कठघरे में जज

The CBI has arrested retired Orissa High Court judge in relation to Medical colleges.
#Jansatta
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का सवाल अब कोई नई बात नहीं रह गई है। सीबीआइ ने जिस तरह ओड़िशा उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश इशरत मसरूर कुद्दुसी सहित पांच अन्य लोगों को गिरफ्तार किया है, उसे पिछले कुछ सालों के दौरान न्यायपालिका पर उठते सवालों की ही अगली कड़ी के तौर पर देखा जा सकता है। 


Background


गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश स्थित प्रसाद इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज में लचर सुविधाओं और आवश्यक मानदंडों को पूरा करने में नाकाम रहने की वजह से सरकार ने अगले दो सालों के लिए वहां मेडिकल के विद्यार्थियों के दाखिले पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा, छियालीस अन्य संस्थानों पर भी सरकार ने यह कार्रवाई की थी। लेकिन विचित्र यह है कि जब कोई शैक्षिक न्यास नियम-कायदों को धता बताने की वजह से सरकार की कार्रवाई की जद में था तो उसे अवांछित तरीके से मदद पहुंचाने की जरूरत कुद्दुसी को क्यों पड़ी! इसमें आरोप सामने आने के बाद सीबीआइ ने भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत जब इस मामले में उन पर आपराधिक साजिश रचने के मामला दर्ज किया और दिल्ली, लखनऊ और भुवनेश्वर के अलग-अलग ठिकानों पर छापे मारे तो उसमें 1.91 करोड़ रुपए भी बरामद हुए।

Role of Judges
हालांकि जांच की अंतिम रिपोर्ट से इस मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा, लेकिन इतना साफ है कि अगर सीबीआइ ने कुछ अन्य लोगों के साथ-साथ एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को गिरफ्तार किया है तो उसके पीछे मजबूत आधार होंगे। अब तक की कार्रवाई से साफ संकेत उभरे हैं कि अवैध रूप से मेडिकल इंस्टीट्यूट में दाखिला कराने वाले गिरोह के सुनियोजित भ्रष्टाचार में आरोपी न्यायाधीश भी शामिल थे। किसी न्यायाधीश के भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार होने का यह कोई अकेला या पहला मामला नहीं है। दो साल पहले गुजरात में निचली अदालत के दो न्यायाधीशों को गुजरात हाईकोर्ट के सतर्कता प्रकोष्ठ ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। उन दोनों पर अदालत में पदस्थापना के दौरान मामलों का निपटारा करने के एवज में रिश्वत लेने का आरोप था। इसके अलावा, समय-समय पर जजों के भ्रष्ट आचरण को लेकर सवाल उठते रहे हैं। हालत यह है कि अगर किसी न्यायाधीश पर रिश्वत लेने या भ्रष्ट तरीके से किसी को लाभ पहुंचाने के आरोप लगते हैं तो अब पहले की तरह उस पर विश्वास करने में संकोच नहीं होता है। इसके बावजूद कभी ऐसे मामले सामने आते हैं या किसी पक्ष को न्यायाधीशों के भ्रष्ट आचरण में शामिल होने का संदेह होता है तो उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराना सहज नहीं होता है।


Need to have Corruption redressal system in Judiciary


दरअसल, अन्य क्षेत्रों के भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जांच और कार्रवाई के तंत्र बने हुए हैं, लेकिन उच्च न्यायपालिका के संदर्भ में इसका अभाव रहा है। यही वजह है कि निचली अदालतों के स्तर पर फैले भ्रष्टाचार के मामले कभी-कभार सामने आ भी जाते हैं, लेकिन उच्च न्यायपालिका पर अंगुली उठाना आसान नहीं है। महाभियोग के प्रावधान तक मामला पहुंचने की जटिलता से सभी वाकिफ हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि बाकी क्षेत्रों की तरह निचली या उच्च न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार की शिकायतों से निपटने के लिए एक ठोस और भरोसेमंद तंत्र बने। विडंबना यह है कि जिस महकमे और पद के बारे में सामान्य लोगों की धारणा यह है कि वहां से इंसाफ मिलता है, अगर उन्हीं पदों पर बैठे लोगों के आचरण भ्रष्ट पाए जाएं तो व्यवस्था के सबसे भरोसेमंद स्तंभ पर से विश्वास डगमगाता है
 

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