- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन के 23वें कांफ्रेंस ऑफ पार्टिज (कॉप-23) के उद्घाटन सत्र ने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को झेल रहे विकासशील देशों के गरीब और कमजोर लोगों में आशा की किरण जगाई है।
- प्री-2020 एजेंडा के तहत विकसित देशों को क्योटो प्रोटोकॉल (केपी II) की दूसरी अवधि की प्रतिबद्धता को अनुमोदित करना है। इसके अंतर्गत विकसित देशों को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करनी है और विकासशील देशों को वित्तीय व तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना है। इस तथ्य को कॉप-23 एजेंडे में स्थान दिया गया है।
- शताब्दी के अंत तक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित रखने के लक्ष्य के लिए मजबूत अल्पावधि कार्ययोजना की आवश्यकता है। प्री-2020 कार्ययोजना कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की वित्तीय चुनौतियों को कम करने में मदद करेगा। इससे लोगों को स्वास्थ्य बेहतर होगा, वायु प्रदूषण में कमी आएगी, ऊर्जा सुरक्षा बेहतर होगी और फसलों का उत्पादन बेहतर होगा।
- भारत ने समान विचार रखने वाले देशों के समूह के साथ विकसित देशों द्वारा प्री-2020 कार्ययोजना के तहत समयबद्ध कार्यवाही के लिए जोरदार मांग की।
- कॉप-23 महत्वपूर्ण है क्योंकि विकासशील देशों के लिए अपने अधिकारों की रक्षा करने का यह अंतिम अवसर है। इसके अंतर्गत विकसित देशों को प्री-2020 प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। इसी बुनियाद पर वर्ष 2020 के बाद जलवायु से संबंधित कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए।