ट्रंप का अस्थिर रवैया

There are two personalities of trump and due to this there is no predictabiity of US foreign policy and he is proving Palman dictum true.
#Nai_Duniya


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ताजा व्यवहार उनकी पहचान के अनुरूप ही है। वे किस मुद्दे पर कब, क्या रुख लेंगे, यह अनुमान लगाना हमेशा कठिन रहता है। उनके इसी रवैये के कारण दुनिया के तमाम पुराने समीकरण और संबंध आज अनिश्चित हो गए हैं। 

Pakistan & Dwindling US policy


    ट्रंप ने अब पाकिस्तान के मामले में अपने अनिश्चय का प्रमाण दिया है। राष्ट्रपति बनने के बाद आरंभिक प्रतिक्रिया में उन्होंने पाकिस्तान की तारीफ की थी। उसके बाद काफी समय तक उनकी पाकिस्तान नीति अस्पष्ट रही। 
    मगर पिछले 21 अगस्त को ऐसा लगा कि अंतत: उन्होंने अपना रुख तय कर लिया है। हालांकि उस रोज घोषणा वे अपनी नई अफगानिस्तान नीति की कर रहे थे, लेकिन उसी सिलसिले में पाकिस्तान पर जमकर बरसे। आगाह किया कि पाक आतंकवाद को पनाह देना छोड़ दे, वरना उसे महंगी कीमत चुकानी होगी। कुछ रोज पहले खबर आई कि इस बारे में आखिरी चेतावनी देने के लिए इसी महीने वे अपने वरिष्ठ मंत्रियों को पाकिस्तान भेज रहे हैं।


 स्पष्टत: इन खबरों से भारत में संतोष महसूस किया गया। लेकिन अब अचानक ट्रंप को पाकिस्तान में खूबियां दिखने लगी हैं। एक ट्वीट में उन्होंने लिखा कि अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ ‘ज्यादा बेहतर संबंध बनाने की शुरुआत की है।उनका नजरिया महज एक घटना से बदल गया। 2012 में एक अमेरिकन-कनाडाई दंपती का अफगानिस्तान में अपहरण हुआ था। पिछले दिनों पाकिस्तानी फौज ने हक्कानी गुट के ठिकाने पर छापा मारकर उन्हें छुड़ा लिया। बताया गया है कि ये कार्रवाई अमेरिकी खुफिया एजेंसियों से मिली सूचना के आधार पर हुई। इससे ट्रंप खुश हुए। वैसे जानकारों का कहना है कि ट्रंप का हर रुख अमेरिका की घरेलू राजनीति में लाभ-हानि के हिसाब से होता है। ताजा घटना के जरिए उनका मकसद अपने समर्थक वर्ग को यह संदेश भेजना है कि उनके सख्त रुख से पाकिस्तान को आतंकवाद को पनाह देने की अपनी नीति बदलनी पड़ी है।
 
मगर ऐसा सोचना अपने को भ्रम में रखना ही है। ये घटना उसी समय हुई, जब पाकिस्तान में जमात-उद-दावा के आतंकी हाफिज सईद को रिहा करने की तैयारी चल रही है। इसके बावजूद ट्रंप का पाकिस्तान की तारीफ करना सिर्फ यही दिखाता है कि उन्हें भी वास्तव में आतंकवाद की चिंता नहीं है। कम-से-कम वैसी दहशतगर्दी की फिक्र तो नहीं ही है, जिसका प्रत्यक्ष निशाना अमेरिका न हो। तो घूम-फिरकर अमेरिकी नीति वहीं पहुंच गई है, जहां ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के पहले होती थी। और भारत के लिए फिर वही सीख है। बिना किसी से मदद की उम्मीद किए पाकिस्तान से निपटने की रणनीति उसे खुद बनानी होगी। इसलिए कि जब तक पाकिस्तान को दहशतगर्दी छोड़ने पर मजबूर नहीं किया जाता, भारत सुरक्षित नहीं हो सकता। वैसे इसके बिना बाकी दुनिया भी महफूज नहीं है, क्योंकि आतंकवाद चाहे कहीं हो, उसकी कुछ जड़ें पाकिस्तान तक पहुंचती ही हैं। मगर यह समझने की दृष्टि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पास नहीं है। इससे भारत का काम कठिन अवश्य हो जाता है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि अपनी रक्षा करने में भारत सक्षम है।
 

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