आहार में विविधता की जरूरत : कुपोषण की समस्या कम करने के लिए

NFSA could be a game changer to tackle malnutrition problem in India but some focussed reform should be implemented to revive this programme.


#Businesss_Standard
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प्रधानमंत्री ने देश में कुपोषण की समस्या कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों की गत 25 नवंबर को समीक्षा की। इसमें अधिकारियों ने पोषण के बारे में जागरूकता पैदा करने में मददगार विभिन्न सामाजिक योजनाओं पर जोर दिया। लेकिन एक बड़ा कार्यक्रम है जो इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है। वह है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए)।


National food Security mission


एनएफसीए की शुरुआत 2013 में हुई थी और तबसे इसमें कई उल्लेखनीय बदलाव किए गए हैं। 
    इनमें खरीद प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण से लेकर वितरण और खरीद व्यवस्थाओं की खामियों को दूर करना शामिल है। 
    साथ ही लाभार्थियों के खाते में सीधे नकदी हस्तांतरण की योजना को लागू करने के लिए प्रायोगिक योजनाएं भी शुरू की गई हैं। 
    हाल में सरकार ने एनएफएसए के लाभार्थियों के लिए पहचान दस्तावेज के तौर पर आधार कार्ड के इस्तेमाल को अनिवार्य बना दिया है। बेहतर पारदर्शिता और दक्षता के साथ वितरण व्यवस्था को मजबूत करने के लिए ये उपाय जरूरी हैं।
What other reforms which can be introduced?
संचालन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के अलावा एनएफएसए के कई अन्य अहम पहलू हैं जिन पर सरकारों को ध्यान देने की जरूरत है। इस कानून का मुख्य लक्ष्य भी इनमें से एक है। यह लक्ष्य है भूख से निजात और कुपोषण का उन्मूलन। इस कार्यक्रम का खाका इस तरह खींचा गया है कि यह केवल गरीबों की खाद्य जरूरतों को पूरा करता है और इसका ज्यादा जोर मुख्य आहार चावल और गेहूं पर है। अब भी यह कानून पोषण संबंधी पहलू का समाधान नहीं करता है। अलबत्ता लोगों में पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने के लिए हाल में प्रयोग के तौर पर कुछ योजनाएं शुरू की गई हैं। इनके तहत चुनिंदा स्थानों पर पोषक तत्त्वों से भरपूर गेहूं, दलहनों और मोटे अनाज का वितरण किया जा रहा है।


Middle and high income group & food diversity


मध्य वर्ग और उच्च आय वाले समूहों में आहार में विविधता की मांग बढ़ रही है। राष्टï्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के आंकड़ों के मुताबिक आय बढऩे के साथ लोगों के बीच कैलरी वाली खुराक और खाने की थाली में विविधता बढ़ रही है। लेकिन कैलरी का मुख्य स्रोत अब भी अनाज ही हैं। गरीबों के लिए पोषण की दृष्टिï से खुराक में विविधता अहम है, भले ही वे पहुंच और सामथ्र्य जैसी बाधाओं के कारण ज्यादा मांग नहीं करते हैं। एनएफएसए से गरीबों को पोषण की कमी को दूर करने का मौका मिलता है।


