पाक के भारत, अफगानिस्तान, अमेरिका संग रिश्तों में और खटास क्यों आई

Pakistan and its relation with India Afganistan USA.
#Dainik_Jagran
पाकिस्तान के लिए नए साल की शुरुआत खासी निराशाजनक रही। भारत और अफगानिस्तान के साथ उसके तल्ख रिश्ते वैसे ही बने हुए हैं तो अमेरिका संग रिश्तों में और खटास आ गई। पूरे देश में सामाजिक तनाव चरम पर है। अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है। सेना और सरकार के रिश्ते भी सामान्य नहीं हैं। इसी साल पाकिस्तान में आम चुनाव भी होने हैं। वहां सत्तारूढ़ पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग यानी पीएमएल-एन बड़े खराब दौर से गुजर रही है। पार्टी प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे हैं। यह परिदृश्य किसी भी देश के समक्ष बेहद गंभीर हालात का सूचक है, फिर भी पाकिस्तान में सबसे अहम प्रतिष्ठान पाकिस्तानी सेना आत्मविश्लेषण के लिए तैयार नहीं कि आखिर किन कारणों से पाकिस्तान की यह दुर्दशा हुई और उसका किस तरह निवारण किया जाए? अगर सेना ऐसा करेगी तो उसे महसूस होगा कि यह उसकी आक्रामक भारत नीति ही है जो पड़ोसियों से शांति की राह में बाधक होने के साथ ही पाकिस्तान के स्थायित्व और समृद्धि हासिल करने में भी बाधक बनी हुई है।
पाकिस्तान आतंकियों को शरण मुहैया करा रहा है
    US And Pakistan: अमेरिका, अफगानिस्तान और भारत के साथ रिश्तों की गुत्थी ने ही पाकिस्तान को उलझा रखा है। पाकिस्तानी सेना की सबसे बड़ी चिंता यह है कि उसे अमेरिकी कोप झेलना पड़ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साल के पहले दिन पाकिस्तान को झूठा और दगाबाज देश करार देकर उसे सन्न कर दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान में जिन आतंकियों से लोहा ले रही हैं, पाकिस्तान उन्हें शरण मुहैया करा रहा है। ट्रंप ने यह भी कहा कि पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपतियों को मूर्ख समझता आया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका पाकिस्तान के ऐसे दोहरे रवैये को जरा भी बर्दाश्त नहीं करेगा। इसके बाद अमेरिका ने यह साबित करते हुए कि ट्रंप की चेतावनी दिखावटी नहीं थी, पाकिस्तान को 25.5 करोड़ डॉलर की सैन्य सहायता और सुरक्षा सहायता मद में दी जाने 1.5 अरब डॉलर की वित्तीय मदद रोक दी।
    Ignorance of Pak by Trum : ट्रंप ने आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के त्याग को नजरअंदाज किया इसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक हुई। इसमें सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा भी शामिल हुए। बैठक के बाद पाकिस्तान ने ट्रंप के आरोपों को नकारते हुए कहा कि अपने ट्वीट में अमेरिकी राष्ट्रपति ने तथ्यों की अनदेखी करते हुए आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के त्याग को नजरअंदाज किया। उसने यह भी कहा कि 21 अगस्त, 2017 को ट्रंप द्वारा अपनी अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया नीति की घोषणा के बाद उनका यह कदम सही नहीं है। हालांकि पाकिस्तानी मंत्रियों की भाषा और हाव-भाव आधिकारिक बयान जितने संयमित नहीं थे। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने अफगानिस्तान में अमेरिका को मिल रही शिकस्त की कुंठा में यह ट्वीट किया। अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान के नजरिये में बदलाव करना अमेरिका के लिए आसान नहीं होगा। खबरें आई हैं कि उसने अमेरिका के साथ खुफिया सहयोग करने से भी इन्कार कर दिया है। अतीत में भी वह अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैन्य बलों के लिए आपूर्ति मार्ग को बंद कर चुका है। वह फिर से ऐसा कर सकता है।
पाकिस्तान अमेरिकी दबाव को चीन की मदद से दूर करने की फिराक में है
हालांकि अमेरिका अफगानिस्तान में तैनात अपने सैनिकों को अन्य मार्गों या फिर हवाई मार्ग से आपूर्ति जारी रख सकता है, लेकिन यह उसके लिए खर्चीला और मुश्किल रहेगा। पाकिस्तान अमेरिकी दबाव को चीन की मदद से दूर करने की फिराक में है। चीन द्वारा ट्रंप के ट्वीट की परोक्ष रूप से आलोचना से यह सही भी मालूम पड़ता है। इन हालात में अमेरिका को पाकिस्तान के खिलाफ कुछ और सख्त कदम उठाने होंगे ताकि उसकी फौज रवैया बदलने पर मजबूर हो जाए। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के माध्यम से आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान की नकेल कसनी होगी ताकि अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में उसे मुश्किल आए।
पाकिस्तान ट्रंप की अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया नीति के खिलाफ है
अगर अमेरिका डूरंड रेखा पारकर पाकिस्तान में तालिबान की सुरक्षित शरणगाहों पर सर्जिकल स्ट्राइक करे तो यह और भी प्रभावी होगा। साथ ही उसे पाकिस्तान से आपूर्ति मार्ग पर निर्भरता घटानी होगी और नए वैकल्पिक मार्ग बनाने होंगे, भले ही यह उसके लिए कुछ खर्चीला ही क्यों न हो। फिलहाल यह निश्चित नहीं है कि अमेरिका ऐसा ही करेगा। इसके प्रबल आसार हैैं कि पाकिस्तान अभी यही मानकर चल रहा होगा कि जिस तरह ट्रंप के पूर्ववर्ती पाकिस्तानी दबाव के आगे झुकते रहे, ट्रंप भी वही करेंगे। अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की बुनियादी समस्या यह है कि वह वहां भारत की अहमियत घटाना चाहता है। वह ट्रंप की अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया नीति के खिलाफ है, क्योंकि उसमें तालिबान की पाकिस्तानी पनाहगाहों को नेस्तनाबूद करने की बात है, लेकिन इससे भी बढ़कर उसका विरोध इसमें भारत को मिलने वाली व्यापक भूमिका से है।
पाक चाहता है कि अफगानिस्तान को भारत से मजबूत रिश्ते नहीं बनाने चाहिए
अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ गनी और मुख्य कार्यकारी अब्दुल्ला से पाकिस्तान को यही शिकायत है कि ये नेता नहीं चाहते कि उनकी भारत नीति पाकिस्तानी फौज तैयार करे। इन नेताओं ने पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण संबंधों की तमाम कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान का इसी पर जोर है कि अफगानिस्तान को भारत से अपने रिश्ते और मजबूत नहीं बनाने चाहिए।


