अफ्रीका में जड़ें मजबूत करने का मौका

 

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राष्ट्रपति अपनी पहली विदेश यात्रा पर इसी सप्ताह अफ्रीका जा रहे हैं। सरकार ने गंतव्य के रूप में जिबूती और इथियोपिया का चयन कर सही फैसला लिया है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, राष्ट्रपति की पहली विदेश यात्रा के लिए अफ्रीका का चयन, वर्तमान सरकार की नजर में इस महाद्वीप के महत्व को दर्शाता है। मोदी सरकार अफ्रीका को अपने हित-विस्तार के एक क्षेत्र के रूप में देखती रही है और वहां अपनी मजबूत मौजूदगी को उत्सुक है। अफ्रीका यानी एक ऐसा महाद्वीप, जिसके साथ भारत के रिश्तों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है और जहां आज हर प्रमुख शक्ति अपना प्रभाव जमाने के लिए दांव लगाना चाह रही है।

Importance of Djibouti

  • जिबूती हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख देश बनकर उभर रहा है। इसका भौगोलिक दायरा भी महत्वपूर्ण है।
  • देश से बाहर चीन का पहला सैन्य अड्डा यहीं है, और इस रूप में जिबूती के नौसैनिक बेस ने दुनिया भर में तरह-तरह की प्रतिक्रियाओं को भी मौका दिया।
  • इस नौसैनिक अड्डे को चीन की अपनी ही विदेश नीति की सीमाओं के विस्तार के तौर पर देखा जाता है। यह अफ्रीका में उसकी बढ़ती सैन्य ताकत का भी प्रतीक है।
  • चीनी विदेश मंत्री वांग यी की 2016 की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस पर गौर करें, तो अफ्रीका में यह नया सैन्य अभियानअंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों के राजनीतिक समाधान की दिशा में उसकी रचनात्मक भूमिका निभाने की इच्छा का हिस्सा है, ताकि विदेशों में चीन की संभावनाओं के विस्तार के लिए अधिक उपयुक्त और सुरक्षित माहौल तैयार हो सके। वह और ज्यादा अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा जिम्मेदारियों का वहन कर सके।

दरअसल, अफ्रीका में चीन की बढ़ती सैन्य महत्वाकांक्षा, महाद्वीप में उसके अपने आर्थिक आधार का ही विस्तार है। यह अपने वैश्विक हितों की अत्यंत महत्वाकांक्षी और विस्तारित परिभाषा की ओर बढ़ना भी है। अफ्रीका में इसके व्यवसाय को विदेशों में बढ़ते इसके सैन्य प्रभाव सहित उसके इन्हीं हितों को हासिल करने का नया तंत्र विकसित करने के तौर पर देखा जाना चाहिए।

India & Djibouti

  • जिबूती अपनी जमीन पर भारत की मौजूदगी को लेकर सदैव उत्साहित रहा है और इसका स्वागत करता है। 2015 में येमन से निकलने के समय में भारत को इससे खासी मदद मिली थी।
  • इथियोपिया के साथ भारत के पारंपरिक रिश्ते रहे हैं और भारत से उसे आज भी खासी रियायती मदद मिल रही है। अफ्रीका में भारत की मजबूत उपस्थिति के लिए ये दोनों देश खासे महत्वपूर्ण साधन हैं।
  • 2015 के भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के साथ ही सरकार ने अफ्रीका के साथ सदियों पुराने संबंधों में तेजी लाने के लिए तत्परता का संकेत दिया था। ऐसे संबंध, जो दोनों देशों के लाखों प्रवासियों के जरिये परवान चढ़ते हैं।
  • साझा औपनिवेशिक विरासत और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की विकास-यात्रा के अनुभवों ने भारत-अफ्रीका संबंधों को नए आधार दिए हैं। 1947 में आजादी हासिल करने के बाद भारत की उपनिवेशवाद और नस्लभेद विरोधी छवि ने इन रिश्तों को काफी मजबूती दी और यह स्वाभाविक रूप से अफ्रीकी राष्ट्रों के करीब गया।
  • शीत युद्ध के खात्मे के बाद से और अफ्रीका में चीन की बढ़ती उपस्थिति के मद्देनजर भारत अफ्रीकी महाद्वीप के साथ अपने संबंधों को फिर से परिभाषित करते हुए और मजबूती देना चाह रहा है।

Importance of Africa for Bharat

  • विगत भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के स्वरूप पर बनी सहमति और अफ्रीका में निवेश सहायता बढ़ाने की भारतीय पहल, नई दिल्ली और अफ्रीकी महाद्वीप के बीच मजबूत साझेदारी बढ़ाने के भारत के इरादे को दर्शाने वाली थी।
  • अब अफ्रीका में भारत के हित खासे बढ़े हुए हैं। विश्व के चंद तेजी से बढ़ते देशों के साथ ही अफ्रीका अब अतीत काअंधेरे में डूबा महाद्वीपनहीं है। क्षेत्रीय देशों की जरूरतें अलग होती हैं, हित अलग होते हैं, तो उनकी ताकत भी अलग होती है।
  • बीते कुछ दशकों में भारत का ध्यान भी महाद्वीप में बड़े पैमाने पर अपनी क्षमता-विस्तार पर गया है। भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (आईटीईसी) के अंतर्गत इसने इस दिशा में बड़ा सहयोग दिया है।
  •  40 देशों में फैली 137 परियोजनाओं पर अफ्रीका के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए इसने 7.5 अरब डॉलर के सहयोग का वादा किया है। भारत ने कम विकसित अफ्रीकी देशों के लिए अपने यहां शुल्क मुक्त बाजार सुलभ कराने की भी पेशकश की है, लेकिन सच यह है कि अफ्रीका के साथ भारत का व्यापार क्षमता से कहीं अधिक कम है। भारत, इस क्षेत्र में आर्थिक संबंधों का नया अध्याय शुरू करने के लिए अफ्रीका सेविकासमूलक साझेदारीचाहता है। ऐसा करके वह आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के सदस्य देशों में अपनी अलग छवि दिखाना चाहेगा, जो समय की मांग भी है।
  • अफ्रीका में तेल क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए वित्तीय और सैन्य सहायता का इस्तेमाल करने की बीजिंग की नीति दिल्ली को निराश करने वाली है। अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने के लिए संसाधनों और ऊर्जा के लिए चीन और भारत की जबरदस्त प्रतिस्पद्र्धा को 19वीं शताब्दी में अफ्रीका के लिए यूरोपीय देशों के बीच मची तथाकथित हलचल से जोड़कर देखा गया।

दरअसल कहने को तो यह एक प्रतिस्पद्र्धा ही है, क्योंकि अफ्रीका में भारत की स्थिति, चीन से काफी पीछे है। सच तो यही है कि जहां सरकारी तंत्र के विभिन्न स्तरों पर चीन की समन्वित मौजूदगी देखी जा सकती है, वहीं भारत इस मामले में विफल रहा है। अब भारत यदि आर्थिक मोर्चे पर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति का अंतर पाटना चाहता है, तो उसे अपनी कंपनियों को और ज्यादा सक्रिय और खुला समर्थन देना होगा।

Democratic values of India & Africa

फिर भी अफ्रीका के साथ व्यवहार के मामले में भारत की अपनी ही ताकत है। इसकी लोकतांत्रिक परंपराएं अफ्रीका संबंधी मामलों पर सहयोग के लिए इसे चीन की तुलना में पश्चिम के लिए ज्यादा अनुकूल साथी के रूप में पेश करने में सहायक हैं। तमाम देश भारत को अफ्रीका में एक बेहतर उत्पादक भागीदार के रूप में पाते हैं, क्योंकि भारतीय कंपनियों की अफ्रीकी समाज में ज्यादा स्वीकार्यता है। ऐसे में, नई दिल्ली को अफ्रीका से रिश्ते मजबूत करने और महाद्वीप में अपनी उपस्थिति बेहतर बनाने के लिए अपनी इन्हीं ताकतों का इस्तेमाल करना होगा।
राष्ट्रपति कोविंद का अफ्रीका दौरा सिर्फ भारत की विदेश नीति के स्वरूप में निरंतरता के महत्व को

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