How NFSA can be made inclusive


एक त्रिआयामी दृष्टिïकोण से एनएफएसए को पोषण समावेशी बनाया जा सकता है। 
    इसमें पहला है सार्वजनिक खाद्य वितरण (पीडीएस) में विविधीकरण। देश में कुपोषण के तिहरे बोझ को दूर करने का एक तरीका पीडीएस के जरिये दलहनों और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भरपूर सब्जियों तथा फलों को गरीबों तक पहुंचाना है।
 दूसरा तरीका है खरीद व्यवस्था का विकेंद्रीकरण। इससे राज्यों को अपनी स्थानीय जरूरतों के हिसाब से आहार तय करने की सुविधा मिलेगी। साथ ही स्थानीय किसानों को भी बल मिलेगा और वे स्थानीय जरूरतों और मांग के हिसाब से उपज का उत्पादन कर सकेंगे।राज्यों को इस विकेंद्रीकृत खरीद नीति  (Decentralised procurement like Chhattisgarh)को अपनाने की जरूरत है। इससे मोटे अनाज और दलहनों जैसे गैर-मुख्य खाद्यान्नों की खरीद की नीति बनाने में मदद मिलेगी जिनकी स्थानीय स्तर पर मांग रहती है। 
    तीसरा पहलू यह है कि नकदी हस्तांतरण के जरिये उत्पादन और खुराक में विविधता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। मौजूदा व्यवस्था के तहत पीडीएस के जरिये केवल अनाज का वितरण किया जाता है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) विशेषकर नकदी हस्तांतरण से उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ सकती है। इससे उपभोक्ताओं को अपनी जरूरतों के हिसाब से अधिकतम पोषक तत्त्वों को लेने के लिए अपनी खुराक में विविधता लाने की सुविधा मिलेगी। इसी तरह किसानों को सब्सिडी के बजाय नकदी देने से उनकी जोखिम लेने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है और वे बाजार के संकेतों के हिसाब से अपनी फसल बदल सकते हैं। नकदी हस्तांतरण कार्यक्रम को प्रायोगिक तौर पर चंडीगढ़, पुदुच्चेरी और दादरा एवं नगर हवेली में अपनाया गया है जिनकी इस कार्यक्रम में कुल 3 फीसदी हिस्सेदारी है। इसका दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव है।
Challenges likely  
इन तरीकों की भी अपनी चुनौतियां हैं। राज्यों को साथ लाने में मुश्किलें हैं और खरीद में ज्यादा उत्पादों को शामिल करने से लागत बढ़ेगी। खरीद के लिए संस्थागत व्यवस्थाएं और दलहनों तथा जल्दी खराब होने वाली उपज को स्टोर करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है। बाजार के जोखिम और अनिश्चितताएं भी हैं। उदाहरण के लिए अगर पोषक तत्त्वों से भरपूर किसी उपज का उत्पादन मांग की तुलना में कम रहता है तो भारी मांग से खुले बाजार में कीमतें बढ़ जाएंगी। नतीजतन उस उपज की खपत घटेगी जिससे पोषण की स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।


How these challenges can be tackled


    इनमें से कुछ चुनौतियों से निपटने के लिए नीति के स्तर पर 2017 के बजट में दलहनों के बफर स्टॉकिंग का प्रावधान किया गया है। 
    दलहनों को खाद्यान्नों के स्तर पर लाने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप शुरू कर दिए गए हैं। सरकार जब दलहनों की खरीद शुरू करती है तो इसे आईसीडीएस, एमडीएम और पीडीएस जैसी कल्याणकारी योजनाओं से जोडऩा शायद अच्छा विचार हो सकता है।
     इससे किसानों को दलहनों का ज्यादा उत्पादन करने पर किसानों को प्रोत्साहन देने और उन्हें उपज के लिए बाजार उपलब्ध कराने का दोहरा उद्देश्य पूरा करने में मदद मिल सकती है। इससे एनएफएसए के दायरे में आने वाली आबादी के पोषक स्तर को मजबूत करने में भी मदद मिलेगी।
देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चे बड़े पैमाने पर कुपोषण का शिकार हैं। सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन की बेहतर पहुंच से पोषण के दोहरे बोझ यानी कुपोषण और मोटापे के मामलों में कमी आएगी। एनएफएसए के दायरे में आईसीडीएस ऐसा कार्यक्रम है जो 6 साल से कम उम्र के बच्चों की पोषक जरूरतों को पूरा करने में मददगार साबित हो सकता है, बशर्ते इसमें खाद्यान्नों के अलावा दूसरे पोषक खाद्य पदार्थ शामिल किए जाएं। भले ही इस कानून का अब तक का समग्र अनुभव सीमित है लेकिन यह जरूरी है कि एक संतुलित खाद्य व्यवस्था बनाने की संभावनाओं का तलाशने की प्रक्रिया शुरू की जाए।
 

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