क्यों विशेष अदालतों के जरिए अपराधियों को राजनीति से दूर करना उतना आसान नहीं है जितना दिखता है

Union government’s decision to set up 12 special courts to expeditiously try cases against 1,581 lawmakers complements the 2013 Supreme Court judgment that quashed a discriminatory statutory provision, allowing convicted MPs/MLAs to stave off disqualification by securing a stay order from a higher court. Though a few netas were convicted and disqualified after that judgment, realisation dawned that other stages of the criminal justice delivery process like investigation, framing of charges and trial had to move faster to secure convictions

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केंद्र सरकार ने 1,581 दागी जनप्रतिनिधियों (सांसद-विधायक) के खिलाफ मुकदमों में तेजी लाने के लिए 12 विशेष अदालतों के गठन को मंजूरी दे दी है. सरकार का यह कदम ऐसे सांसद-विधायकों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट एक अहम फैसले को आगे बढ़ाने वाला साबित होगा. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में जनप्रतिनिधित्व कानून की उस धारा को असंवैधानिक करार दिया था जिसके तहत निचली अदालतों द्वारा दोषी ठहराए गए सांसद-विधायक पद के लिए तुरंत अयोग्य घोषित नहीं होते थे. यह प्रावधान दोषियों को हाई कोर्ट में अपील करने के लिए तीन महीने की मोहलत देता था और यहां से स्टे मिलने पर ये पद पर बने रह सकते थे

  • सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी करार दिए गए लालू प्रसाद यादव और जयललिता जैसे नेता चुनाव लड़ने और पद पर बने रहने के लिए अयोग्य हो गए थे. तब यह जरूरत महसूस की गई थी कि ऐसे मामलों में आपराधिक न्याय प्रणाली के तहत जांच, आरोपों का तय होना और सुनवाई का काम तेजी से होना चाहिए ताकि जल्दी से जल्दी मुकदमों का निपटारा हो सके.
  • 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि निचली अदालतें सांसद-विधायकों से जुड़े मामलों की रोजाना सुनवाई करें ताकि आरोप एक साल के भीतर तय किए जा सकें. हालांकि सरकार द्वारा पहल न होने की वजह से इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई. लेकिन अब केंद्र ने विशेष अदालतों के गठन को मंजूरी दे दी है और इससे उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय राजनीति जल्दी से जल्दी दागी जनप्रतिनिधियों से मुक्त हो जाएगी.

भारतीय राजनीति में दागी सांसद-विधायकों की बात करें तो सरकार के पास तक इनके पुख्ता आंकड़े नहीं हैं. सरकार के साथ-साथ आम लोगों के पास अभी जो जानकारियां मौजूद हैं वे एक गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा तैयार की गई हैं. यह संगठन सांसद-विधायकों के चुनावी हलफनामों के विश्लेषण के आधार पर इससे जुड़े आंकड़े तैयार करता है.

At present Corrupt representative in Indian Politics

अब जब केंद्र सरकार ने यह पहल कर दी है तब इस मामले राज्य सरकारों को भी कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा. इस समय कुल 4,078 विधायकों में से 1,353 दागी हैं और इन्हें न्याय के कटघरे में खड़ा करने के लिए राज्यों को भी पारदर्शी और ईमानदारी भरा रवैया दिखाना होगा.

Is this path easy?

हालांकि इस पूरे मसले में अदालतों का गठन सबसे आसान काम है. यहां एक बड़ी मुश्किल स्थानीय पुलिस और अभियोजन पक्ष के सामने पेश आनी है क्योंकि उसे अदालतों में उन लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने हैं और मुकदमा शुरू करवाना है जो राजनीतिक रूप से काफी ताकतवर हैं. वहीं दूसरी तरफ इनमें से कइयों के साथ भारी जनसमर्थन भी है.

विशेष अदालतों में सबसे पहले गंभीर अपराध जैसे हत्या, हत्या की कोशिश, यौन शोषण, बलात्कार या भ्रष्टाचार के आरोपित सांसद-विधायकों पर मुकदमे चलने चाहिए. देश में इस समय ऐसे 993 जनप्रतिनिधि हैं. दरअसल नेता विरोध प्रदर्शनों में आए दिन भाग लेते हैं और इस दौरान उनपर कई मुकदमे भी दर्ज होते हैं. इनके निपटारे के लिए कोई अलग व्यवस्था हो सकती है. लेकिन आखिरी बात यही है कि राजनीति में घुसे आपराधिक तत्वों के हर चुनाव के बाद संसद-विधानसभाओं में पहुंचने का यह दुष्चक्र टूटना ही चाहिए.

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