मेट्रो रेल नीति से जुड़ा शहरी भविष्य

This article analyse the new metro policy announced by government

#Business_standard

Existing Metro Network

  • देश के नौ शहरों में मेट्रो रेल लोगों को 390 किलोमीटर का सफर करा रही है। 517 किमी मार्ग पर अभी निर्माण कार्य चल रहा है।
  • जबकि 595 किमी के लिए विस्तार योजना बनकर तैयार है। मेट्रो रेल नेटवर्क जहां देश के अधिकाधिक शहरों में परिवहन की तस्वीर बदलने में लगा है, वहीं उनके व्यवस्थित और स्थायी विकास से जुड़े मसले भी सर उठा रहे हैं।

New Metro rail policy by GoI

 यही वजह है कि भारत सरकार ने अगस्त 2017 में नई मेट्रो रेल नीति लाने की घोषणा की जो स्वागत करने लायक है। इससे पहले अप्रैल 2017 में शहरी विकास मंत्रालय ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के क्रम में कहा था कि मेट्रो में इस्तेमाल होने वाली 75 फीसदी मेट्रो कार और 25 फीसदी अन्य अहम उपकरण देश में ही बनाए जाएं।

  • मेट्रो रेल तकरीबन बुलेट ट्रेन के समान ही महंगी परियोजना है। बुलेट ट्रेन का प्रति किमी खर्चा 217 करोड़ रुपये है जबकि दिल्ली मेट्रो के तीसरे चरण के जमीनी भाग का खर्च 221 करोड़ रुपये प्रति किमी तथा भूमिगत हिस्से का व्यय 552 करोड़ रुपये प्रति किमी है।
  • लखनऊ मेट्रो के प्रायॉरिटी कॉरिडोर में 8.5 किमी की दूरी का खर्च 2,000 करोड़ रुपये आया है यानी 235 करोड़ रुपये प्रति किमी। हैदराबाद मेट्रो (पीपीपी आधार पर विकसित) के 67 किमी की दूरी के लिए 18,829 करोड़ रुपये का व्यय निश्चित है जो प्रति किमी 281 किमी होगा।

Financial sources for Metros

  • हैदराबाद मेट्रो, मुंबई मेट्रो के कुछ हिस्से और गुरुग्राम के रैपिड मेट्रो को छोड़ दिया जाए तो ज्यादा परियोजनाएं केंद्र और राज्य सरकार समर्थित हैं। मेट्रो निर्माण की बढ़ती गति के साथ सरकारी वित्त पोषण मुश्किल होता जाएगा।
  • इनको किसी सरकारी विभाग की तरह भी नहीं चलाया जा सकता। नीति में निजी क्षेत्र के सहयोग को स्पष्ट रेखांकित किया गया है। ताकि उसकी उद्यमिता, संसाधनों और विशेषज्ञता का लाभ लिया जा सके। मेट्रो व्यवस्था एक जटिल व्यवस्था है जहां कई तरह की सेवाओं का मिश्रण होता है। किराया वसूली, स्टेशन प्रबंधन, रखरखाव, सुरक्षा और गैर परिचालन राजस्व मसलन अचल संपत्ति और विज्ञापन आदि क्षेत्रों को निजी सेवा प्रदाताओं को सौंपा जा सकता है।

