US has taken unexpected turn and refused to certify Iran deal
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अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान परमाणु समझौते को खारिज करने की दिशा में एक ठोस कदम उठाकर सभी संबंधित पक्षों को तनाव में ला दिया है। हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर समझौते से बाहर आने की घोषणा नहीं की लेकिन कांग्रेस के सामने यह सत्यापित करने से इनकार कर दिया कि ईरान समझौते का पालन कर रहा है।
ट्रंप का जोर इस बात पर है कि ईरान पर और कड़ी पाबंदियां लगाई जाएं ताकि वह कभी परमाणु हथियार विकसित न कर सके और दूसरा, उसके बलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर भी बंदिशें लगाई जाएं।
उनका कहना है कि अगर कांग्रेस और मित्र देश ऐसा नहीं कर सके तो वे इस समझौते को तोड़ने का फैसला कर लेंगे। हालांकि ट्रंप को मित्र देशों से समर्थन नहीं मिल रहा है।
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ट्रंप की घोषणा के बाद रूस ही नहीं, जर्मनी, फ्रांस और इंग्लैंड तक ने कह दिया कि वे मौजूदा समझौते का सम्मान करते हैं और इसे जारी रखने के पक्ष में हैं। ईयू (यूरोपीय समुदाय) के विदेश नीति प्रमुख ने तो यहां तक कह दिया कि इस अंतरराष्ट्रीय समझौते को कोई भी एक देश ऐसे खत्म नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, ‘अमेरिकी राष्ट्रपति को दूसरे बहुत से अधिकार हैं लेकिन यह अधिकार नहीं है।’ गौरतलब है कि ट्रंप द्वारा ईरान पर समझौते का उल्लंघन करने के आरोप लगाए जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी इंटरनैशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) ने बयान जारी कर अपनी यह बात दोहराई कि ईरान ‘समझौते की शर्तों का पालन कर रहा है।’ साफ है कि अमेरिका इस मसले पर अलग-थलग पड़ सकता है।
गौरतलब है कि विभिन्न देशों के बीच हुए इस अंतरराष्ट्रीय समझौते को संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी मिल चुकी है। ऐसे में इस समझौते को खारिज करने या इससे बाहर निकलने की बात करना न केवल संयुक्त राष्ट्र और इन तमाम देशों की सहमति का मखौल उड़ाना है बल्कि खुद अमेरिका की ही पिछली सरकार द्वारा दी गई प्रतिबद्धता से पीछे हटना है। राहत की बात बस यही है कि अगले कदम के लिए छह महीने का वक्त मिल गया है। उम्मीद की जाए कि तब तक सभी संबंधित पक्षों को हालात की गंभीरता का अहसास हो जाएगा