों में महानगर योजना समिति गठन करने का प्रावधान है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां नगर पालिकाओं में सदस्य एवं अध्यक्ष के रूप में 12628 प्रतिनिधि चुनकर आए हैं। इनमें तमाम उस राजनीतिक दल से जुड़े हैं जिसकी प्रदेश में सरकार है अर्थात भाजपा। इन सभी को मिल कर राज्य सरकार से मांग करनी चाहिए कि नगर निकायों को तीसरी सरकार का दर्जा दिया जाए, जैसा कि संविधान में इनके बारे में कहा गया है।

यही काम सभी राज्यों के स्थानीय निकायों के चुनावों में जीत हासिल करने वालों को करनी चाहिए, वे चाहे जिस भी राजनीतिक दल के हों। हर राज्य के निकाय संस्थानों के पास पर्याप्त मात्र में अच्छी तरह परिभाषित-कार्य और कार्य करने के लिए आवश्यक वित्त एवं पर्याप्त कर्मचारी होने जरूरी हैं। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक उनकी महत्ता नहीं स्थापित होगी और जीते प्रतिनिधि अपने वायदे भी पूरे नहीं कर पाएंगे।

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