What are the thing in Policy

  • नीति में कहा गया है कि मेट्रो रेल में संपूर्ण आधुनिक शहरी परिवहन व्यवस्था समाहित करने का प्रयास है।
  • उसके मुताबिक BRTS से लेकर ट्राम, लाइट रेल, मेट्रो रेल और क्षेत्रीय रेल सब इस नीति का हिस्सा हैं। निजी क्षेत्र का आगमन इस क्षेत्र के लिए नई दृष्टि, नई ऊर्जा, तकनीक और धन लाएगा।
  • यह सोच भारतीय मेट्रो आंदोलन के प्रणेता डॉ. ई श्रीधरन के सोच से एकदम उलट है। वह निजीकरण के खिलाफ रहे हैं।
  • छोटे शहरों के लिए वह हल्के परियोजना विकल्पों के खिलाफ होते। वह अन्य गतिविधियों को निजी क्षेत्र को आउटसोर्स करने के खिलाफ भी नहीं होते।
  • नई नीति में अधिकांश उपयोगी दिखते हलों के पेशेवर आकलन और वैकल्पिक विश्लेषण की बात की गई है।
  • इसमें आबादी, घनत्व, आय के वितरण आदि की भूमिका है। आशा है कि इस दौरान मेट्रो के स्थान पर इलेक्ट्रिक ट्रॉली बसों और ट्रामवे के विकल्प पर भी बात होगी। नीति में परिवहन क्षेत्र के लिए व्यापक हल की बात शामिल है। इसके लिए एकीकृत मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी की बात कही गई है।
  • नई नीति में यह सुनिश्चित करने की बात कही गई है कि परियोजना में मेट्रो स्टेशन के दोनों ओर 5 किमी क्षेत्र को विकसित करने पर ध्यान दिया जाए।
  • इसके लिए पहले राज्य को अंतिम सिरे तक संचार का वादा करना होगा। इसमें फीडर बस सेवा, गैर मोटरीकृत ढांचा मसलन पैदल पथ और साइकिलिंग पथ आदि शामिल हैं। नीति में निर्विवाद रूप से आर्थिक प्रतिफल की दर तय करती है जो आंतरिक वित्तीय प्रतिफल की दर से अलग होगा। नीति निर्माताओं के लिए यह एक साहसिक कदम है और नियोजित जन परिवहन की दिशा में एक अहम योगदान भी।
  • अर्थशास्त्र राजनीतिक अर्थव्यवस्था से एक कदम ही दूर है। हाल में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच दिल्ली मेट्रो के किराये को लेकर जो विवाद हुआ वह बताता है कि किराया निर्धारण पेशेवर अंदाज में होना चाहिए। जरूरत यह है कि हम नीति में लोकलुभावनवाद को स्पष्टï रूप से दूर रखें और किराये के संबंध में स्थायी प्राधिकार का गठन करें। नीति में कहा गया है कि प्रायोजक परियोजना को वित्तीय मदद देने के रचनात्मक तरीके तलाश करें। राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे कम लागत वाले बॉन्ड जारी करके अपनी हिस्सेदारी निभाएं और इसका भुगतान उन शुल्कों से करें जो मेट्रो के आगमन के बाद परिसंपत्ति की कीमत बढऩे पर वसूले जा सकते हैं।

State and funding

केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ हाथ मिलाया है। राज्यों के पास भी अब मेट्रो चलाने में केंद्र की सहायता के तीन विकल्प मौजूद हैं। इसमें पीपीपी, परियोजना सहायता और केंद्र और राज्य के बीच आधी-आधी भागीदारी के तीन मॉडल मौजूद हैं। बहरहाल, इन तीनों विकल्पों में परिचालन और रखरखाव में निजी भागीदारी अनिवार्य है। राकेश मोहन की अध्यक्षता वाली राष्टरीय परिवहन विकास नीति की 2014 में पेश की गई रिपोर्ट में मेट्रो रेल के संस्थागत ढांचे के बारे में यह कहा गया था, ‘प्राधिकार सरकार के विभिन्न स्तरों पर बंटा हुआ है। शहरी विकास मंत्रालय रेल आधारित परिवहन से जुड़ी नीतियों और नियोजन के लिए नोडल एजेंसी है। जबकि तकनीकी समेत अन्य तमाम नियोजन रेल मंत्रालय के अधीन। राज्य सरकार शहरी विकास प्राधिकरण तथा परिवहन विभाग के जरिये इसमें अपनी भूमिका निभाता है। स्थानीय सरकारों की परिवहन योजना में सीमित भूमिका होती है लेकिन अक्सर वे रखरखाव के लिए जिम्मेदार होती हैं। परंतु विविध नियंत्रण और बंटा हुआ ध्यान शहरी परिवहन की वृद्घि के लिहाज से बहुत बेहतर नहीं होता है। इन कमियों को दूर करना अत्यंत आवश्यक है, तभी इस क्षेत्र में बड़ा निवेश आ पाएगा।’

अगर कोई ऐसा क्षेत्र है जहां नई मेट्रो नीति में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है तो वह है संस्थागत जिम्मेदारी तय कर पाने में विफलता। इस मामले में समस्या बरकरार है। इन तमाम बातों के बावजूद देश के दूरदराज गांव कस्बों से इन बड़े पैमाने पर होने वाले प्रवासन को संभालने के लिए प्रासंगिक शहरी परिवहन की सख्त आवश्यकता है। देश में हर साल मेट्रो रेल 25 किमी क्षमता बढ़ा रही है जबकि चीन में यह 300 किमी है। हमें यह गति बढ़ानी होगी। इस लिहाज से देखें तो नई नीति काफी सहायक साबित होने वाली है

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