पाक अपनी विदेश और सुरक्षा नीति में आतंकी समूहों का इस्तेमाल करता है पाकिस्तान को लगता है कि अगर भारत और अफगानिस्तान अफगान इलाकों से उसे अस्थिर करने में जुट गए तो यह उसकी सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होगा। अब वह भारत पर बलूचिस्तान में दखल देने और इसके लिए अफगानिस्तान के इस्तेमाल का आरोप लगा रहा है। उसका यह भी दावा है कि पाकिस्तानी तालिबान को अफगानिस्तान की शह मिली हुई है। पाकिस्तान वक्त-बेवक्त भारत पर आतंकी समूहों की मदद का आरोप भी लगाता आया है, लेकिन तथ्य यही है कि उसके आरोप और उसका डर आधारहीन है। चूंकि वह खुद अपनी विदेश और सुरक्षा नीति में आतंकी समूहों का इस्तेमाल करता है इसलिए वह दूसरों को लेकर भी ऐसा ही सोचता है। पाकिस्तानी फौज की आतंकी समूहों से सांठगांठ जगजाहिर है। अब जरूरत यह है कि पाकिस्तान पर इन आतंकी समूहों से रिश्ते तोड़ने का दबाव बनाया जाए। आतंक को पोषित करने वाला पाक के साथ कोई वार्ता नहीं होनी चाहिए चूंकि चीन पाकिस्तान की ढाल बनकर उभरा है इसलिए पाकिस्तानी फौज को लगता है कि अमेरिकी दबाव का प्रतिकार करने में उसे आसानी होगी। अफगानिस्तान और विशेषकर भारत को लेकर अपने रुख में बदलाव लाने की उसकी कोई मंशा नहीं है। भारत को लेकर वह अपनी टकराव वाली नीति ही जारी रखेगा। हमारे नीति निर्माता भी इसे लेकर किसी मुगालते में न रहें, भले ही दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की मेल-मुलाकातें जारी हों। भारत के लिए जरूरी है कि वह पाकिस्तानी आतंक से निपटने को लेकर उसे कड़ा संदेश देता रहे और सीमा पर उसकी किसी भी उद्दंडता का मुंहतोड़ जवाब दे। भारत को अपने इस रुख पर अडिग रहना चाहिए कि जब तक पाकिस्तान आतंक को पोषित करता रहेगा तब तक उसके साथ कोई वार्ता नहीं हो सकती। अब यह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान को लेकर भारत की ढुलमुल रवैये वाली पुरानी नीति कारगर नहीं रही है।

 
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